नकली दवा कारोबारी : समाज के कोढ़ हैं ये
स्वास्थ्य प्रत्येक व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है। मनुष्यों को स्वस्थ रहने के लिए उपचार की आवश्यकता भी होती है, लेकिन जब उपचार नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं पर आधारित हो तो इंसानों का स्वास्थ्य पूरी तरह से प्रभावित होता है।
नकली दवा कारोबारी : समाज के कोढ़ हैं ये |
नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं का बढ़ता दायरा केवल पीड़ित लोगों के जीवन खतरे में नहीं होते हैं, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली और चिकित्सा उद्योग की विसनीयता भी प्रभावित होती है।
भारत में इन दिनों नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। भारत का कोई ऐसा राज्य नहीं है जो नकली दवाओं से प्रभावित न हो। हाल में कोलकाता में कैंसर और मधुमेह जैसे गंभीर बीमारी में उपयोगी होने वाली नकली दवाओं को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन और पश्चिम बंगाल के औषधि नियंत्रण निदेशालय के साझा सहयोग से पकड़ा गया है जिसकी कीमत 6.60 करोड़ बताई गई है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में कुल बिकने वाली दवाओं में बीस प्रतिशत नकली और गुणवत्ताहीन दवा शामिल हैं।
भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में केवल दवा का बाजार लगभग दो लाख करोड़ का है जिसमें नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं की भागीदारी 15से 20 प्रतिशत के करीब है। भारत में नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्य शामिल है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने केवल 2023 में नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं के लगभग 50 हजार मामले दर्ज किए थे। उद्योग संगठन एसोचैम की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के दवा बाजार में कुल उपलब्ध एक एक-चौथाई दवा नकली और गुणवत्ताहीन है।
‘फेक एंड काउंटरफीट ड्रग्स इन इंडिया-बूमिंग बिज’ नामक अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में नकली दवाओं का कारोबार 33 प्रतिशत की वृद्धि दर से प्रति वर्ष बढ़ रहा है। नकली दवाओं का बाजार बढ़ने के कई कारण हैं, जिसमें दवा की ऑनलाइन बिक्री, गुणवत्तापूर्ण दवा की अपेक्षा नकली दवा का सस्ती कीमत, दवाओं के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी, डॉक्टर द्वारा मरीजों के पच्रे पर लिखे गए दवा के नाम के साथ प्रमाणित दवा कंपनियों का नाम न लिखना, बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाओं का उपलब्ध न होना, नकली और गुणवत्ताहीन दवा की पहचान करने की तकनीकी का न होना, ठोस कानून का आभाव के कारण नकली दवा का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। भारत में नकली और गुणवत्ताहीन दवा की बिक्री शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है।
भारत में नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं का बढ़ता दायरा चिंता का विषय है। भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता और निर्यातक है। एशियन लाइट की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक फार्मा बाजार में भारत की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है। भारत में बढ़ते नकली दवा से केवल न इंसानों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है बल्कि इससे भारत की वैश्विक स्तर पर दवा उद्योग में छवि भी धूमिल होती है। नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं के प्रचलन से चिकित्सा पेशे और स्वास्थ्य प्रणाली से जनता काविश्वास भी घटता है।
नकली दवा के रोकथाम के लिए कानूनी प्रावधानों में परिवर्तन करते हुए नकली दवाओं के उत्पादन और बिक्री में संलिप्त व्यक्तियों के लिए बहुत सख्त और दंड के साथ आर्थिक जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन और राज्य स्तर पर दवा नियामक संस्थानों को दवाओं के प्रति साप्ताहिक प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। सभी दवा कमानियों को सभी प्रकार के दवा उत्पाद पर ट्रैक और ट्रेस तकनीक का उपयोग के लिए सरकार द्वारा बाध्य किया जाना चाहिए ताकि मरीज नकली और असली दवाओं की पहचान आसानी से कर सकें। दवा की प्रामाणिकता जांचने के लिए मोबाइल एप और ऑनलाइन डेटाबेस की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
नकली और गुणवत्ताहीन दवाओं की रोकथाम के लिए वैश्विक स्तर पर एकजुट होकर समस्या का समाधान तलाश करना होगा। भारत को नकली दवाओं को रोकने के लिए बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाना होगा। बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता और महंगी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण लोगों को सस्ती और नकली दवाओं पर बाध्य होना पड़ता है। भारत को नाइजीरिया और अमेरिका की तकनीकी मेडिसेफर एवं ट्रैक एंड ट्रेस सिस्टम की पहल करना चाहिए। यह तकनीकी नकली आपूर्ति श्रृंखला नजर रखती है। सख्त कार्रवाई से ही स्वस्थ भारत और सशक्त भारत का निर्माण होगा।
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