मेट्रो केबल : चोरी में तकनीक का इस्तेमाल

Last Updated 16 Dec 2024 12:41:13 PM IST

पिछले वर्ष से चोरों ने अपनी आजीविका का नया फार्मूला ईजाद कर लिया है। बेरोजगारी में चोरों ने दिल्ली की लाइफलाइन को अपना रोजगार बना लिया है। चोरों को इससे यह चिंता नहीं हुई कि मेट्रो से सफर करने वालों को तकलीफ झेलनी पड़ेगी।


मेट्रो केबल : चोरी में तकनीक का इस्तेमाल

सारे दिल्ली के ऑफिसों में काम करने वाले लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए सुबह काम पर जाते वक्त जगह-जगह जाम झेल रहे थे, कारण था मेट्रो के केबल चोरों ने रात में ही उन केबलों को काट दिया था जिनसे मेट्रो अपना रास्ता तय करती है। इस कारण वे अपने ऑफिस समय पर नहीं पहुंच सके। इतना ही नहीं, जिन्हें बाहर जाना था-उनकी ट्रेनें और फ्लाइटें भी मिस हुई।

इस काम के लिए फिलहाल मेट्रो की ब्ल्यू लाइन पर लगातार धावा बोला गया। हालांकि बहुत समय बाद पुलिस को सफलता मिली है। इन केबल चोरों को पकड़ने और इन घटनाओं को अंजाम देने वाले गैंग के सदस्यों को दिल्ली पुलिस ने पकड़ लिया है। बीते दिनों मेट्रो ट्रैक पर केबल चोरी होने से केबल और चोरी में इस्तेमाल गाड़ियों को पुलिस ने बरामद कर दिया है। यह काम बहुत समय बाद हुआ है। इससे पूर्व चोरों ने मेट्रो लाइन को बहुत नुकसान पहुंचाया है। पता चला कि कीर्ति नगर और मोती नगर मेट्रो स्टेशन के बीच सिग्नलिंग केबल चोरी होने की सूचना मिली थी।

पुलिस ने इस मामले में बीएनएस और डीएमआरसी अधिनियम की धारा 74 के तहत मामला दर्ज किया था। इस वारदात में शामिल गिरोह के 11 में से चार 4 सदस्यों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने इनके कब्जे से चोरी की गई 55 मीटर लंबी केबल, टाटा एस लोडर वाहन और दो मोबाइल फोन बरामद किए थे। घटना स्थल से पता चला कि वहां पर 140 मीटर लंबी केबल काटी गई थी। यह केबल मेट्रो ट्रेनों की लोकेशन का पता लगाने और ट्रैक सर्किट को डेटा भेजने के लिए उपयोग की जाती है। मेट्रो के परिचालन के लिए उपयोग में होने वाले इस केबल की कीमत लाखों में होती है। इसी कारण चोरों को इसको प्राप्त करने से काफी मुनाफा होता है।

वर्ष 2020-22 के दौरान केबल चोरी होने के बहुत सारी घटनाएं हुई हैं। 2020 में 54 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2021 में 57 और 2022 में 63 मामले सामने आए थे। इन मामलों में चोरों तक पहुंचने में पुलिस मुस्तैद नहीं दिखी थी। इस कारण चोरों के हौसले बुलंदी पर थे। मेट्रो केबल तांबे से बने होते हैं, यह काफी महंगी धातु है, बहुत सारे उद्योगों में तांबे की भारी मांग है, इसलिए इसको बेचने में आसानी है। इन केबलों का नेटवर्क मेट्रो स्टेशनों और ट्रेनों के बीच बिछाया जाता है। यह जटिल नेटवर्क होता है। विशेषकर रात के समय या फिर जहां पर सुरक्षा कम हो, वहां पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह केबल मेट्रो रेल सिस्टम की जीवनरेखा होता है। यह मोटी इंसुलेटेड तार होती है, जो मेट्रो ट्रेनों की बिजली, संचार और नियंत्रण संकेत प्रदान करती है। केबल की चोरी होने पर मेट्रो सिस्टम की तीन मुख्य पण्रालियां-पावर, संचार और सिग्नल-ठप हो जाती हैं। मेट्रो के संचालन के लिए इन तीनों का सुचारु रूप से काम करना जरूरी है। डीएमआरसी से मिली जानकारी के अनुसार केबल चोरी आम तौर पर रात साढ़े बारह बजे से सुबह चार बजे के बीच होती है। इस समय मेट्रो सेवाएं बंद होती हैं।

चोर सेवा बंद होने के बाद रात में वियाडक्ट में घुसते हैं। वे केबल काटते हैं, और उसे नीचे अपने साथियों के पास फेंक देते हैं। फिर भाग जाते हैं। यह मेट्रो स्टेानों पर नहीं, बल्कि वियाडक्ट पर होता है। अधिकारी के अनुसार केबलों पर स्टील की परत होती है, लेकिन उनमें ज्यादातर तांबा होता है। यह चोरों के लिए कीमती होता है। चोर पटरियों तक अपनी पहुंच समूह में काम करके बनाते हैं। रस्सियों का इस्तेमाल करके मेट्रो की पटरियों तक पहुंचते हैं। कभी-कभी वे अपने साथियों की मदद से या पेड़ की शाखाओं का इस्तेमाल करके पटरियों पर चढ़ते हैं। पटरियों पर चढ़ने के बाद कीमती केबल काट लेते हैं। केबल काटने के बाद पटरियों पर मौजूद व्यक्ति उसे जमीन पर अपने साथियों के पास फेंक देता है। साथी तुरत-फुरत में केबल उठा लेते हैं, और उसे पास की झाड़ियों में छिपा देते हैं, या किसी गाड़ी में लाद देते हैं।

फिर वह व्यक्ति रस्सी के सहारे पटरियों से नीचे उतर जाता है। पुलिस का यह भी मानना है कि चोर अक्सर नाबालिगों को अपराध करने के लिए काम पर रखते हैं, क्योंकि वे आसानी से चढ़ कर तार काट सकते हैं। यह भी संज्ञान में आया कि बाजार में केबल 500 रुपये प्रति मीटर के हिसाब से बिकता है। केबल चोरी के इस तरीके ने बेरोजगारों को प्रेरित किया है। प्रशासन को चाहिए कि अधिक से अधिक रोजगार की संभावनाओं को युवाओं के सामने रखे। ऐसा करके ही युवाओं के लिए सम्मानजनक रोजगार मुहैया कराना संभव हो सकेगा।

भगवती प्रसाद डोभाल


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