दिल्ली हिंसा : इंसाफ की अंधी गलियां

Last Updated 22 Jan 2025 12:34:55 PM IST

दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान के लिए तैयार है, और पांच साल पहले भड़के उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों का दर्द फिर उभर आया है।


दिल्ली हिंसा : इंसाफ की अंधी गलियां

दंगों की साजिश के आरोप में बहुत से लोग यूएपीए के तहत जेल में हैं, और उस मुकदमे का न्याय ठिठका हुआ है। वैसे पुलिस ने दंगे से जुड़े 758 मामले पंजीकृत किए थे। इनमें से एक स्पेशल सेल, 62 क्राइम ब्रांच और 695 उत्तर-पूर्वी दिल्ली के विभिन्न थानों में पंजीकृत हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफआईआर दर्ज कीं। इनमें अभी तक 2619 लोगों की गिरफ्तारी हुई जिनमें से 2094 लोग जमानत पर हैं। अब तक सिर्फ 47 लोगों को दोषी पाया है, और 183 लोग बरी भी हो गए हैं। 75 लोगों के खिलाफ सबूत न होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है। इतने वर्ष बीतने के बावजूद इनमें से अभी तक 268 मामलों में जांच पूरी नहीं हो पाई है।

जरा सोचें 1680  दिन बाद दंगे के कौन से साक्ष्य अब मिलेंगे? कुछ अर्जियां ऐसी भी हैं, जिन पर मामले दर्ज ही नहीं किए गए क्योंकि उनमें कुछ बड़े नाम थे। ऐसे भी मामले (57) जिनमें पुलिस के हाथ प्रमाण नहीं लगे और इन्हें बंद करने के लिए पुलिस ने अदालत से निवेदन किया है। ऐसे 43 मामलों की क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट ने स्वीकार कर ली हैं जबकि 14 रिपोर्ट अभी विचाराधीन हैं। सच है कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था का जिम्मा केंद्र सरकार का है, लेकिन न्याय और जेल राज्य सरकार के हाथों हैं। यह भी सामने आ चुका है कि दिल्ली हिंसा के पहले दिन ही अनेक जागरूक लोग मनीष सिसोदिया सहित आप के बड़े नेताओं के घर गए थे कि ‘हम सभी  को तनावग्रस्त इलाके में चल कर लोगों को समझा कर शांत करना चाहिए’ लेकिन इन नेताओं ने इससे इनकार कर दिया था। विदित हो दिल्ली में विधानसभा चुनाव के नतीजे के तत्काल बाद ही दंगे हो गए थे। इस आशय का पत्र और तथ्य अब चार्जशीट के हिस्से हैं। 

दंगों के तत्काल बाद दिल्ली सरकार के दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इसके चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद और गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर काजी, प्रो. हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक, सलीम बेग, देविका प्रसाद तथा अदिति दत्ता सदस्य थे। इस जांच कमेटी ने दंगों में घोषित मुआवजे के लिए लिखे गए 700 प्रार्थनापत्रों का अध्ययन किया। अपने अध्ययन के बाद कमेटी ने पाया कि अधिकतर मामलों में क्षतिग्रस्त जगह का दौरा भी नहीं किया गया और जिन मामलों में जान-माल का नुकसान पाया गया, उनमें भी बहुत कम धनराशि, अंतरिम सहायता के रूप में दी गई। दंगों के तुरंत बाद कई लोग घर छोड़ कर चले गए। इसलिए बहुत से लोग मुआवजे के लिए आवेदन नहीं कर सके।

मुआवजे में भी सरकारी अधिकारी के मरने पर उनके परिवार वालों को एक करोड़ की रकम दी गई जबकि एक आम नागरिक की मौत पर केवल 10 लाख रु पये का मुआवजा दिया गया। मुआवजे का कोई तार्किक आधार तय नहीं किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, फिर भी दंगा पीड़ितों को केंद्र ने कोई मदद नहीं की।  इस बात के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है कि अप्रैल, 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (एनईडीआरसीसी) के गठन के बावजूद आज भी 2,790 दावे अनसुलझे हैं। वादे-दावे आगे चल कर  सरकार बनाम उपराज्यपाल के झगड़े में फंस गए। 25 अगस्त, 2022 को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दावों के निपटान में तेजी लाने के लिए आयोग में 40 नये हानि मूल्यांकनकर्ताओं को नियुक्त किया। उन्हें नुकसान का आकलन कर रिपोर्ट दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश करने के लिए कहा गया।

एलजी सक्सेना ने मौजूदा 14 मूल्यांकनकर्ताओं को 25 अगस्त की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर उन्हें सौंपे गए दावा निपटान पर अपनी रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया। कहा गया कि इन मूल्यांकनकर्ताओं में से कुछ को सरकार द्वारा उन्हें दी गई जिम्मेदारी के बारे में भी पता नहीं था। बहुत से लोगों ने काम ही नहीं शुरू किया। उधर आयोग के अधिकारी कहते हैं कि एलजी द्वारा नियुक्त असेस्मेंट टीम के 40 में से 5 से ही उनका संपर्क हो पाया। हालांकि यहां लोगों ने लाखों गंवाए हैं, समय के साथ उनके जख्म भर रहे हैं। बहुत से लोगों ने नये सिरे से रोजी-रोटी के रास्ते खोले हैं, लेकिन सरकार के मुआवजे के दावे और निर्दोष लोगों को न्यायिक सहयोग में आप सरकार की निर्ममता और लापरवाही केंद्र सरकार से कम नहीं हैं। न्याय की बात हो या राहत की या लोगों की नफरत मिटा कर सौहार्द के प्रयास की-तीनों कार्य राज्य की सरकार की जिम्मेदारी थे। वो मुकदमों के तेजी से निबटारे और दोषियों को सजा के लिए भी दबाव बना सकती थी, लेकिन आप सरकार इन सभी मुद्दों से मुंह मोड़े रही।

पंकज चतुर्वेदी


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