केजरीवाल के सवाल की सियासत
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर पर जनता की अदालत लगाई, लेकिन उसमें उन्होंने प्रश्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत से पूछा। बाद में इन पर पत्र लिख दिया। उन्होंने पांच प्रश्न पूछे।
केजरीवाल : सवाल की सियासत |
एक, जिस तरह से भाजपा देश भर में लालच देकर डराकर या ईडी सीबीआई की धमकी देकर दूसरी राजनीतिक पार्टी और उनके नेताओं को तोड़ रही है, गैर भाजपा सरकारों को गिरा रही है क्या यह देश के लिए सही है? क्या आप नहीं मानते कि यह भारतीय जनतंत्र के लिए हानिकारक है? दो, सबसे भ्रष्ट नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल किया है। जिन नेताओं को पहले भाजपा के नेताओं ने खुद सबसे भ्रष्टाचारी बोला था कुछ दिन बाद उनको बीजेपी में शामिल कर लिया गया।
क्या इस प्रकार की राजनीति से आप सहमत हैं। क्या ऐसी बीजेपी की कल्पना की थी? तीन, भाजपा आरएसएस की कोख से पैदा हुई है। कहा जाता है कि यह देखना संघ की जिम्मेदारी है कि भाजपा पदभ्रष्ट न हो। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आप भाजपा के इन कदमों से सहमत हैं? क्या आपने कभी बीजेपी को यह सब करने से रोकने की कोशिश की उनसे इस बारे में सवाल पूछे? चार, जेपी नड्डा ने लोक सभा चुनाव के दौरान कहा था कि भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। जब नड्डा ने यह कहा तो आपके दिल पर क्या गुजरी? आपको दुख नहीं हुआ?
आरएसएस बीजेपी के लिए मां सम्मान है। क्या बेटा इतना बड़ा हो गया कि वह पलटकर मातृ तुल्य संस्था को आंखें दिखा रहा है? पांच, आप लोगों ने मिलकर कानून बनाया था कि पार्टी में 75 साल से ऊपर के नेता रिटायर होंगे। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कई नेताओं को रिटायर कर दिया गया। अब अमित शाह कह रहे हैं कि यह नियम मोदी पर लागू नहीं होगा। क्या आप इससे सहमत हैं? आप देखेंगे की हाल के वर्षो में विरोधी पार्टयिां, नेता, एक्टिविस्ट और सोशल मीडिया पर सक्रिय नैरेटिव सेटर्स सभी भाजपा और नरेन्द्र मोदी सरकार का विरोध करते हुए, हमला करते हुए संघ को निशाना बनाते हैं और कुछ तो भाजपा से ज्यादा संघ को ही हमले का शिकार बनाते रहते हैं। राहुल गांधी उनमें शीर्ष पर हैं, जिनका कोई भाषण और वक्तव्य संघ पर हमले के बिना नहीं संपन्न होता।
किंतु राजनीतिक नेताओं में केजरीवाल की तरह प्रश्न इससे पहले कभी किसी ने पूछा नहीं था। केजरीवाल ने नेताओं को डराने-धमकाने या ईडी सीबीआई आदि का डर दिखाने या फिर 75 वर्ष की उम्र आदि को लेकर जो कहा यह उनका अपना दृष्टिकोण है। इन प्रश्नों और वक्तव्यों की मूल बात दूसरी है। जेल से बाहर आने के बाद जब उन्होंने इस्तीफे की घोषणा की तो यही कहा कि वह जनता के बीच जाएंगे और जनता उन्हें निर्दोष साबित कर देगी तो फिर वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे। इस तरह जंतर मंतर पर जनता की अदालत उनके उसी अभियान की शुरु आत थी। स्वाभाविक ही ऐसे अभियान में हुए बहुत सोच समझकर साधे हुए अंदाज में और चालक राजनीति के तहत ही कोई विषय उठाएंगे। इसलिए कम से कम केजरीवाल और आपकी दृष्टि से संघ प्रमुख के पूछे गए इन प्रश्नों को आप यूं ही खारिज नहीं कर सकते।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य प्रणाली में कभी भी राजनीतिक प्रश्न तो छोड़िए नियमित होने वाली निंदा आलोचना या हमले के उत्तर देने या किसी भी प्रश्न पर स्पष्टीकरण देने का चरित्र नहीं है। संघ पर गहरी दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि इन सबसे अप्रभावित रहते हुए अपने उद्देश्यों के लिए निर्धारित कायरे और आयोजनों में लगे रहते हैं। संघ के किसी जिम्मेदार अधिकारी से बात करिए तो उनका उत्तर यही होता है कि यह सब हमें अपने लक्ष्य और उद्देश्यों में बाधा डालने वाली होती है इसलिए इन सबसे अप्रभावित होकर चरैवेति चरैवेति के सिद्धांत पर केवल काम करते रहना है। इसलिए हमारे स्वयंसेवक प्रतिबद्ध समर्थक कभी इन सब से प्रभावित होकर विचलित नहीं होते।
वैसे केजरीवाल के राजस्व अधिकारी के समय एनजीओ और सूचना अधिकार कार्यकर्ता फिर भ्रष्टाचार के विरु द्ध अन्ना अभियान और अंतत: आम आदमी पार्टी की अब तक की गतिविधियों पर ध्यान रखने वाले बिना किसी हिचक के बोल सकते हैं कि किसी सकारात्मक उद्द्ेश्य से उन्होंने ये पांचों प्रश्न नहीं पूछे होंगे। यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद सत्ता और राजनीति के स्तर पर हिंदुत्व और हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रवाद पर फोकस कर विचारधारा पर ऐसे ऐतिहासिक निर्णय और कार्य हुए जिनकी पहले कल्पना नहीं की गई थी। मोदी के भाषणों, वक्तव्यों, नीतियों और व्यवहारों से हिंदुत्व विचारधारा वाले केवल संघ संगठन परिवार ही नहीं बाहर के संगठनों समूहों के अंदर भी उत्साह का संचार हुआ।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के समाचार पत्र के साक्षात्कार में भाजपा अब बड़ा संगठन हो गया और उसे संघ की उस रूप में आवश्यकता नहीं है जैसे आसपास और अचंभित करने वाले वक्तव्य ने पूरे संगठन परिवार और प्रतिबद्ध समर्थकों के मन में वैचारिक उथल-पुथल पैदा किया। इस पर भाजपा ने कभी स्पष्टीकरण नहीं दिया और संघ की ओर से कोई सार्वजनिक वक्तव्य आने का कारण नहीं था। इसलिए इसे लेकर पैदा हुआ संभ्रम किसी न किसी रूप में अभी भी कायम है।
भाजपा की ओर से अरविंद केजरीवाल के प्रश्न पर मुख्य उत्तर यही है कि पहले वह बताएं कि अन्ना हजारे के बारे में उनकी क्या राय है या उन्होंने उन्हें धोखा क्यों दिया? वे अपने भ्रष्टाचार के बारे में स्पष्टीकरण दें। हमारी राजनीति में प्रश्न का सीधा उत्तर देने की परंपरा समाप्त है और इसके और प्रतिक्रिया में केवल ऐसे प्रश्न किए जाते हैं जो दूसरे के लिए और सुविधा उत्पन्न करें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अरविंद केजरीवाल का वक्तव्य इस बात का स्वयं प्रमाण है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज भी एक नैतिक आदर्श से भरा हुआ संगठन मानते हैं, तभी उन्होंने इस तरह का प्रश्न किया है।
केजरीवाल को भी स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर संघ के बारे में उनकी सोच क्या है। कारण राहुल गांधी और दूसरे नेता संघ को हमेशा अपनी राजनीति साधने और मुसलमानों सहित एक बड़े वर्ग का वोट पाने के लक्ष्य से संघ को एक फासिस्ट हिंसक दूसरे समुदायों से नफरत करने वाला अनैतिक संगठन घोषित करते रहते हैं। उनकी राजनीतिक रणनीति जो भी हो एक बार संघ के बारे में उन्होंने अपनी राय जरूर सामने रखनी चाहिए।
(लेखक के निजी विचार हैं)
| Tweet |