राममनोहर लोहिया : आर्थिक सशक्तिकरण के पैरोकार

Last Updated 03 Oct 2024 01:15:04 PM IST

डॉ.राम मनोहर लोहिया को समाजवादी सिद्धांत का प्रवर्तक कहा जाता है, और उनके अनुयायियों को समाजवादी। समाजवाद वह सिद्धांत है, जिस पर चल कर वंचित तबकों को विकास की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। देश का समावेशी विकास भी तभी संभव होगा जब देश का वंचित तबका आत्मनिर्भर होगा।


राममनोहर लोहिया : आर्थिक सशक्तिकरण के पैरोकार

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के तरीकों को लेकर महात्मा गांधी और डॉ. लोहिया की विचारधारा एक समान थी। दोनों के अनुसार ग्रामीणों को आर्थिक-सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित करना जरूरी है। गांधी जी की तरह डॉ. लोहिया भी मानते थे कि कुटीर उद्योग के जरिए ग्रामीण भारत की सूरत बदली जा सकती है। हमारे देश में पूंजी और तकनीकी कौशल की कमी है, इसलिए यूरोप या रूस की विकासात्मक रणनीति अपना कर भारत में विकास की गति तेज नहीं की जा सकती।

वे चाहते थे कि देश में कुटीर उद्योग और नेहरू के भारी उद्योग के बीच का रास्ता अपनाया जाए ताकि समाज के सभी वर्ग आत्मनिर्भर बन सकें और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके। ऐसी सोच देश में लोकतंत्र और समाजवादी आर्थिक विचारधारा के समुचित विकास के लिए विकेंद्रीकृत व्यवस्था की वकालत करती है। सरकार को पूंजीवाद को संरक्षण नहीं देना चाहिए। पूंजीवादी नीति गरीबी, बेरोजगारी, अराजकता, भ्रष्टाचार आदि बढ़ाती है। वे छुआछूत के भी खिलाफ थे और जाति-रंग की वजह से होने वाले भेदभाव को विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा मानते थे।

डॉ. लोहिया इसे ग्रामीणों खासकर ग्रामीण क्षेत्र और देश के पिछड़ेपन का बड़ा कारण मानते थे। इसकी वजह से गांव, कस्बे, शहर और देश का सुचारू ढंग से विकास नहीं हो सकता। युवा देश के कर्णधार हैं क्योंकि वे लंबे समय तक देश के विकास को सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। इसलिए उन्हें हुनरमंद बनाने की जरूरत है ताकि वे बेरोजगार न रहें। भारत में महिलाएं काफी पिछड़ी हैं, लेकिन शिक्षा में उन्हें प्रोत्साहित करके इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। महिलाओं को समान अवसर के साथ-साथ हर कार्य में प्राथमिकता भी देनी चाहिए। महिलाओं को समान काम के लिए समान वेतन, अवसर और कानून में समानता और पुरु षों के समकक्ष स्तर पर काम करने में उनकी स्वाभाविक कमियों की भरपाई के लिए महिलाओं को विशेष अवसर दिया जाना चाहिए।

देश से निर्यात की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए और आयात की कम ताकि देश में व्यापार घाटा की स्थिति उत्पन्न नहीं हो और मेड इन इंडिया की अवधारणा को बढ़ावा मिले अर्थात भारत आत्मनिर्भर बने और स्वदेशी उत्पादों का देश में बोलबाला हो। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर, लघु, मध्यम और बड़े उद्योग विकसित किए जाएं और रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। साथ ही, वहां आधारभूत संरचना को सशक्त बनाकर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि ग्रामीण क्षेत्र का सुचारु  विकास हो और ग्रामीणों का पलायन रुके। डॉ. लोहिया का मानना था कि विकसित देश वैश्विक व्यापार में विकासशील देशों की मदद करें ताकि पिछड़े देश भी आगे बढ़ सकें। हमारी लड़ाई भूख, बीमारी और अशिक्षा के खिलाफ होनी चाहिए न कि किसी देश के साथ। आर्थिक असमानता दुनिया में कलह और युद्ध का मुख्य कारण है।

वे आर्थिक-राजनीतिक शक्तियों के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे क्योंकि सत्ता, आर्थिक शक्तियां और प्रशासन के केंद्रीकरण से सरकारी लाभ गांवों और ग्रामीणों तक नहीं पहुंच सकते। संप्रभु शक्तियां केवल केंद्र में केंद्रीकृत नहीं होनी चाहिए। विकेंद्रीकृत हों। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, लोकतांत्रिक संस्थाएं पनप नहीं पाएंगी और प्रशासन में लोगों की सक्रिय भागीदारी वास्तविकता नहीं बन सकती। डॉ. लोहिया साम्यवाद, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ थे। किसी भी देश की ऐसी नीति उस देश का विकास नहीं कर सकती और यह मानवता के भी खिलाफ है। उनका मानना था कि पूंजी के बिना औद्योगीकरण संभव नहीं है, और भारत में समानता का रास्ता अपना कर ही पूंजी निर्माण किया जा सकता है।

हालांकि, भारत जैसे देश में पूंजीवाद की अवधारणा सफल नहीं हो सकती क्योंकि इस अवधारणा में आर्थिक शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित होती है, जो देश के समावेशी विकास को बाधित करती है। भारत करीब 200 साल की गुलामी के बाद आजाद हुआ जिस कारण अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण मापदंडों पर पिछड़ गया था। डॉ. लोहिया चाहते थे कि सभी को आत्मनिर्भर बना कर देश का विकास सुनिश्चित किया जाए। ग्रामीण भारत में कृषि के साथ-साथ कुटीर और लघु उद्योगों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि देश में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा सके।

सतीश सिंह


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