अटल जयंती : जनमन की समझ रखने वाले नेता

Last Updated 25 Dec 2024 08:47:33 AM IST

अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति का वह नाम हैं, जो न केवल एक कुशल नेता थे, बल्कि जनमन की नब्ज को समझने वाले दूरदर्शी और संवेदनशील राजनेता भी थे।


अटल जयंती : जनमन की समझ रखने वाले नेता

उनकी वाणी में कवित्व था, विचारों में गहराई और व्यक्तित्व में ऐसा आकषर्ण, जिसने उन्हें जनता के दिलों में हमेशा के लिए अमर बना दिया। अटल जी राजनीति के मैदान में दृढ़ता और विनम्रता का अद्भुत संगम थे।

अटलजी राजनीति को केवल सत्ता का साधन नहीं मानते थे, बल्कि उसे समाजसेवा का माध्यम समझते थे। उनके भाषणों में लोगों की भावनाओं को छू लेने की क्षमता थी। जब वे संसद में बोलते थे, तो उनकी वाणी श्रोताओं के दिलों तक सीधे पहुंचती थी। उन्होंने हमेशा जनहित को प्राथमिकता दी और उनकी नीतियां गरीब, किसान, युवा और महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित रहीं। अटल जी ने स्वतंत्रता के बाद एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ते हुए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में नागरिकों को एक सशक्त राजनीतिक विकल्प प्रदान किया। उस समय, जब पूरे देश में कांग्रेस का दबदबा था, जनसंघ जैसे नए दल और उसका झंडा थामे युवा अटलजी के लिए राहें बेहद कठिन थीं। 1957 में जब अटलजी लोक सभा के लिए चुने गए, तब जनसंघ संख्या बल के आधार पर कांग्रेस के सामने कोई बड़ी चुनौती पेश नहीं कर पा रहा था, लेकिन अटलजी ने अपने विचारों और कुशल नेतृत्व से जनसंघ को वैचारिक रूप से इतना सशक्त बना दिया कि संख्या बल एक गौण मुद्दा बनकर रह गया। उनके भाषण और विचार कांग्रेस की सत्ता को चुनौती देते हुए उसकी नींव हिला देने वाले साबित होते थे।

प्रधानमंत्री के रूप में अटलजी ने कई ऐतिहासिक निर्णय लिए, जिन्होंने देश की दिशा और दशा को बदल दिया। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (गोल्डन क्वाड्रिलेटरल): यह योजना देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में मील का पत्थर साबित हुई। भारत के परमाणु परीक्षण (पोखरण-2): 1998 में अटलजी के नेतृत्व में भारत ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हुई। कश्मीर मुद्दे पर शांति प्रयास: अटलजी ने ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ का मंत्र देते हुए कश्मीर समस्या का हल खोजने का प्रयास किया। उनके शासनकाल में आईटी क्षेत्र और दूरसंचार उद्योग ने उल्लेखनीय प्रगति की। राष्ट्रहित और ‘राष्ट्रप्रथम’ के मंत्र को अपने जीवन का उद्देश्य बनाने वाले अटलजी के लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं था। अटलजी में वह शक्ति और कौशल था, जो समय की धारा को नई दिशा देने में सक्षम था। यह न केवल सत्य है बल्कि ऐतिहासिक तथ्य भी है कि अटलजी ने पारंपरिक रास्तों पर चलने की परंपरा को तोड़ते हुए सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नई शुचिता और उच्च आदश्रे की स्थापना की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अटलजी के बारे में लिखा है कि अटलजी को यह गहराई से पता था कि कब क्या कहना है, कितना कहना है, और कब मौन रहना है। उन्होंने इस कला में महारत हासिल की थी। जैसा कि किसी ने सही कहा है, ‘कौन सी बात कहां कही जाती है! यह सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है!’ अटलजी ने इस पंक्ति को पूरी तरह से चरितार्थ किया। अटलजी का विचार था, ‘हम केवल अपने लिए न जीएं, बल्कि दूसरों के लिए भी जीएं। राष्ट्र के लिए अधिक से अधिक त्याग करें। यदि भारत की स्थिति कमजोर और दयनीय है, तो दुनिया हमारा सम्मान नहीं करेगी, लेकिन यदि हम हर दृष्टि से सशक्त और सुसंपन्न हैं, तो पूरी दुनिया हमारा सम्मान करेगी।’  अटलजी के विचार और उनकी जीवनशैली आज भी हमें यह सिखाती है कि राष्ट्र के प्रति समर्पण और नि:स्वार्थ सेवा से ही सच्ची सफलता और सम्मान प्राप्त किया जा सकता है। अटलजी का कवि हृदय उनकी राजनीति में भी झलकता था। उनकी कविताएं न केवल शब्दों का संकलन थीं, बल्कि वे समाज के लिए एक प्रेरणा थीं। ‘हार नहीं  मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ जैसे उनके काव्यांश आज भी संघषर्रत व्यक्तियों को प्रेरित करते हैं।

अटलजी का व्यक्तित्व राजनीतिक कटुता से परे था। उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते थे। संसद में उनके भाषणों में तार्किकता और हास्य का ऐसा मिशण्रहोता था, जो श्रोताओं को सम्मोहित कर देता था। उनकी शालीनता और सौम्यता के कारण वे विरोधी दलों के नेताओं के लिए भी आदरणीय थे। उनकी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, ग्रामीण भारत को शहरी भारत से जोड़ने का एक ऐतिहासिक प्रयास था। अटलजी एक ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने राजनीति में नैतिकता और मूल्यों को सर्वोपरि रखा। उनके विचार, नीतियां और कार्य हमेशा प्रेरणास्रेत रहेंगे। अटलजी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक युग थे। उनकी स्मृतियां हमें सदैव प्रेरित करती रहेंगी। ‘मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।’ (अटलजी की कविताओं की तरह, उनका जीवन भी एक प्रेरक गीत है।)

(लेखक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव और वर्तमान में असम राज्य के प्रभारी हैं)

हरीश द्विवेदी


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