सामयिक : भाजपा की सुनामी में बही आप

Last Updated 10 Feb 2025 01:28:13 PM IST

दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) का किला बुरी तरह ढह गया है। आतिशी को छोड़ कर पार्टी के लगभग तमाम दिग्गज नेता चुनाव हार गए हैं, और आप ने इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है।


सामयिक : भाजपा की सुनामी में बही आप

2015 में आप ने 67 सीटें जीती थीं लेकिन 2020 में यह संख्या घट कर 62 रह गई थी। वहीं, भाजपा ने 2015 में मात्र 3 सीटें जीती थीं जबकि 2020 में 8 सीटें जीतने में सफल हुई थी और बंपर जीत के साथ पूरे 27 सालों बाद अब दिल्ली में सरकार बनाने में सफल हुई है। 

सत्ताइस साल पहले भाजपा की सुषमा स्वराज आखिरी बार 52 दिन के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं और अब दिल्ली में भाजपा की सत्ता में बड़ी वापसी हुई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली आप पर घोटाले के गंभीर आरोप लगे थे और यह विधानसभा चुनाव इस बार आप के लिए नाक का सवाल था लेकिन भाजपा ने आप को दिल्ली में जीत का चौका लगाने से रोक दिया। बड़ा सवाल यही है कि आखिर, आप की बड़ी हार के पीछे प्रमुख कारण क्या रहे? दिल्ली में आप ने करीब एक दशक तक शासन किया और लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण जनता के बीच असंतोष और बदलाव की इच्छा बढ़ी थी। विकास कार्य की कमी, बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी और वादों को पूरा न करने के आरोपों ने सत्ता विरोधी लहर को मजबूत किया। परिणामस्वरूप मतदाताओं ने विकल्प के रूप में भाजपा की ओर रुख किया। 

राजनीति में आने से पहले केजरीवाल ने कहा था कि वो वीवीआईपी कल्चर को खत्म करेंगे, गाड़ी, बंगला और सुरक्षा लेने की बात से भी उन्होंने इनकार किया था लेकिन सत्ता मिलने के बाद उन्होंने लग्जरी गाड़यिां तो लीं ही, केंद्र से जेड प्लस सुरक्षा मिलने के बावजूद पंजाब सरकार की शीर्ष सुरक्षा भी ली। पार्टी की आंतरिक कलह और नेतृत्व के मुद्दों ने भी आप की हार में योगदान दिया। कई वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने या निष्क्रिय होने से संगठनात्मक ढांचे में कमजोरी आई। नेतृत्व के प्रति असंतोष और निर्णय लेने में पारदर्शिता की कमी ने भी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के मनोबल को प्रभावित किया। आप सरकार ने बिजली, पानी और अन्य सुविधाएं मुफ्त मुहैया कराने की घोषणा की थी लेकिन विपक्ष ने इसे ‘रेवड़ी संस्कृति’ कह कर आलोचना करते हुए आर्थिक रूप से अव्यावहारिक बताया। 

इन योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में समस्याओं ने भी जनता के बीच नकारात्मक धारणा बनाई जिससे ‘आप’ की लोकप्रियता में गिरावट आई। दिल्ली में सड़क, परिवहन और स्वच्छता के क्षेत्रों जैसे बुनियादी ढांचे के विकास में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई।  प्रदूषण, जलभराव और कूड़े के ढेर जैसी समस्याओं का समाधान न होने से जनता में केजरीवाल सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी। इन मुद्दों पर सरकार की निष्क्रियता ने मतदाताओं को निराश किया। दिल्ली में आप की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण मुफ्त बिजली-पानी जैसी योजनाओं को माना जाता रहा लेकिन चुनाव के दौरान भाजपा ने भी ‘आप’ वाला ही दांव खेला और अपने चुनावी संकल्पों में महिलाओं, बच्चों व युवाओं से लेकर ऑटो रिक्शा चालकों तक के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो कीं ही, साथ ही यह ऐलान भी किया कि सत्ता मिलने पर आप द्वारा चलाई जा रहीं तमाम योजनाओं को जारी करेगी। भाजपा की इन घोषणाओं से आप की चुनौती बहुत बढ़ गई थी।

विपक्ष खासकर भाजपा की मजबूत रणनीति तथा मुखर प्रचार आप के लिए बड़ी चुनौती बना। कांग्रेस ने भी इस तरह टिकट बांटे जिसने कई सीटों पर आप को आसान जीत से रोकने में अहम भूमिका निभाई। भ्रष्टाचार, विकास की कमी और अन्य मुद्दों पर केंद्रित अभियानों ने जनता के बीच आप के प्रति नकारात्मक धारणा बनाई। भाजपा ने सामाजिक-धार्मिंक मुद्दों को भी पुरजोर तरीके से उठाया जिससे आप के समर्थन में बड़ी कमी आई। चुनाव से पहले कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन की चर्चाएं थीं लेकिन हरियाणा विधानसभा में दोनों के बीच गठबंधन न होने के कारण दिल्ली में भी दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो सका जिसके चलते विपक्षी मतों का विभाजन हुआ और इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला।  

पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने एक भी सीट नहीं जीती थी। 2015 में कांग्रेस को 9.7 प्रतिशत मत मिले थे लेकिन 2020 में मतों का प्रतिशत गिर कर 4.3 फीसद रह गया था लेकिन इस बार कांग्रेस के मत प्रतिशत में जो बढ़ोतरी हुई है, उसका नुकसान भी आप को भुगतना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी हर चुनावी सभा में ‘आप’ को ऐसी ‘आपदा’ करार देते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश भरने का भरपूर प्रयास किया जिसने जनता के फायदे के लिए मिलने वाली केंद्र की प्रत्येक जनकल्याणकारी योजना को दिल्ली में लागू नहीं होने दिया। इससे भी मतदाताओं के बीच आप की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ा और ‘आपदा’ वाले नारे से भाजपा कार्यकर्ताओं का जोश कई गुना बढ़ा। दिल्ली की आबादी में पूर्वाचल (बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड) से आए लोगों की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है और विपक्ष ने इस समुदाय की समस्याओं को नजरअंदाज करने के आरोप लगाते हुए आप सरकार को घेरने में कसर नहीं छोड़ी।

हरहाल, केजरीवाल का दावा था कि राजनीति में नैतिकता और शुचिता की राजनीति करने आए हैं, लेकिन उन्होंने दूसरे राज्यों के चुनावों में जिस तरह से पैसा खर्च किया और दिल्ली में कोरोना काल के दौरान करोड़ों रुपये खर्च कर जो ‘शीशमहल’ बनवाया, उसे लेकर उन पर लगातार लगते रहे आरोपों का पार्टी के पास ही कोई कारगर जवाब नहीं था। देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के बड़े-बड़े दावों के बीच शराब घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के छींटे, केजरीवाल की तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व शैली, अड़यिल रवैया, इस तरह की बातों से मतदाताओं का केजरीवाल से मोहभंग होता गया और भाजपा एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरती गई। कुल मिला कर केजरीवाल की कथनी-करनी के बीच बड़ा अंतर आप की हार का बड़ा कारण रहा।
(लेख में विचार निजी हैं)

योगेश कुमार गोयल


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