देसी गाय : समझनी होगी महत्ता
जब से मुसलमान शासक भारत में आए तब से गौवंश की हत्या होनी शुरू हुई। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमाता सारे संसार की जननी के समान है।
देसी गाय : समझनी होगी महत्ता |
उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है और तो और उसके मूत्र-गोबर तक औषधियुक्त हैं, इसलिए उसकी हत्या नहीं, बल्कि पूजन किया जाना चाहिए पर यवनों पर असर नहीं पड़ा। आज भी मूर्खतावश बहुत से मुसलमान गौवंश की हत्या करते हैं। अक्सर यह दोनों धर्मो के बीच विवाद का विषय रहता है। अंग्रेज जब भारत में आए तो उन्होंने हिन्दुओं का मजाक उड़ाया। वे अपने सीमित ज्ञान के कारण समझने में असमर्थ थे कि हिन्दू गौवंश का इतना सम्मान क्यों करते हैं? आजादी के बाद धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वालों ने भी इस हिन्दू मान्यता पर ध्यान नहीं दिया।
कुछ वर्ष पहले जब सूचना आई कि गौमूत्र का औषधि के रूप में अमेरिका में पेटेंट हो गया है, तो देश में सनसनी पैदा हो गई। योग और आयुर्वेद की तरह पूरी दुनिया जल्द ही गौमाता के महत्त्व को स्वीकारने लगेगी। हमेशा की तरह हम अपनी ही धरोहर को विदेशी पैकेज में कई गुना दामों में खरीदने पर मजबूर होंगे। जिस तरह पेप्सी कंपनी हमारे बाजारों से दो रुपये किलो आलू खरीद कर 250 रुपये किलो के चिप्स बेचती है वैसे ही आने वाले दिनों में गौमूत्र और गोबर सुंदर पैकेजिंग और आकषर्क विज्ञापनों के सहारे सैकड़ों रुपये कीमत पर बिकेगा। शास्त्रीय और वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध हो चुका है कि गौमाता के शरीर के हर हिस्से से हम पर कृपा बरसती है।
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त हृदय विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा है कि हृदय रोगियों के लिए देशी गाय का दूध उपयोगी है। देशी गाय के दूध के कण सूक्ष्म और सुपाच्य होते हैं। मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाड़ियों में पहुंच कर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करते हैं। देशी गाय के दूध में केरोटीन (विटामिन-ए) नाम का पीला पदार्थ रहता है, जो नेत्र ज्योति बढ़ाता है। चरक सूत्र स्थान 1/18 के अनुसार, देशी गाय का दूध जीवन शक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। देशी गाय के दूध में 8 प्रतिशत प्रोटीन, 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 0.7 प्रतिशत मिनरल (100 आईयू) विटामिन ए और विटामिन बी, सी, डी एवं ई होता है। निघंटु के अनुसार देशी गाय का दूध रसायन, पथ्य, बलवर्धक, हृदय के लिए हितकारी, बुद्धिवर्धक, आयुप्रद, पुंसत्वकारक तथा त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक है। गौघृत खाने से कोलेस्टरोल नहीं बढ़ता।
रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के शोधानुसार देशी गाय के घी में मनुष्य शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी कणों का प्रभाव नष्ट करने की असीम शक्ति है। गौघृत से यज्ञ करने से ऑक्सीजन बनती है। देशी गाय के घी को चावल के साथ मिला कर जलाने से (यज्ञ) ईथीलीन ऑक्साइड, प्रोपीलीन ऑक्साइड और फोरमैल्डीहाइड नाम की गैस पैदा होती है। ईथीलीन ऑक्साइड और फारमैल्डीहाइड जीवाणी रोधक हैं, जिनका उपयोग ऑपरेशन थिएटर को कीटाणुरहित करने में होता है। प्रोपीलीन ऑक्साइड वष्रा करने के उपयोग में आती है अर्थात गौघृत द्वारा किए गए यज्ञ से वातावरण की शुद्धि और वष्रा होना स्वाभाविक परिणाम हैं। भाव प्रकाश निघंटु के अनुसार गौघृत नेत्र हितकारी, अग्निप्रदीपक, त्रिदोष नाशक, बलवर्धक, आयुवर्धक, रसायन, सुगंधयुक्त, मधुर, शीतल, सुंदर और सब घृतों में उत्तम होता है। गौमूत्र में ताम्र होता है जो मानव शरीर में स्वर्ण के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
स्वर्ण सर्व रोगनाशक शक्ति रखता है। स्वर्ण सभी प्रकार का विषनाशक है। गौमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य प्रकार के क्षार (मिनरल्स),कार्बोनिक एसिड, पोटाश और लेक्टोज नाम के तत्व मिलते हैं। गौमूत्र में 24 प्रकार के लवण होते हैं, जिनके कारण गौमूत्र से निर्मिंत विविध औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गौमूत्र कीटनाशक होने से वातावरण को शुद्ध करता है और जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। गौमूत्र त्रिदोष नाशक है, किंतु पित्त निर्माण करता है, लेकिन काली देशी गाय का मूत्र पित्तनाशक है। नवयुवकों के लिए गौमूत्र शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, कमजोरी, सुस्ती, आलस्य, सिरदर्द, क्षीण स्मरण शक्ति में उपयोगी है। पंचगव्य गौघृत, गौमय, गौदधि, गौदुग्ध, गौमुत्र से मिल कर बनता है। उसका सेवन मिर्गी, दिमागी कमजोरी, पागलपन, पीलिया, बवासीर आदि में उपयोगी है। कैंसर जैसे दुस्साध्य, उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गौमूत्र का सेवन उपयोगी सिद्ध हुआ है।
इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि देशी गाय के ताजे गोबर से टीबी तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकरण से मुक्ति पाने के लिए जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एक्जिमा और घाव आदि के लिए लाभदायक होता है। एक देशी गाय के गोबर से प्रति वर्ष 45000 लीटर बायोगैस मिलती है। बायोगैस के उपयोग करने से 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती है, जो आज जलावन में काम आती है जिससे 14 करोड़ वृक्ष कटने से बचेंगे और पर्यावरण का संरक्षण होगा। गोबर की खाद सर्वोत्तम खाद है, जबकि र्फटलिाइजर से पैदा अनाज हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।
ऐसी तमाम जानकारियों का संचय कर उसके व्यापक प्रचार प्रसार में जुटे युवा वैज्ञानिक सत्यनारायण दास बताते हैं कि विदेशी इतिहासकारों और मार्क्सवादी चिंतकों ने वैदिक शास्त्रों में प्रयुक्त संस्कृत का सतही अर्थ निकाल कर बहुत भ्रांति फैलाई है। इन्होंने बताने की कोशिश की है कि वैदिक काल में आर्य गौमांस का भक्षण करते थे। यह वाहियात बात है। ‘गौधन’ जैसे शब्द का अर्थ अनर्थ कर दिया गया। दास के अनुसार वैदिक संस्कृति में एक ही शब्द के कई अर्थ प्रयुक्त होते हैं, जिन्हें उनके सांस्कृतिक परिवेश में समझना होता है। विदेशी इतिहासकारों ने वैदिक संस्कृत की समझ न होने के कारण ऐसी भूल की। आईआईटी से बी.टेक. और एम.टेक. करने वाले दास गौसेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। समय की मांग है कि भारत सरकार और प्रांतीय सरकारें गौवंश की हत्या पर कड़ा प्रतिबंध लगाएं। इनके संवर्धन के लिए उत्साह से ठोस प्रयास करें।
(लेख में विचार निजी हैं)
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