भाजपा समर्थक : ठीक नहीं ऐसी नाराजगी
भाजपा इस समय एक साथ जिन चुनौतियों का सामना कर रही है उनमें हमें विपक्षियों का आक्रमण शायद सबसे बड़ा दिखता होगा। किंतु विपक्ष का विरोध और तेवर उनके लिए अपेक्षित है तथा इसका मुकाबला करने में भाजपा को संकोच भी नहीं हो सकता।
भाजपा समर्थक : ठीक नहीं ऐसी नाराजगी |
आप अगर धरातल पर काम करते हैं या सोशल मीडिया पर दृष्टि है तो देखेंगे कि इस समय भाजपा को लेकर सबसे ज्यादा नाराजगी और निराशा उनके स्वयं के कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और प्रतिबद्ध समर्थक प्रकट कर रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों में ऐसे लोगों की संख्या छोटी-मोटी नहीं है जिनके विश्लेषणों, वक्तव्यों और व्यवहार में भावनाएं आबद्ध होतीं हैं।
भाजपा की यही सबसे बड़ी ताकत है तो इन्हें संभालना नेतृत्व के लिए वैसी ही चुनौती भी है। चुनाव में भाजपा के उम्मीद से कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए अनुमान लगाया गया था कि ऐसे लोग अब शांत होंगे। ऐसा हुआ नहीं है।
आश्चर्य की बात है कि काफी पढ़े-लिखे और बड़े लोग भी इस समय विपक्ष की आलोचना या विरोध करने की जगह भाजपा नेतृत्व पर ही हमले कर रहे हैं। सरकारों में इनकी या इनके जैसे लोगों की व्यापक अनदेखी, उम्मीदवारों का उनकी कसौटी पर सही नहीं होना तथा केंद्र व प्रदेशों में उच्च पदों पर बैठे अनेक चेहरों तथा उनकी भूमिकाओं में इनकी शिकायतों को स्वीकार करने में समस्या नहीं है। किंतु इनमें ज्यादातर लोग हिन्दुत्व, हिन्दुत्व अभिमुख राष्ट्र भाव, आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, इतिहास, सामाजिक न्याय आदि के आधार पर अपना विचार और व्यावहारिक निर्धारित करते हैं।
वास्तव में ये दोनों अलग-अलग पहलू हैं। साफ है कि भावावेश में इस सच को नजरअंदाज कर रहे हैं कि इन मामलों पर स्वतंत्रता के बाद किसी सरकार ने काम किया है तो वह नरेन्द्र मोदी सरकार ही है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी इस मायने में राजनीति में आज तक के सबसे प्रखर, मुखर और निर्णय लेने वाले नेता बन चुके हैं। 2019 में अमित शाह द्वारा गृह मंत्रालय संभालने तथा सरकार में दूसरे निर्णायक की भूमिका में आने के बाद हिन्दुत्व व भारतीयत्व के मामले में सरकार सोच और नीतियों में ज्यादा दृढ़ हुई है। यह तो संभव है कि जिस गति और परिमाण में समर्थकों का एक बड़ा समूह काम करने की अपेक्षा रखता था वह नहीं हुआ।
सत्ता और संगठन से जुड़े अनेक नेता भी विचारधारा की कसौटी पर खरा उतरने नहीं दिखे। किंतु राजनीति के दूसरे दलों और नेताओं से तुलना करें तो तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी। निस्संदेह, भाजपा को संगठन तथा सत्ता की सोच तथा आचार व व्यवहार में व्यापक संवेदनशील बदलाव की आवश्यकता है और यह आसानी से नहीं हो सकता। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय ऐसी समितियां बनें जो स्थानीय कार्यकर्ताओं, नेताओं, समर्थकों से बातचीत कर तथ्य इकट्ठा करें और उनके अनुसार तात्कालिक और दूरगामी दृष्टि से जो कुछ चिंतन, व्यवहार और चेहरे के स्तर पर बदलाव होना चाहिए वह किया जाए। व्यक्तिगत बातचीत या सोशल मीडिया की बहस में शिक्षा, इतिहास, संस्कृति, कला, साहित्य, समाज विज्ञान आदि से जुड़ी संस्थाओं ने वाकई 10 वर्षो में ऐसे रेखांकित करने वाले काम नहीं किया जिसे वर्षो से चले आरोपित विकृत वामपंथी सिद्धांत, धारणाएं और नैरेटिव ध्वस्त हो सके।
सरकारी विभागों को तो छोड़िए इन संस्थानों, विविद्यालयों आदि के संरचनात्मक ढांचे में भी बदलाव नहीं हुआ। कुल मिलाकर इनकी प्रकृति से ऐसा लगता नहीं कि वाकई पुरानी सोच और व्यवहार वाली सत्ता बदल चुकी है। इससे सक्रिय बौद्धिक वर्ग और नैरेटिव की लड़ाई लड़ने वालों को धक्का पहुंचना बिल्कुल स्वाभाविक है। किंतु दूसरी ओर यह भी सच है मोदी सरकार ने भारत के दूरगामी भविष्य का ध्यान रखते हुए ऐसे कार्य किए जिनकी कल्पना पहले नहीं की गई थी।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति, नागरिकता संशोधन कानून, एक साथ तीन तलाक के विरु द्ध कानून, भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा गो हत्या निषेध की कानूनी व्यवस्था, पाकिस्तान सीमा के अंदर कार्रवाई, भारतीय सभ्यता-संस्कृति के अनुरूप जी-20 और कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन, विदेश यात्राओं में मोदी द्वारा भारतवंशियों के बीच संबोधन से भारतवंशियों में भारत, भारतीय सभ्यता-संस्कृति और हिन्दुत्व को लेकर गर्व का भाव पैदा करने, काशी तमिल संगम जैसे कार्य विचारधारा वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए संतोष के विषय होने चाहिए।
यह कहना आसान है कि श्रीराम मंदिर का निर्माण तथा रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तो उच्चतम न्यायालय के आदेश से संभव हो सका। क्या केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं होती तथा प्रदेश में भी भाजपा की जगह दूसरी सरकार होती तो मंदिर का निर्माण हो पाता? आज अमेरिका सहित विश्व के कई प्रमुख देश आरोप लगा रहे हैं कि भारत उनकी धरती पर हत्याएं करवा रहा है। भारत विरोधी आतंकवादी चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं।
पाकिस्तान आरोप लगा रहा है कि भारत की एजेंसियां ही हत्या करवा रही है। यह कैसे हो रहा है क्यों हो रहा है इस पर प्रमाणित तथ्य देना कठिन है, किंतु पूर्व में तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी एक ऐसे नए मुखर भारत का उदय हुआ है जो अपने राष्ट्रीय हित पर केंद्रित विचार से निर्णय करते समय यह नहीं सोचता कि कौन देश इससे नाराज होगा और कौन खुश। एक समय निर्गुट आंदोलन के नाम से अवश्य वैश्विक संगठन चला, लेकिन निर्गुटता का साकार रूप हमने मोदी सरकार के दौरान ही देखा है।
आज भारत किसी के गुट में नहीं लेकिन किसी के विरुद्ध भी नहीं। 10 वर्षों में प्रधानमंत्री के अप्रोच और सरकार की भूमिका के कारण आज भारत ही नहीं विश्व भर के हिन्दू स्वयं को हिन्दू कहने, अपने त्योहार, प्रमुख दिवस मनाने में वैसे ही मुखर हैं जैसे दूसरे मजहब के लोग। यह ऐसा बदलाव है जिसको सही दिशा दी गई। इसी कारण दुनिया के अनेक शक्तिशाली सरकारी गैर सरकारी शक्तियां मोदी सरकार के विरुद्ध अभियान चलाकर सत्ता से बाहर करना चाहती है। इसलिए भाजपा और सरकार में चेहरे चरित्र और चाल में बदलाव के लिए आवश्यक आवाज उठे किंतु दूसरे पक्ष को ध्यान न रखेंगे तो परिणाम घातक होगा। फिर आप विरोधियों के एजेंडे और लक्ष्य को पूरा करने का काम करेंगे।
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