उत्तराखंड में आवाजाही से बढ़ रही तबाही

Last Updated 06 Aug 2024 12:28:05 PM IST

इस बार जितनी देर से बारिश शुरू हुई है। उतनी ही जल्दी आपदा आ गई है। जुलाई के अंतिम सप्ताह से चारधाम की सड़कें ध्वस्त होने लगी है। आवागमन के पैदल रास्ते भी नदी में समा रहे हैं। जहां-जहां मनुष्य के कदम पड़ रहे हैं वहां धरती इतनी संवेदनशील बन गई कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है। ध्यान रहे कि चारधाम बरसात में सुरक्षित नहीं है।


उत्तराखंड में आवाजाही से बढ़ रही तबाही

सुरक्षा के नाम पर जितनी भी घोषणाएं करें वह मौसम के सामने बौनी पड़ रही है। यहां हर साल आपदा की भवावहता बढ़ती ही जा रही है। केदारनाथ आपदा की तरह ही मंदाकिनी नदी में इस बार फिर से जल पल्रय जैसा रूप लोगों ने देखा है। स्थिति इतनी विकराल बन गई कि 2 अगस्त तक केदारनाथ पैदल मार्ग पर फंसे लगभग 4000 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया, जिसमें से लगभग 700 यात्रियों को हेली सेवा से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है।

मंदाकिनी नदी में जल स्तर बढ़ने से पैदल मार्ग पर रामवाड़ा में दो पुल और भीम बली में 25 मीटर रास्ता क्षतिग्रस्त होकर बह गया था, जहां से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को मुश्किल से बचाया जा सका है। पैदल मार्ग पर फंसे यात्रियों के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था राज्य सरकार ने की है। यदि पहले मौसम के अलर्ट की सूचना पर ऋषिकेश में ही यात्रियों को जाने से रोक देते तो समय और खर्च दोनों भी रोका जा सकता था। उत्तराखंड और हिमाचल में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें से 16 लोग उत्तराखंड में मलबे में दबकर मरे हैं। हिमाचल में 6 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 53 लोग लापता बताए जा रहे हैं।अब तक वहां पर 300 करोड़ से अधिक के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है।

2023 की आपदा में भी हिमाचल में 10,000 करोड़ का नुकसान हुआ था और लगभग 500 लोग मारे गए थे। इस बार अभी तक यहां दो पावर प्रोजेक्ट ध्वस्त हो गए हैं, जिसके कारण दर्जनों लोग लापता है। आपदा की यह जानलेवा घटना कुल्लू, मंडी और रामपुर में अधिक हुई है। हिमाचल की 445 सड़कें यातायात के लिए ठप पड़ी है। जिसको खोलने के लिए राज्य सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है। सूत्रों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बाहर से आने वाले पर्यटकों ने आपदा की स्थिति को देखकर अपनी बुकिंग कैंसिल की है, जिसके कारण पर्यटन कारोबार पिछले वर्ष की तरह प्रभावित हो गया है। कुल्लू-शिमला की सीमा पर समेज खड में आई बाढ़ में लगभग 36 से ज्यादा मकान बह गए हैं।

यहां 6 बच्चों समेत 36 लोग भी लापता हैं। 7 घंटे में सामान्य से 305 मिलीमीटर ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। लगभग 7 पुल बह गए हैं। सतलुज और ब्यास नदियों का जलस्तर खतरे के करीब पहुंचने लगा है। यहां पर श्रीखंड महादेव मार्ग पर करीब 250 लोग फंसे रहे। चिंता की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाएं सबसे अधिक विनाश का कारण बन रही हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा के समय भी 24 जल विद्युत परियोजनाओं ने मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी का जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित किया था, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। इसकी पुनरावृत्ति फिर से देखी जा रही है।

जिला टिहरी गढ़वाल में बालगंगा और धर्मगंगा पर 26-27 जुलाई की भीषण बाढ़ ने जो विनाश लीला सामने लाई है; उसने केदारनाथ आपदा की याद ताजा की है। यहां पर तीर्थ यात्रियों के लिए प्रसिद्ध बूढ़ा केदारनाथ का मंदिर भी है, जिसके दोनों तरफ ये नदी बहती है। यहां 20 किमी के क्षेत्र में नदी तटों पर निर्माण कायरे से एकत्रित मलवे के बहने से पैदा हुए भीषण जल पल्रय से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि नष्ट हुई है। लोगों के होटल, मकान, गौशालाएं नदी में समा गए।

यहां पर बड़े बांध के विकल्प के रूप में 50 किलोवाट की एक छोटी पण बिजली बनाई गई थी, जो पूरी तरह मलबे में दब गई है। इससे आगे भी तीन मेगावाट की एक लघु जल विद्युत भी ध्वस्त हो गई हैं। क्षेत्र के एक दर्जन पुल जर्जर हो चुके हैं। तिनगढ़ गांव के परिवारों के घरों में मलवा जमा हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बाढ़ पीड़ितों से मिल रहे हैं और राहत और पुनर्वास का आासन दे रहे हैं, लेकिन इन नदियों के दोनों तरफ लोग पूर्व में आपदा से प्रभावित हुए श्रीनगर, उत्तरकाशी और केदारनाथ की तर्ज पर पुनर्निर्माण की मांग कर रहे हैं क्योंकि यहां हालात बहुत चिंताजनक हैं।

भारी बारिश के चलते डरे हुए माहौल में लोग रात गुजार रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए जिस तरह की न्यूनतम राशि की घोषणाएं अब तक हुई है उसके कारण लोगों में रोष भी है। उत्तरकाशी में भागीरथी और यमुना नदी के उम में भी भीषण बाढ़ के दृश्य सामने आए हैं, लेकिन बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर गंभीरतापूर्ण विचार नहीं हो रहा है। हिमालय की भौगोलिक संरचना की अनदेखी करके विकास के तरीके विनाश के रास्ते पर ले जा रही हैं। हर साल जल पल्रय की निरंतर घटनाओं में बह रही मिट्टी, पानी, पत्थर, पेड़, लोग आदि की चिंता बरसात पूरा होने पर समाप्त हो जाती है। इसके बाद धरती तोड़ विकास अनवरत चलता रहता है। फिर पुनरावृत्ति होती है जो भोगवादी विलासिता पूर्ण विकास का परिणाम है।

सुरेश भाई


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