सामयिक : विश्वासवाद से राष्ट्रवाद की ओर
पिछली सदी में वैश्विकरण पर जोर था। वर्तमान में स्वदेशीकरण पर। दुनिया के अनेक देशों में अपना राष्ट्र, संस्कृति, विरासत, परंपराओं, उत्पाद और अपनी विचारधारा को प्राथमिकता दी जा रही है।
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यूरोप के अधिकांश देशों में राष्ट्रवादी पार्टयिां, जिनमें बहुत सी हाल में बनाई गई हैं, सत्ता के करीब आ रही हैं। पश्चिम में सबसे अमीर देश अमेरिका और पूर्व में विकासशील भारत, दोनों में राष्ट्रवाद की नई लहर जीवन के हर क्षेत्र में स्वदेशीकरण एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रही है। ट्रंप और मोदी, दोनों की नीतियों में समानताएं अधिक हैं, विषमताएं कम।
ट्रंप ‘अमेरिका पहले’ और ‘अमेरिका में उत्पादन’ की नीति पर चल रहे हैं, तो मोदी ‘मेक इन इंडिया’ की नीति को बढ़ावा देने पर। अनधिकृत अप्रवासियों (माइग्रेंट्स) को दोनों ही देश के लिए खतरा मानते हैं। दोनों विश्व के बड़े जनतांत्रिक देश हैं किंतु अमेरिका में राष्ट्रपति की निर्णय लेने की संवैधानिक शक्ति भारत के प्रधानमंत्री से अधिक हैं। शपथ लेते ही ट्रंप ने अपनी नीतियों के कार्यान्वयन के लिए आदेशों की झड़ी लगा दी, जो भारत के प्रधानमंत्री के लिए संभव नहीं है। यूरोप में राष्ट्रवादी पार्टयिां, जिन्हें दक्षिणपंथी कहा जा रहा है, वर्षो से सत्ता में रही पार्टयिों को चुनौती दे रही हैं। यह अप्रत्याशित घटना नहीं है। आर्थिक असुरक्षा, बढ़ती बेरोजगारी, नकारात्मक जीडीपी, मुक्त आयात एवं सामाजिक असंतुलन और विद्वेष को जन्म देता अप्रवासी प्रवाह इसकी पृष्ठभूमि में है।
नीदरलैंड के उच्च सदन में सबसे अधिक सीट इस बार दक्षिणपंथी फार्मर सिटीजन मूवमेंट पार्टी ने हासिल कीं। इंग्लैंड में टोरी पार्टी के अग्रणी उम्मीदवारों के साथ-साथ लेबर पार्टी के कुछ बड़े चेहरे भी राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ाने में लगे हैं। जर्मनी में थोड़ी अवधि को छोड़ कर 2010 के बाद से वामपंथी दलों की स्थिर सरकार नहीं बन पाई। वियना में राष्ट्रवादी फ्रीडम पार्टी का गठन सुर्खियों में रहा। यूरोपीय संघ ने इस पर प्रतिबंध तक लगाए। यूरोपीय संघ की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इटली का नेतृत्व मेलोनी कर रही हैं, जिन्हें दक्षिणपंथी कहा जा रहा है।
फिनलैंड में द फिंस गठबंधन सरकार में आई जिसका झुकाव राष्ट्रवाद की ओर है। फ्रांस में राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों का प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रवादी नेता मरीन ले पेन से कड़ा मुकाबला है। अप्रवासियों और बहुसंस्कृतिवाद की घोर विरोधी स्वीडन डेमोक्रेटिक पार्टी संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। ग्रीस में दक्षिणपंथी पार्टयिों का संगठन सत्ता में आया है। स्पेन में स्थानीय चुनाव में राष्ट्रवादी बॉक्स पार्टी का अच्छा प्रदर्शन रहा। पोलैंड और हंगरी में राष्ट्रवादी पार्टयिां पहले से सत्ता में हैं। इस्रइल में यहूदी, अरबों को खतरा मानते हैं। अप्रवासन का सबसे अधिक असर फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन और ऑस्ट्रिया पर पड़ाैहै, जहां पिछले दशकों में मुस्लिम आबादी में खासी वृद्धि हुई है। अधिकांश देशों में शरणार्थी बन कर पहुंचे मुस्लिम अप्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है, जिन्हें पहले तो इन देशों ने गले लगाया, उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई, किंतु सामाजिक-धार्मिंक संतुलन आशातीत नहीं हो पाया, बढ़ते अपराधों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
पेरिस स्थित इंस्टीटय़ूट मोंटेगनेज की यूरोप प्रोग्राम की निदेशक जार्जिना राइट का मानना है कि राष्ट्रवादी पार्टयिों का यूरोप में जागरण मुख्यधारा की राजनीति से लोगों की नाराजगी है, जिनके पास इन मुद्दों का जवाब नहीं है: खुली सीमा बॉर्डर और राष्ट्रीय पहचान, पारंपरिक मूल्यों में गिरावट, वैीकरण का विरोध और बेहतर भविष्य की गारंटी एवं सरकारों का नागरिकों की सुरक्षा और जिंदगी बेहतर बनाने वाले निर्देशों पर नियंतण्रका अभाव। अधिकांश यूरोपीय देश अप्रवासन की कड़ी नीति अपना सकते हैं। भारत सहित अन्य विकासशील एवं एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के गरीब देशों के लोगों का पश्चिम के विकसित देशों में अवैध रूप से जाना और कठिन हो जाएगा। अमेरिका में सबसे अधिक अवैध अप्रवासी उसके पड़ोसी देशों मैक्सिको, वेनेजुएला और ग्वाटेमाला से हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत से 18,000 के अवैध प्रवासी अमेरिका में हैं।
अवैध अप्रवासन की समस्या से भारत पहले ही जूझ रहा है। 1970 के दशक में बांग्लादेश बनने के बाद से बांग्लादेशियों की घुसपैठ अब तक जारी है। 2007 में भारत के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री ने कहा था कि देश में 1.2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी हैं। 2014 में सीबीआई के एक पूर्व डायरेक्टर के अनुसार इनकी संख्या 5 करोड़ से ऊपर हो चुकी थी। देश के अधिकांश हिस्सों में बांग्लादेश के घुसपैठिए बड़ी संख्या में बस गए हैं, जिनके पास दलालों और स्थानीय नेताओं की मेहरबानी से नागरिकता संबंधी फर्जी दस्तावेज, राशन कार्ड भी हैं, सरकार की लोक कल्याण की योजनाओं का लाभ भी उन्हें मिल रहा है। उन्हें बाहर निकालने की बात तो सरकारें करती रही हैं किंतु इच्छाशक्ति का अभाव है, और अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। प. बंगाल और असम की डेमोग्राफी को तो बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों ने बदल ही दिया है। दोनों राज्यों के कई जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या मूल निवासियों से अधिक हो गई है। म्यांमार से आए रोहिंग्या की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ रही है। गृह मंत्रालय के अनुसार 40,000 से अधिक रोहिंग्या बिना दस्तावेज भारत में रह रहे हैं।
मुक्त व्यापार पर भी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंध विश्व व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं। प्रतिबंधों का मुख्य कारण है अमेरिका का बढ़ता व्यापार घाटा-आयात में वृद्धि और निर्यात में कमी। चीन, भारत, ब्राजील और अन्य देशों, जो अमेरिका के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं, पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी इन देशों के लिए अहितकर हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और अन्य संस्थाओं-विश्व व्यापार संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि पर भी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों का असर होगा। टैरिफ को लेकर इकतरफा नीति विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों का उल्लंघन होगा। जलवायु परिवर्तन संबंधी पेरिस समझौते पर अमल करने से भी उन्होंने इनकार कर दिया है। उनकी फंडिंग नीति विश्व की कई बड़ी संस्थाओं को भी प्रभावित करेगी।
(लेख में विचार निजी हैं)
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