कार्बन ट्रेडिंग : मानवीय पहलुओं की अनदेखी

Last Updated 02 Jan 2025 01:00:53 PM IST

वर्ष 2015 का पेरिस जलवायु समझौता धरा के तापमान को औद्योगिक चरण के आने के पहले के स्तर से 2030 तक 2 डिग्री सेल्सियस कम करने के लिए हुआ था। चूंकि पृथ्वी की गर्मी बढ़ाते कुल गैसीय उत्सर्जनों में कार्बन डाई ऑक्साइड लगभग 70 प्रतिशत है।


कार्बन ट्रेडिंग : मानवीय पहलुओं की अनदेखी

अत: ग्लोबल वार्मिग को 15 डिग्री से ग्रे तक सीमित रखने के लिए 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन पर पहुंचने का लक्ष्य भी वैश्विक स्तर पर अपना लिया गया है, परंतु विडंबना है, और कटु यथार्थ भी कि इसे पाने के औजार के रूप में एक ट्रेडिंग गतिविधि को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।

इसी क्रम में 10-24 नवम्बर के बीच बाकू में कार्बन बाजार पर अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित करना बड़ी उपलब्धि माना गया है।  कॉप-29 को तो वित्तीय कॉप भी कहा गया था और कार्बन ट्रेडिंग भी वित्तीय गतिविधि ही है। वायुमंडल में मौजूद कार्बन उत्सर्जनों को हटाने और नये कार्बन उत्सर्जनों को न पहुंचने देना प्रोत्साहित हो इसके लिए 2015 में पेरिस समझौते में स्पष्ट कर दिया गया था कि कार्बन को देशों या संस्थाओं के बीच खरीदा-बेचा जा सकता है।  इस लेन-देन को  कार्बन क्रेडिट  के रूप में परिभाषित कर हस्तांतरणीय दस्तावेज बना कर स्थापित किया गया है। यूनाइटेड नेशंस के क्योटो प्रोटोकोल (1997) और फिर 2005 में कार्बन को खरीदने-बेचने या व्यापार की जा सकने योग्य सामग्री पहले ही करार दिया जा चुका था किंतु पेरिस समझौते के अंतर्गत जो एक नया ज्यादा सुदृढ़ कार्बन ट्रेडिंग फ्रेमवर्क बनाए जाने की आवश्यकता थी, वह शुरुआती हस्ताक्षर के बाद कॉप-29 में हो सका।

निस्संदेह इस अधूरे कार्य के रहते भी देशों के भीतर और देशों के बाहर कार्बन ट्रेडिंग हो रही थी किंतु एकरूप मानक न होने तथा पारदर्शिता के अभाव से अनेकों झूठे कार्बन क्रेडिटों का विश्व स्तर पर लेन-देन भी हो रहा था। ऐसे में लाखों और अरबों डॉलर के भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी भी हुई। स्वैच्छिक कार्बन बाजार में सबसे ज्यादा कार्बन क्रेडिट वो हैं जो अवनत वनों के कार्बन अवशोषक के रूप में सुधार, पुर्नस्थापना के लिए दिए जाते हैं। किंतु ये सबसे ज्यादा विवादों में भी रहते हैं। वन स्थितियों की बेसलाइन में छेड़छाड़ से ज्यादा कार्बन ऑफसेट दिखाया जा सकता है। जितना कार्बन हटाने का क्रेडिट लिया था उतना कार्बन डाइअक्साइड तो उससे हटा ही नहीं था। 

कॉप-29 के पहले ‘नेचर’ पत्रिका में ऐसी परियोजनाओं का अध्ययन प्रकाशित हुआ था, जिन्होंने करीब एक अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड के समतुल्य का कार्बन क्रेडिट  कमाया था। उसमें से 15 प्रतिशत कार्बन ही कम किया था। अब खराब और अच्छे गुणवत्ता में कार्बन क्रेडिटों का वर्गीकरण या पहचान भी की जा रही है। कार्बन ट्रेडिंग में कार्बन क्रेडिटों के लेन-देन का व्यापार होता है। कार्बन क्रेडिट की एक इकाई एक मीट्रिक टन कार्बन डाइआक्साइड या उसके समतुल्य अन्य ग्रीन हाऊस गैसों को वायुमंडल से हटाने या उनको वायुमंडल में पहुंचने से रोकने पर दी जाती है। कार्बन ऑफसेट में कार्बन डाइआक्साइड या ग्रीन हाऊस गैसों को हटाया या पुनचर्क्रित किया जाता है। जो उद्यम अथवा प्रतिष्ठान उपकरणों,  पद्धतियों या टैक्नोल्ॉजी के बदलावों से अपने कार्बन उत्सर्जन पहले की अपेक्षा कम कर देते हैं तो वे भी कार्बन क्रेडिट्स पाने के हकदार हो जाते हैं। अभी वैश्विक स्तर पर करीब दो अरब डॉलर का स्वैच्छिक कार्बन मार्केट है। यह एक खरब डॉलर तक भी पहुंच सकता है।   

कार्बन क्रेडिटों का उपयोग ही उन्हें यूरोपीय संघ में निर्यात जारी रखने का पात्र बनाएगा क्योंकि यूरोपीय संघ उन उत्पादों के आयात पर भी कार्बन टैक्स लगाने का मंतव्य जतला चुका है, जो उसके अपने मानकों से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन से उत्पादित हुए हैं। देशों में पेट्रोल, कोयले जैसे जीवाश्म ईधनोें के उत्पादन बढ़ ही रहे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित कार्बन उत्सर्जन कटौती प्रतिबद्धता लक्ष्यों को उनके खरीदे कार्बन क्रेड्ट्सिों के मुआवजे से ही पूरा करने की जरूरत होगी।

चिंताजनक है कि अधिकांश देश या उद्यम दुनिया के लक्ष्यों के अनुसार अगले दो-तीन दशकों के भीतर ही कार्बन न्यूट्रल तो होना चाहते हैं किंतु इसे कोयला, पेट्रोल जैसे जीवाश्म ईधनों के उपयोगों और उत्पादनों को छोड़ते हुए नहीं करना चाहते, बल्कि इसे अन्यत्र किसी को मिली कार्बन क्रेडिट खरीद कर अपने ज्यादा कार्बन उत्सर्जन की एवज में देकर पूरा करना चाहते हैं। जो प्रतिष्ठान अपने खाते में स्वयं अर्जित या किसी से खरीद कर कार्बन क्रेडिट जोड़ लेते हैं तो उससे वे अपनी कार्यवाहियों के कार्बन फुटप्रिंट कम कर सकते हैं। प्रति इकाई कार्बन क्रेडिटों के बाजार भाव में मांग के अनुसार उतार-चढ़ाव आता रहता है। जब दाम बहुत नीचे गिर जाएंगे तब तो प्रदूषण जारी रखना भी लाभ का सौदा ही रहेगा। तो फिर धनी लोग किसी गरीब देश से जंगल उगवा कर और उससे कार्बन ऑफसेट हासिल कर अपने घातक धरा को गरम करते गैसीय प्रदूषणों को जारी रखेगा। इसके लिए खेती की जमीनों के उपयोग की भी आशंका है। ऐसे में गरीब देशों में खाद्य संकट भी गहरा सकता है।

कार्बन क्रेडिट विक्रेता के कंधे पर चढ़ कर कुछ कार्बन उत्सर्जन पैदा करतीं नामी-गिरामी कंपनियां अपने को नेट जीरो कार्बन और नेगेटिव कार्बन उत्पादक घोषित कर अपनी छवि भी सुधार रही हैं। इसे ग्रीनवॉशिंग भी माना जा सकता है। समझ लीजिए, किराये की कोख से संतान पैदा करवा रही हैं किंतु किसी भी उद्योग द्वारा दूरस्थ कहीं के कार्बन क्रेडिट खरीद कर स्थानीय स्तर पर उत्सर्जन छोड़ते र्ढे पर काम बदस्तूर जारी रखा जाए यह तो यह न्यायिक नहीं है। स्थानीय कार्बन प्रदूषण पर कटौती करना जनस्वास्थ्य पर होने वाले कुप्रभाव कम करने के लिए आवश्यक है ही। कार्बन क्रेडिट के संदर्भ में मुख्य बात यह है कि अब इसके बड़े-बड़े खरीददार इसका मूल्य भी लगा रहे हैं। अत: कार्बन क्रेडिट अर्जित करना पर्यावरण सुधार के साथ आय का जरिया भी हो सकता है। चाहे लालच हो या कोई अन्य कारण, विश्व में कार्बन क्रेडिट्स यदि बढ़ेंगे तो परिणाम वायुमंडल में गरम करने वाली गैसों का बढ़ना रुकना और कम होना ही होगा। जगह-जगह के ऐसे बड़े-छोटे प्रयास विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन पर कटौती लाते हैं। वायुमंडल किसी जिला, गांव, राज्य या देश की सीमाओं के अधीन तो नहीं है। इससे वैश्विक सकल स्तर पर कार्बन आधारित आर्थिकी तो कम होगी ही।
(लेख मेंविचार निजी हैं)

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


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