मांसाहार : संभल कर करें सेवन
आप सभी के भी ऐसे दोस्त व रिश्तेदार होंगे जो किसी शादी या नये साल के दावत में चिकन-मटन न मिलने पर ऐसा कहते हों,‘क्या घास-कूड़ा खिला दिया।’
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औसत दर्जे के लोग बटर चिकन, कढ़ाई चिकन, बोनलेस चिकन, चिकन कोफ्ता, मुर्गा दो प्याजा या मटन की तमाम किस्में खाते हैं। वरना भुना मुर्गा लार टपका कर निगल जाते हैं। जो जरा ज्यादा फैशनेबल हैं उनको सुबह नाश्ते में सासेज, सलामी आदि खाने की आदत पड़ जाती है, लंच में चिकन, लैम्ब सूप या प्रॉन (झींगा) वगैरह। डिनर में लॉबस्टर, फिश या कोई और चीनी या समुद्री खाना।
भारत के सभी महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में यह देखकर आश्चर्य होता है कि किस ललचाई नजरों से लोग मांसाहार के लिए आतुर रहते हैं। जिनके पास साधन हैं वो यह सारी वस्तुएं आयातित मांस से पकाते हैं या पांच सितारा होटलों में ही खाते हैं। वरना दिल्ली के कनॉट पैलेस व अन्य इलाकों में कई रेस्टोरेंट व ढाबे हर शहर और राजमार्ग पर बिखरे पड़े हैं जहां सलाखों में मुगरे की मसाला लगी टांगे टंगी रहती हैं। पर अब जरा दूसरी तरफ देखिए अगर आप देश के बहुत ही संपन्न लोगों की संगति में बैठे हों तो आप पाएंगे कि बहुत से बड़े लोग मांसाहार छोड़ते जा रहे हैं। और तो और अमेरिका और यूरोप के देश जहां दस वर्ष पहले तक शाकाहार का नाम तक नहीं जानते थे, लेकिन आज काफी तादाद में मांसाहार पूरी तरह छोड़ चुके हैं। जानते हैं क्यों? पहली बात तो यह कि मानव शरीर शाकाहार के लिए बना है मांसाहार के लिए नहीं।
यह बात हम अपनी तुलना शाकाहारी और मांसाहारी पशुओं से करने पर समझ सकते हैं। शेर, कुत्ता, घड़ियाल व भेड़िया मांसाहारी हैं। गाय, बकरी, बंदर व खरगोश शाकाहारी हैं। मांसाहारी पशुओं को कुदरत ने दोनों जबड़ों में तेज नुकीले कीलनुमा दांत और खतरनाक पंजे दिए हैं। पर गाय और बंदर की ही तरह मानव को कुदरत ने ऐसे दांतों और पंजों से वंचित रखा है, क्यों? मांसाहारी पशु जैसे कुत्ता जीभ से पसीना टपकाता है। इसलिए हांफता रहता है। शाकाहारी पशुओं और मानव के बदन से पसीना टपकता है। मांसाहारी पशुओं की आंतें काफी छोटी होती है ताकि मांस जल्दी ही पखाने के रास्ते बाहर निकल जाए जबकि शाकाहारी जानवरों और मानव की आंतें अनुपात में तीन गुनी बड़ी और ज्यादा घुमावदार होती है ताकि अन्न, फल, सब्जियों का रसा अच्छी तरह सोख ले। यदि आप मांसाहारी है तो आपने नोट किया होगा कि फ्रिज के निचले खाने में इतनी ठंडक होने के बावजूद मांस कुछ ही घंटों में सड़ने लगता है।
फिर मानव शरीर की गर्मी में मांस के आंत में अटक-अटक चलने में इसकी क्या गति होती होगी, कभी सोचा आपने ? आपने कभी सड़क पर कुचला कुत्ता देखा है कितनी सी देर में उसमें से बदबू आने लगती है तो क्या हमारी आंत में पड़ा मांस तरोताजा बना रहता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मांसाहारी पशुओं के आमाशय में जो तेजाब रिसता है वह शाकाहारी पशुओं और मानव के आमाशय में रिसने वाले तेजाब से बीस गुना ज्यादा तीखा होता है, ताकि मांस जल्दी गला सके। ऐसे तेजाब के अभाव में हमारे आमाशय में पड़े मांस की क्या हालत होती होगी? भारत जैसे देश में, बहुसंख्यक आबादी किसी न किसी रोग से ग्रस्त है। हमारे शरीर में तरह-तरह की बीमारियां पल रही हैं, तो जो जानवर काटे जा रहे हैं उनके वातावरण, भोजन और रखरखाव में जो नर्क से बदतर जिंदगी होती है, उससे कैसा मांस आप तक पहुंचता है? फिर आप तो जानते हैं कि भारत में कितना भ्रष्टाचार है। जिन भी इंस्पेक्टरों की ड्यूटी कसाईखानों में लगी होती है उनसे क्या आप राजा हरिशचंद्र होने की उम्मीद कर सकते हैं? या वक्त के साथ चलने वाला होशियार आदमी।
कई बरस पहले दिल्ली के पांच सितारा होटल में पोषण विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। वहां दोपहर के भोजन के समय शोर मच गया। दुनिया भर से आए पोषण विशेषज्ञ डाक्टरों ने कहा कि लंच में जो मुर्गे परोसे गए वे सड़े हुए हैं। होटल के महाप्रबंधक तक खबर पहुंची। फौरन दौड़े-दोड़े बैंक्वट हॉल में आए। आयोजकों से माफी मांगी। सरकारी नौकरी चले जाने का हवाला देकर खुशामद की। समझौता हुआ कि लंच का जो बीस-तीस हजार रुपये का बिल बना था वो माफ हो जाएगा। तभी होटल वालों को पता चला कि वहां डाक्टरों की भीड़ में एक संवाददाता भी मौजूद था। घबराए हुए वे उस पत्रकार के पास आए और गिड़िगड़ा कर कहने लगे कि ये खबर मत छापिएगा। लालच देने लगे कि आपके शादी में पचास फीसद बिल माफ कर देंगे। जब उसी पत्रकार ने इस पर तहकीकात की तो पता चला कि आमतौर पर कमीशन के चक्कर में सबसे सड़े, बासी और बेकार मुर्गे वहां और कई बड़े होटलों में खरीदे जाते हैं। कुछ समय बाद खबर छपी। ‘पोषण विशेषज्ञों को पांच सितारा होटल ने सड़े मुर्गे परोसे।’ यह दिल्ली के एक प्रतिष्ठित पांच सितारा होटल की कहानी है तो बाकी की बात आप खुद ही समझ लीजिए।
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