पेंगुइन : जलवायु परिवर्तन की मार से त्रस्त
पेंगुइन ऐसा खूबसूरत पक्षी है जो पंखों के बावजूद उड़ नहीं पाता लेकिन पानी में बेहद तेज तैराक होता है। माना जाता है कि पेंगुइनों ने लाखों वर्ष पहले उड़ने की क्षमता खो दी थी।
पेंगुइन : जलवायु परिवर्तन की मार से त्रस्त |
शक्तिशाली फ्लिपर्स और सुव्यवस्थित शरीर उन्हें बहुत अच्छा तैराक बनाते हैं। यह सबसे तेज तैरने और सबसे गहरा गोता लगाने वाली पक्षी प्रजाति है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण तथा मानव गतिविधियों के कारण इस खूबसूरत पक्षी की कई प्रजातियां भी संकटग्रस्त हैं।
दुनिया भर में पेंगुइन की कुल 18 प्रजातियां पाई जाती हैं, जो स्फेनिस्कीनाई उप-परिवार के अंतर्गत आती हैं। इनमें ‘एडेली पेंगुइन’, ‘दक्षिणी रॉकहॉपर पेंगुइन’ और ‘मैकरोनी पेंगुइन’ प्रमुख रूप से शामिल हैं। पेंगुइन की 18 प्रजातियों में से 11 प्रजातियां अब संकटग्रस्त अथवा विलुप्तप्राय: की श्रेणी में आती हैं। पेंगुइन की आबादी प्रति वर्ष खतरनाक दर से घट रही है, और दुनिया के अधिकांश लोग इस बात से इसीलिए अनजान हैं क्योंकि उन्हें अपने प्राकृतिक आवास में पेंगुइन देखने को नहीं मिलते। पेंगुइन की 72 प्रतिशत प्रजातियों की आबादी घट रही है, और 5 प्रजातियां लुप्तप्राय मानी जाती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बेहतर सुरक्षा और संरक्षण उपायों को लागू नहीं किया गया तो इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। आईयूसीएन ने पेंगुइन की अनेक प्रजातियों को संकटग्रस्त की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है। यही कारण है कि पेंगुइन की सुरक्षा के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय संगठन प्रयासरत हैं, और 2000 से प्रति वर्ष 20 जनवरी को ‘पेंगुइन जागरूकता दिवस’ भी मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य पेंगुइन के संरक्षण और उनके आवासों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह दिवस पेंगुइन संरक्षण को बढ़ावा देने के प्रयास में पेंगुइन के आवासों की सुरक्षा पर जोर देता है।
जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फ की चादर पिघलने और समुद्री तापमान में वृद्धि होने के कारण पेंगुइन के प्रजनन स्थल और भोजन के स्रोत प्रभावित हो रहे हैं। विषाक्त प्लास्टिक, मछली पकड़ने, तेल रिसाव, आवास विनाश और पर्यटन जैसी तेजी से बढ़तीं मानवीय गतिविधियों के कारण भी पेंगुइन के आवासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। समुद्र में ‘लेर्पड सील’ और ऑर्का जैसे शिकारी भी पेंगुइन के लिए खतरा बनते हैं।
पेंगुइन अपने बच्चों को अंटार्कटिका की बर्फ पर पालते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण वे खतरे में हैं। अमेरिका में ‘सेंटर फॉर बायोलॉजिकल डायर्वसटिी’ के जलवायु विज्ञान निदेशक शाय वुल्फ का कहना है कि पेंगुइन का अस्तित्व इस पर निर्भर करता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सरकार क्या ठोस कदम उठाती है। अमेरिकी सरकार का मानना है कि जलवायु परिवर्तन इन पक्षियों के असफल प्रजनन का बड़ा कारण बन रहा है।
वेडेल सागर में हैलीबे कॉलोनी दुनिया में एम्परर पेंगुइन की दूसरी सबसे बड़ी कॉलोनी है। इस कॉलोनी ने कई वर्षो तक समुद्री बर्फ की खराब स्थिति का सामना किया है। ऐसे में 2016 में सभी नवजात चूजे डूब गए थे, जिससे इनकी कॉलोनी को बहुत नुकसान हुआ था। इसीलिए अमेरिकी सरकार चेतावनी दे चुकी है कि एम्परर पेंगुइन को ‘अज्रेट क्लाइमेट एक्शन’ की सख्त जरूरत है।
हालांकि ‘वाइल्ड लाइफ एजेंसी’ का कहना है कि पिछले 40 वर्षो के उपग्रह डेटा और अन्य सबूतों की जांच से सामने आया है कि पेंगुइन पर फिलहाल विलुप्त होने का तो खतरा नहीं है, लेकिन यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं है। ‘वाइल्ड लाइफ एजेंसी’ द्वारा इस पक्षी को पर्यावरण समूह, सेंटर फॉर बायोलॉजिकल डायर्वसटिी द्वारा 2011 में लगाई गई एक याचिका की मदद लेकर ‘ए डेंर्जड स्पीशीज एक्ट’ के तहत रखा गया है।
बहरहाल, बढ़ते तापमान के कारण समुद्री बर्फ पिघल रही है, जिससे पेंगुइन की प्रजनन और भोजन खोजने की क्षमता प्रभावित हो रही है। समुद्रों में प्लास्टिक और अन्य प्रदूषण पेंगुइन के लिए बड़ा खतरा बन रहे हैं। पेंगुइन अक्सर प्लास्टिक को भोजन समझ कर निगल लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। अत्यधिक मछली पकड़ने के कारण पेंगुइन के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो रही है।
पर्यावरणविद् जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका में रहने वाले एम्परर और एडेली पेंगुइन को लेकर तो बेहद चिंतित हैं क्योंकि उनका मानना है कि दो डिग्री तापमान परिवर्तन के साथ इन्हें आवास की गंभी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। पेंगुइन न केवल पृथ्वी की जैव विविधता का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि समुद्री खाद्य श्रृंखला का भी महत्त्वपूर्ण अंग हैं, जो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करते हैं। काले और सफेद रंग के उड़ने में असमर्थ पंख वाले खूबसूरत पेंगुइन पृथ्वी के सबसे प्यारे और अद्भुत जीवों में शुमार हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने जरूरी हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इन अद्वितीय पक्षियों की सुंदरता और विशिष्टता का आनंद ले सकें।
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