उप्र चुनाव परिणाम : नतीजे के निहितार्थ
उत्तर प्रदेश उपचुनाव का महत्त्व इसलिए है क्योंकि लोक सभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा धक्का उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में ही लगा था।
उप्र चुनाव परिणाम : नतीजे के निहितार्थ |
अगर इन राज्यों के परिणाम भाजपा की अपेक्षाओं के अनुरूप आए होते तो वह लोक सभा में अकेले बहुमत का आंकड़ा पार कर जाती। सपा ने अपने जीवन का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया और कांग्रेस भी एक से छह सीट तक पहुंच गई। लोक सभा चुनाव के बाद प्रदेश में हुए इस पहले चुनाव में भाजपा और सपा दोनों के जन समर्थन का परीक्षण होना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के वैचारिक वाकद्वंद्व में भी यह संकेत मिलना था कि किनके वायदों और नारों को आम जनता ज्यादा स्वीकार कर रही है।
परिणाम सामने है और इसके आधार पर आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं। देशव्यापी उपचुनावों का एक विश्लेषण यह है कि जहां जिस पार्टी का शासन था वहां उसे सफलता मिली है। यहां एक मौलिक अंतर लोक सभा चुनाव की विभाजक रेखा का है। उप्र उप चुनाव में परिणाम पलट गया है तो तत्काल इसके इसे इसी रूप में देखना होगा। नौ विधानसभा क्षेत्र में अगर छह भाजपा और एक उसकी सहयोगी रालोद जीती, सपा दो पर सिमट गई तो इसका अर्थ क्या है? पिछले विधानसभा चुनाव में इनमें सपा ने चार जीती थी और उसकी सहयोगी रालोद एक। इस तरह उसके पास पांच विधानसभा सीटें थीं। इस बार उसकी उम्मीदें ज्यादा सीटें जीतने की थी।
मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा में 60 फीसद से ज्यादा मुसलमान हैं। 31 वर्ष बाद वहां भाजपा की विजय वर्तमान परिस्थितियों में असाधारण है। इसी तरह अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट है। यहां 33 वर्ष बाद भाजपा जीती। देश भर के नामी मुस्लिम चेहरे, संगठन, संस्थाएं जिन दो लोगों को मुसलमान और इस्लाम का दुश्मन साबित कर रहे हैं, वे हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं योगी आदित्यनाथ। वहां कुंदरकी में मुसलमान टीवी कैमरे पर आकर कह रहे थे कि हम भाजपा के उम्मीदवार को वोट देंगे तो सहसा सपा या आईएनडीआईए घटकों या उनके समर्थकों के लिए विश्वास करना मुश्किल था।
भाजपा ने गाजियाबाद, फूलपुर, खैर और मझवां भी जीती तो सहयोगी रालोद मीरापुर फिर से जीत गई। प्रश्न है कि अखिलेश यादव जी का पीडीए या पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण कहां गया? करहल और सीसामऊ में उसे जीत मिली, लेकिन करहल यादव परिवार का गढ़ माना जाता है और वहां भी सपा को केवल 14 हजार वोट से विजय मिली जबकि तेज प्रताप यादव को परिवार का चेहरा बनाकर उतारा गया और अनुजेश प्रताप को बली का बकरा कहा गया। पांच स्थानों पर भाजपा की विजय बड़े अंतर से हुई। दूसरी ओर करहल के अलावा सीसामऊ में सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने भाजपा के सुरेश अवस्थी को केवल 8,564 मतों से हराया।
तो इसे पप्रदेश के मतदाताओं की सोच और व्यवहार में लोक सभा चुनाव के विपरीत आए परिवर्तन का द्योतक क्यों न माना जाए? ऐसा परिणाम क्यों आया? लोक सभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ की विदाई और 2027 में भाजपा सरकार की पराजय की घोषणा करने वाले अखिलेशजी और उनकी पार्टी ने चुनाव परिणाम को सत्ता के भयानक दुरुपयोग और धांधली की परिणति बताया है।
मतदान के दिन सपा ने ऐसे वीडियो जारी किए जिनसे लगता था कि पुलिस प्रशासन मुस्लिम मतदाताओं को मतदान करने से रोक रही है, धमका रही है, कानूनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए भाजपा के लिए काम कर रही है। अखिलेश जी ने पत्रकार वार्ता की और इसका संज्ञान चुनाव आयोग ने लेकर सात पुलिसकर्मिंयों को निलंबित और ड्यूटी मुक्त कर दिया। आरोपों को अभी तक साबित नहीं किया जा सका।
पुलिस पर पत्थरबाजी के दृश्य भी लोगों ने देखे और पुरु ष व महिला मतदाताओं से बहस भी सुनी। जब भी चुनाव में हिंसा की संभावना दिखती है या होती है तो पुलिस प्रशासन सख्त व्यवहार करता है क्योंकि उसका दायित्व कानून और व्यवस्था बनाए रख चुनाव के शांतिपूर्ण संचालन की है। कार्रवाई के शिकार पुलिस वालों को लेकर प्रशासन ने निर्धारित मापदंडों के अनुरूप भूमिका निभाने की बात कही। बावजूद सपा को समस्या है तो उसे चुनाव आयोग के अलावा न्यायालय में अवश्य जाना चाहिए। उम्मीदवार या पार्टी के पक्ष में बहुमत मतदाता हो तो पुलिस प्रशासन उसकी ऐसी दुर्दशा नहीं कर सकता।
डिजिटल जमाने में सबके पास मोबाइल है और कोई घटना छिप नहीं सकती। इसीलिए लगातार सपा के आरोपों और हमलों का सामना करने वाली पुलिस कहीं उनके विरु द्ध हो तब भी ऐसा एकपक्षीय परिणाम बगैर मतदाताओं के समर्थन के संभव नहीं। उपचुनाव में विजय के बाद उत्तर प्रदेश की एक तस्वीर प्रिंट मीडिया के मुख्य पृष्ठ पर स्थान पाई जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दाएं और बाएं उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी खड़े हैं, केशव प्रसाद मुख्यमंत्री को मिठाई खिला रहे हैं। यह तस्वीर भी प्रदेश की राजनीति को लेकर काफी कुछ सकारात्मक संदेश दे रही थी।
लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद कुछ समय तक मुख्यमंत्री अवश्य थोड़े दबाव में दिखे किंतु उनका तेवर लौटा और उन्होंने उपचुनाव की घोषणा के पहले ही धुआंधार प्रचार आरंभ किया। आगरा में उन्होंने बांग्लादेश के हिंदुओं की दुर्दशा की ओर ध्यान दिलाते हुए ‘बटेंगे तो कटेंगे’ की बात की और चूंकि धरातल पर वातावरण था इसलिए लोगों तक इसकी भावना पहुंची। प्रधानमंत्री ने ‘बटेंगे तो दुश्मन महफिल सजाएंगे’ और फिर ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ का नारा दिया और यह दो विधानसभा चुनाव से लेकर उत्तर प्रदेश उपचुनाव वाले क्षेत्रों में ही नहीं, चारों ओर फैल गया।
ध्यान रखिए, इन उपचुनावों को भाजपा ने प्रखर हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा, योगी आदित्यनाथ ने स्वयं मथुरा और काशी के पुनरुद्धार की खुलकर बात की, वक्फ संशोधन का समर्थन किया। इस आधार पर चुनाव परिणाम को देखें तो तत्काल निष्कर्ष यही है कि सपा की 2014,2017, 2019 और 2022 की लगातार पराजय का दौर जारी है। सपा इस सच्चाई को समझ कर उसके अनुसार अपनी रणनीति बनाए तथा वैसे चेहरों को आगे लाए जो इसे समझ कर बोलें व काम करें तभी उसकी पुनर्वापसी संभव होगी।
(लेख में विचार निजी हैं)
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