भारत : समग्रता में ढलता देश
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से महाकुंभ के दृश्य पूरे देश को आह्लादित कर रहे हैं। उन दृश्यों को देखने और वहां से निकल रहे वक्तव्यों से पूरे विश्व में फैले सनातनियों के अंदर इच्छा बलवती हो रही है कि एक बार प्रयागराज महाकुंभ जाकर पवित्र त्रिवेणी की डुबकी अवश्य लगाएं।
भारत : समग्रता में ढलता देश |
तेरह जनवरी को बुधादित्य महायोग के दिन का आंकड़ा एक करोड़ 75 लाख तो 14 जनवरी को लगभग 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं के संगम स्नान करने का आया है। संपूर्ण विश्व आश्चर्यचकित हो इन दृश्यों को देख कर इसके पीछे की शक्ति और भावना को समझने की कोशिश कर रहा है। कल्पना करिए, बारह फरवरी तक जन समूह की संख्या कितनी पहुंच जाएगी। मोटा-मोटी आकलन है कि लगभग 40 करोड़ लोग देश-विदेश से प्रयागराज महाकुंभ पहुंचेंगे।
भगवा की बहुतायत लेकिन प्रकृति में उपस्थिति हर रंग की ध्वजाएं, पताकाएं और कवेश पहने साधु-संत, गांव-घर के आम देशी-विदेशी जन ने ऐसा विहंगम दृश्य प्रस्तुत किया है जिसका वर्णन आसान नहीं है। लगातार बजते घड़ी-घंटाल, शंखों की गूंजती ध्वनि, मंत्रोच्चार, 24 घंटे पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते असंख्य लोग, यज्ञशालाओं से निकलते हवनकुंड की अग्नि के सुगंध और भजन-कीर्तन के साथ प्रवचनों की ध्वनियों और ऊपर आकाश से हेलीकॉप्टरों द्वारा पुष्प वष्रा से निर्मिंत वातावरण और वहां जाने वालों के चेहरों के भावों को शब्दों से वर्णित नहीं किया जा सकता। हालांकि इसके सूक्ष्म प्रभावों को न समझने वाले शब्दातीत, वर्णनातीत आदि शब्दावलियों को अतिवादी कह सकते हैं किंतु सच यही है।
केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार ने इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ लोगों की रिकॉर्ड उपस्थिति का आकलन करते हुए हरसंभव व्यवस्था की है। पूरे कुंभ नगर का विस्तार 4000 हेक्टेयर करके 25 सेक्टरों में बांटा गया, डेढ़ लाख से अधिक टेंट लगाए गए, 44 घाटों पर स्नान की व्यवस्था हुई जो 12 किमी. लंबाई में फैली है। 102 पार्किंग बनाए गए हैं, जिनमें साढ़े 5 लाख गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं। कुल 45 दिनों में रेलवे, हवाईजहाज, राज्य सरकार की बसें, शटल बसें आदि की रिकार्ड संख्या विस्तारित की गई है। समाज में विचार, व्यवहार, कर्मकांड आदि के बीच विरोधाभास, विविधताएं या विभाजन कोई आज नहीं, सदियों से है।
जरा सोचिए, महान ऋषि-मुनियों ने किस तरह समय-समय पर इन सबको समन्वित करते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड या मानव, जीव-अजीव, सबके कल्याण का भाव पैदा करने के महान अवसरों की दिव्य परंपराएं स्थापित कीं। जिस तरह प्रकट दिखती गंगा-यमुना और अमूर्त सरस्वती का संगम है, उसी को साकार करता जनसमूह अलग-अलग विचारधाराओं, पंथों, मतों, भाषाओं, क्षेत्रों, रंग-रूपों, जातियों, संप्रदायों, सब वहां जाकर वाकई एक हो जा रहे हैं। न कोई भेद, न दूरी और कोई किसी से उसकी जाति-नस्ल-पंथ-संप्रदाय स्वयं को दूर करने या भेद करने की दृष्टि से पूछता भी नहीं। उत्सुकतावश जानकारी के लिए पूछते और एक दूसरे से परिचय करते हैं।
इस तरह से देखा जाए तो महाकुंभ संपूर्ण विश्व के जन-जन को एक करने यानी मातृभूमि पुत्रोअहम पृथिव्या की अथर्ववेद की अवधारणा को साकार करने का पर्व है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया है और यह निर्वाण की भूमि मानी गई है। पुरु षार्थ चातुष्ट्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों का विपुल भंडार। माना गया है कि यहां आने से सब खुल जाते हैं और त्रिवेणी के तट से अंतर्मन के सारे विकार, क्लेश, दोष मिट जाते हैं। मूल बात है संगम और कुंभ के भाव को समाहित करने की। वह वहां तो साकार दिखता है। जैसा आप जानते हैं कुंभ के हमारे यहां अनेक अर्थ हैं। कुंभ अमृत कलश माना गया है।
वेदांत में कुंभ घटा आकाश यानी हृदय एक कुंभ है, कुंभ एक राशि है, इस कुंभ के भाव में गंगा और शिव समाहित हैं। हमारे देश में अंग्रेजों के समय से कथित इतिहासकारों ने भारत और सनातन की सारी परंपराओं, प्रथाओं, पवरे, त्योहारों, पावन अवसरों के अतीत को तिथियों में देखने और अपनी अज्ञानता प्रदर्शन करने की ऐसी नींव डाली कि अकादमी क्षेत्र में कोई भी विषय अविवादित रहा ही नहीं। किसी की तिथि मान्य नहीं, उम्र मान्य नहीं किंतु जनमानस के लिए संगम का आरंभ कब से हुआ, किसने किया, किस काल में था इनके न कोई अर्थ थे, न हैं, और न आगे होंगे। यह हमारे महान पूर्वजों के दिए गए संस्कार और चरित्र हैं, जिनने आज तक ऐसी राजनीतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक, आर्थिक व्यवस्थाओं और ढांचों की प्रतिकूलताओं से परे किसी न किसी रूप में मौलिकता के साथ भी इन सबको कायम रखा है। सच कहा जाए तो यही हमारी अंत:शक्ति है, जिस पर भारत विश्व के लिए आदर्श और दिशा देने वाला देश बन सकता है।
संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका हो गई है। ऐसा नहीं है कि राजनीतिक सत्ता हमारे धर्म, कर्मकांड आदि के रास्ते निर्धारित करती हैंं किंतु अगर उन्हें इसकी समझ है या वे इसके ज्ञानियों से समझने की कोशिश करते हैं, तो अनुकूलताएं निर्मिंत होती हैं, व्यवस्थाएं खड़ी होती हैं, उसके अनुरूप आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती हैं, जिनसे ऐसे अवसरों पर संत-महात्मा, साधु- संन्यासी, विद्वतजन, आम श्रद्धालु सभी अपने कर्म करने में सहजता महसूस करते हैं।
इनसे महाकुंभ जैसे आयोजन अपनी संपूर्णता में प्रकट होते हैं। इसी मायने में मोदी सरकार और योगी सरकार पूर्व की सरकारों से गुणात्मक रूप से भिन्न प्रमाणित हो रही हैं। इतने विशाल और लंबे आयोजन की दृष्टि से कोई भी व्यवस्था संपूर्ण या आदर्श नहीं हो सकती। महाकुंभ जैसे आयोजन में बगैर कुछ बोले संपूर्ण विश्व में संदेश जा रहा है कि कैसे एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग पंथ, संप्रदाय, जिनके बीच घोर मतभेद और कुछ के मध्य संघर्ष रहे हैं, सब इकट्ठे होकर आत्मोद्धार, समाज और विश्व कल्याण के भाव से संगम में स्नान-यज्ञ आदि कर रहे हैं। यह भी स्थापित हो रहा है कि यह प्राचीन सभ्यता और महान विरासत के ठोस आधारों पर खड़ा आधुनिकतम सोच और व्यवस्थाओं से सामंजस्य बिठाने वाला परिपूर्ण देश है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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