चीन ने बनाया वाटर बम : रणनीतिक सूझ दिखाए भारत
पिछले साल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में जब पूर्वी लद्दाख को लेकर भारत और चीन के बीच समझौते की खबर आई तो एकबारगी लगा कि एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और परमाणु सशस्त्र सेनाओं के बीच संबंध सामान्य हो रहे हैं।
चीन ने बनाया वाटर बम : रणनीतिक सूझ दिखाए भारत |
दोनों देशों के रिश्तों में ’हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ वाली नरमी लौटने से एक उम्मीद जगी थी कि एशियाई रिजन तनाव व संघर्ष के वातावरण से मुक्त हो सकेगा। दुर्भाग्य से पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों के बीच विश्वास बहाली की जमीन पुख्ता हो पाती इससे पहले ही चीन ने तिब्बत में ब्रहमपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े डैम प्रोजेक्ट को मंजूरी देकर विवाद को हवा दे दी। चीन के इस निर्णय से भारत सकते में है।
भारत का मानना है कि चीन के इस प्रोजेक्ट से निचले बहाव वाले देशों खासकर भारत और बांग्लादेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत ने इस प्रोजेक्ट पर कड़ी आपत्ति प्रकट की है। उसने चीन सरकार को दो टूक कहा है कि किसी भी तरह के निर्माण से पहले निचले बहाव वाले देशों के हितों का ध्यान रखा जाए। भारत का मानना है कि बांध का निर्माण जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षति और निचले इलाकों में जल संकट उत्पन्न कर सकता है। हालांकि, चीन ने योजना का बचाव करते हुए कहा है कि दाकों के अध्ययन के बाद सुरक्षा मुद्दों का समाधान किया गया है, इसलिए बांध के निर्माण से दूसरे देशों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा, लेकिन सवाल यह है कि चीन की कथनी और करनी पर किस हद तक भरोसा किया जाए। बांग्लादेश की युनूस सरकार ने परियोजना पर सवाल खड़े किए हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील के पूर्व की ओर से निकलती है। भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए यह बांग्लादेश तक जाती है। इसकी कुल लंबाई 2880 किमी है। तिब्बत में इसका नाम यारलुंग सांगपो है। तिब्बत में इसका बहाव क्षेत्र 1625 किमी है। भारत में इसकी लंबाई 918 किमी है। यहां इसे सियांग, दिहांग और ब्रहमपुत्र के नाम से जाना जाता है। नदी का बाकी 337 किमी का हिस्सा बांग्लादेश में है, जहां इसे ‘जमुना कोयला’ कहा जाता है। तीन देशों में बहाव क्षेत्र होने के कारण नदी पर शुरू की जाने वाली किसी भी परियोजना या एक तरफा तौर पर होने वाले निर्माण पर सवाल उठने लगते है। पिछले 25 दिसम्बर को जब चीन ने ब्रह्मपुत्र पर 60,000 मेगावाट की क्षमता वाली दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना के निर्माण की घोषणा की खबरे मीडिया में आई तो भारत सरकार हरकत में आई।
दरअसल, चीन जिस तरह से अपनी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं का उपयोग प्रतिद्वंद्वी देशों को आर्थिक और रणनीतिक मोच्रे पर घेरने के लिए करता है उससे भारत की चिंता बढ़नी ही थी। चिंता के कई बड़े कारण है। पहला, इस परियोजना के शुरू होने के बाद भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र पर हमेशा चीनी दखल का खतरा मंडराता रहेगा। दूसरा, चीन का भारत और बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद बढ़ सकता है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी के पानी पर तीनों देशों के दावे को लेकर विवाद है। तीसरा, भारत-चीन संबंधों में तनाव उत्पन्न होने की स्थिति में चीन इस डैम को भारत के साथ सौदेबाजी का जरिया बना सकता है। चौथा, चीन इस डैम का उपयोग ‘वाटर बम’ के तौर पर भी कर सकता है।
तनाव और विवाद की स्थिति में चीन इस डैम के जरिए भारत के सीमाई इलाकों में बड़ी मात्रा में वाटर फ्लो करके बाढ़ जैसे हालात पैदा कर देगा। सच तो यह है कि ब्रह्मपुत्र अरुणाचल प्रदेश और असम की जीवन रेखा है, जो पांच करोड़ से अधिक लोगों को पेयजल, सिंचाई और जलविधुत के लिए पानी उपलब्घ कराती है। ऐसे में अगर चीन ब्रह्मपुत्र पर बांध का निर्माण करता है तो पानी के बहाव पर उसका नियंत्रण हो जाएगा।
परिणामस्वरूप वह शुष्क मौसम के दौरान पानी के प्रवाह को कम कर कृषि और पेयजल के लिए जल संकट उत्पन्न करने में संकोच नहीं करेगा। दूसरी ओर मानसून के दौरान अतिरिक्त पानी छोड़ने का भी खतरा बना रहेगा। इससे पहले भी चीनी अपस्ट्रीम गतिविधियों के कारण असम, अरुणाचल और हिमाचल में बाढ़ आ गई थी। दरअसल, चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं को लेकर हमेशा संशय की स्थिति बनाए रखता है। निर्माण योजना को लेकर पड़ोसी देशों के बीच भ्रम बनाए रखना और महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं की जानकारी साझा करने से बचना उसकी इसी ‘निर्माण नीति’ का हिस्सा है। साल 2010 में कई वर्षो के इनकार के बाद उसने स्वीकार किया कि वह ब्रह्मपुत्र पर जंगमु बांध बना रहा है।
हालांकि, भारत का पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नदी के पानी को लेकर विवाद है लेकिन दोनों देशों के साथ संधि होने के कारण इस मुद्दे को सुलझाया जा सकता है परन्तु चीन के साथ भारत की कोई संधि नहीं है दोनों के बीच केवल एक समझौता ज्ञापन है जिसके तहत चीन केवल ब्रह्मपुत्र पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा प्रदान करता है। यह एक अस्थायी समझौता है जिसकी हर पांच साल में समीक्षा की जाती है और चीन जब चाहे इससे पीछ हट सकता है। सवाल है भारत चीन की इस चुनौती से निबटने के लिए क्या कर सकता है। पूरे मामले में सबसे गंभीर और चिंताजनक पहलू यह है कि भारत को इस प्रोजेक्ट की समय रहते खबर क्यों नहीं लगी? दूसरा जिस तरह से भारत ने एक सप्ताह से अधिक का समय बीतने के बाद चीन के समक्ष आपत्ती प्रकट की उस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
खैर! अब भी कोई बहुत ज्यादा देर नहीं हुई है। चीन की चुनौती से निबटने के लिए भारत ने रणनीतिक उपायों के साथ जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर आगे बढ़ने के संकेत दिए। हालांकि, भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर डैम का निर्माण कर चीन को काउंटर करने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा जिस तरह से 2023 की शुरुआत में भारत ने रणनीतिक चतुराई के साथ वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन का आयोजन करके ग्लोबल साउथ की दौड़ से चीन को अलग किया है, वैसी रणनीतिक सूझबूझ का परिचय मौजूदा चुनौती से निबटने में देना होगा।
(लेख में विचार निजी है)
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