टीम इंडिया में अब बदलाव की जरूरत
भारतीय टीम सिडनी टेस्ट में हार कर पिछले एक दशक में पहली बार ऑस्ट्रेलिया के हाथों बोर्डर-गावस्कर ट्रॉफी को गंवा बैठी। इस दौरे और इससे पहले न्यूजीलैंड के हाथों घर में पहली बार 3-0 से सफाये के बाद लगने लगा है कि टीम इंडिया में अब बदलाव की जरूरत है।
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सही है कि इस सीरीज को खोने में बल्लेबाजों के योजना के हिसाब से नहीं खेलने, टीम चयन में गलतियां करने की तो भूमिका रही ही, टीम के दिग्गज बल्लेबाजों का नहीं चलना भी बड़ा कारण रहा। बेहतरीन स्पिनरों में शुमार रखने वाले रविचंद्रन अिन के बीच दौरे में संन्यास लेने की घोषणा के बाद महसूस किया जा रहा था कि कप्तान रोहित शर्मा और विराट कोहली भी इस तरफ कदम बढ़ा सकते हैं।
भारतीय कप्तान ने अपनी खराब फॉर्म की वजह से जब सिडनी टेस्ट की अंतिम एकादश से अपने को बाहर रखा तो लगा कि बदलाव के दौर की शुरुआत होने जा रही है। पर रोहित ने अगले ही दिन साफ कर दिया कि सिडनी टेस्ट नहीं खेलने का फैसला टीम के हित में लिया गया था पर मैं टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने नहीं जा रहा। वहीं विराट ने भी ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं। शायद इसकी वजह भारत को अब जून माह में इंग्लैंड का दौरा करके विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के अगले संस्करण की शुरुआत करनी है। अगला टेस्ट सीरीज में लंबा समय होने की वजह से ही शायद वह इस बारे में सोचने के लिए समय लेना चाहते हैं।
भारतीय कोच गौतम गंभीर से जब सीरीज खत्म होने पर सवाल पूछा गया कि रेड बॉल क्रिकेट में क्या दीर्घकालीन योजना बनाने और युवाओं पर फोकस करने का समय आ गया है, तो उनका जवाब था कि इस बारे में तत्काल चर्चा की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि टेस्ट सीरीज पांच महीने बाद होनी है। पांच महीने में बाद क्या होगा, हमें पता नहीं है। उस समय कौन कहां होगा। मैं इतना ही कह सकता हूं कि जो भी होगा, टीम के हित में होगा। गंभीर ने इतना जरूर कहा कि मैं किसी खिलाड़ी के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कह सकता, यह उन पर ही निर्भर है पर सीनियर खिलाड़ियों में अभी भूख बाकी है और वह भारतीय क्रिकेट को आगे ले जा सकते हैं।
मौजूदा भारतीय टीम ही नहीं, बल्कि हर टीम में बदलाव का दौर आता है। 2011-14 तक भी भारतीय टीम में ऐसा ही दौर आया था। उस समय सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों ने संन्यास लिया था और उनकी जगह विराट कोहली, रोहित शर्मा, चेतेर पुजारा और रविचंद्रन अिन ने ली थी। खिलाड़ियों को तो अक्सर लगता है कि उनमें अभी क्रिकेट बाकी है पर इस बारे में चयन समिति और कोच को ही सख्त फैसला करने की जरूरत होती है। तभी सही समय पर विकल्प तैयार किए जा सकते हैं। कई बार टीमें बदलाव करने में पिछड़ जाती हैं तो उन्हें पटरी पर आने में बहुत समय लग जाता है। इस बारे में श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है।
कोई दिग्गज खिलाड़ी लय में नहीं होता है तो कहा जाता है कि उसके लय में आने के लिए एक अच्छी पारी की देर है। विराट ने पर्थ टेस्ट में शतकीय पारी खेली। यह पारी भी उनकी समस्या का समाधान नहीं निकाल सकी और लगातार एक ही तरह से ऑफ स्टंप से बाहर की गेंदों पर ड्राइव करने के प्रयास में स्लिप में लपके जाते रहे। विराट की यह समस्या कोई पहली बार सामने नहीं आई है। यह कुछ सालों से इस समस्या से जूझ रहे हैं। लगता है कि उनके रिफलेक्सस में कमी आ रही है। वह दुनिया के बेजोड़ खिलाड़ी हैं और उन्होंने देश का सम्मान बढ़ाने वाली तमाम पारियां खेली हैं पर हर खिलाड़ी का समय आता है, जब उसे विराम के बारे में सोचना पड़ता है। इसी तरह रोहित की स्थिति तो और भी खराब है। वह पिछले आठ टेस्टों में 10 से कुछ ऊपर के औसत से ही रन बना सके हैं, जिसमें सिर्फ एक ही अर्धशतक है। इस सीरीज में तो वह तीन टेस्ट की पांच पारियों में 31 रन ही बना सके हैं।
सिडनी टेस्ट में भारत की हार में दूसरी पारी में जसप्रीत बुमराह के बाहर होने की भी अहम भूमिका रही पर यह भी सच है कि टीम प्रबंधन का दो स्पिनर खिलाने का फैसला भी गलत साबित हुआ। इसका प्रमाण ऑफ स्पिनर वाशिंगटन सुंदर से पूरे मैच में एक ओवर ही फिंकवाया गया। बल्लेबाजी में भी वह कुछ खास न कर सके। बेहतर होता कि किसी पेसर को टीम में रखा जाता। ऐसा होता तो बुमराह के दूसरी पारी में उपलब्ध न होने पर अटैक में ज्यादा दिक्कत नहीं आती। चौथे टेस्ट में शुभमन गिल को बाहर बैठाने का फैसला भी समझ से परे रहा। सीरीज में भारत ने तीसरे गेंदबाज के तौर पर आकाशदीप और हषिर्त राणा का इस्तेमाल किया और वे प्रभावी नहीं रहे। सिराज के लय में न होने से भी मुश्किलें बढ़ीं। उधर, हेजलवुड के चोटिल होने पर बोलैंड का ऑस्ट्रेलिया ने इस्तेमाल किया और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को सीरीज जिताने में बड़ी भूमिका निभाई।
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