कोचिंग हादसा : शिक्षा पर बदलें सोच
दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में तीन छात्रों की अकल्पनीय दुखद मृत्यु हर चिंतनशील व्यक्ति को अंदर से हिलाने वाली है। निश्चित रूप से कोचिंग करने आए उन तीन दुर्भाग्यशाली छात्रों का कोई दोष नहीं है।
कोचिंग हादसा : शिक्षा पर बदलें सोच |
राव आईएएस स्टडी सर्किल सिविल सेवा के कोचिंग की दृष्टि से सम्मानित नाम है। हालांकि पिछले ढाई दशकों में कई और ऐसे कोचिंग संस्थान खड़े हो गए हैं जिनका सम्मान और साख अभ्यर्थियों की दृष्टि में राव’स के लगभग बराबर ही है।
कल्पना करिए, अगर इतनी पुरानी और सम्मानित संस्था की आधारभूत संरचना ऐसी है तो अन्य संस्थाओं की कैसी स्थिति होगी? इस घटना के बारे में जानकारी इतनी ही है कि ओल्ड राजेंद्र नगर में बारिश का पानी सड़कों पर भर गया जो दुकानों-मकानों में घुसने लगा और बड़ी गाड़ियों के यूटर्न लेने से कुछ मिनट के लिए पानी इतनी तेजी से आया कि स्टडी सर्किल के बेसमेंट में लगे शीशे के दरवाजे टूट गए और मिनट भर में अंदर पानी भर गया।
कुछ सौभाग्यशाली छात्र बच के निकल गए। तीन नहीं निकल सके। इसे सामान्य दृष्टि से भी विश्लेषित करें तो नालियों, सड़कों पर जल जमाव के बीच यातायात की व्यवस्था, व्यावसायिक स्थलों के बचाव तथा भवन निर्माण में ऐसी, सुरक्षित दरवाजे आदि के पहलू सामने आएंगे। इसके लिए कितने विभाग और लोग अपराधी दिखाई देते हैं, बताने की आवश्यकता नहीं। कह सकते हैं कि जब बारिश काफी तेज हो तो एकाएक पानी का निकास संभव नहीं होता। तो क्या इस आधार पर ऐसी भयावह घटना को स्वाभाविक माना जा सकता है?
दिल्ली के उपराज्यपाल का बयान है कि दोषी बख्से नहीं जाएंगे। यह सामान्य सा बयान है। कौन-कौन दोषी हैं, इसकी पहचान अपने आपमें बड़ा प्रश्न होता है। घटना बिल्कुल ताजी है, देश भर का ध्यान है, लोगों में आक्रोश है तो ऐसे समय कार्रवाई होती है। इसके बाद न्यायालय की लड़ाई, साथ ही साथ पूरी स्थिति की समीक्षा और फिर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके सुरक्षोपाय हमारे समाज और सत्ता प्रतिष्ठान के चरित्र में बहुत कम परिमाण में दिखते हैं। कोचिंग सेंटर को सील कर दिया गया है। क्या सड़क के उस स्थान को भी सील किया जा सकता है जहां से पानी का तेज झोंका अंदर आया? क्या उन गाड़ियों की पहचान कर दंडित किया जा सकता है जिन्होंने ड्राइविंग मानकों का उल्लंघन कर गलत तरीके से यूटर्न लिया और घटना घटा दी? क्या उस व्यावसायिक क्षेत्र के निर्माण की अनुमति और पूर्णता का सर्टिफिकेट देने वाले सारे लोगों की पहचान संभव है? इसी तरह युवाओं के कॅरियर बनाने के नाम पर चारों तरफ दिख रहे कोचिंग सेंटरों में से कम से कम बड़े नामों की भी क्या एक बार संपूर्ण जांच संभव है? इन प्रश्नों के उत्तर हम आप अच्छी तरह जानते हैं।
किसी समस्या को उसकी संपूर्णता में देखने और दुरगामी सोच से स्थायी समाधान की दिशा में बढ़ने की आवश्यकता होती है। हमने अपनी पूरी शैक्षणिक-सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को इस स्थिति में पहुंचा दिया है जहां से लगता ही नहीं कि इसकी संभावना बची है। नगरों में निर्माण और उसके संचालन का मुद्दा यहां शीर्ष पर दिखता है। इसके परे देखें तो क्या शिक्षा के लिए इस तरह के कोचिंग सेंटरों की वाकई आवश्यकता है? दिल्ली ही नहीं पूरे देश में शायद ही कोई ऐसा शहर और कस्बा होगा जहां परीक्षाओं की तैयारी के नाम पर छोटे-बड़े कोचिंग सेंटर न हों। आम प्रतिक्रिया यही होती है कि सरकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन की स्थिति इतनी कमजोर है कि अगर छात्र अतिरिक्त कोचिंग में न जाएं तो उनके लिए वर्तमान प्रतिस्पर्धा के दौर में सफल होना मुश्किल है। प्रश्न उठता है कि आखिर, हमारा शिक्षा ढांचा इतना लाचार क्यों हो गया? शिक्षा किसी समाज और राष्ट्र का मूल है। जैसी शिक्षा वैसे ही देश और समाज का निर्माण। जिन लोगों ने इस बात पर गहराई से विचार किया कि हमारा देश कभी विश्व के लिए आकषर्ण का केंद्र था तो उसकी शिक्षा व्यवस्था कैसी थी, उन्हें इसका उत्तर मिला। प्राचीन वांग्मय में पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं कि हमारी शिक्षा छात्रों के लिए सच्चे ज्ञान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर श्रेष्ठ मनुष्य बनने और समाज को दिशा देने जैसे कर्त्तव्य निर्वहन पर केंद्रित थी।
देश, काल, परिस्थिति के अनुसार इसमें विषय घटते-बढ़ते रहे किंतु मूल लक्ष्य एक ही रहा। ज्ञात इतिहास में ऐसे विश्वविद्यालय उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम यानी पूरे देश में थे जहां विदेशों से भी छात्र आते थे। इसलिए भारत को कभी वर्तमान शिक्षा प्रणाली जैसा ढांचा खड़ा करने की आवश्यकता नहीं हुई। हमारे यहां स्वतंत्रता के बाद शिक्षा सुधार के नाम पर परिवर्तनों की कोशिशें की गई किंतु मूल ढांचा वही रहा जो हमें अंग्रेजों ने दिया। इस शिक्षा व्यवस्था में छात्र के सामने हम कॅरियर का ही विकल्प देते हैं।
किसी भी क्षेत्र में जब कॅरियर सर्वोपरि होगी तो गलाकाट प्रतियोगिता होगी और फिर उसमें सफल रहने के लिए लाखों की संख्या में ऐसे ही संस्थान खड़े होंगे। कोचिंग तो छोड़िए देश में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के कितने निजी संस्थान खड़े हो चुके हैं। इसकी गणना तक असंभव है। जो शिक्षा हमारे यहां स्वाभाविक रूप से समाज व्यवस्था में बिना अतिरिक्त व्यय के अपने आप मिलती थी, वह इतनी खर्चीली हो गई कि किसी सामान्य आदमी के लिए स्तरीय शिक्षा दिलाना असंभव है।
दुर्भाग्य से पूरी व्यवस्था इसी शिक्षा व्यवस्था से निकले लोगों के हाथों है। पूरा वातावरण पिछले करीब डेढ़ सौ वष्रो में ऐसा बना है जिसमें इससे बाहर निकल कर नई शिक्षा व्यवस्था की ओर बढ़ने की कल्पना से लोग डरने लगते हैं। आप देश भर के प्रमुख शहरों के एक वर्ष के ही इससे संबंधित समाचारों को उठाएंगे तो पता चलेगा कि अलग-अलग प्रकार की अनेक त्रासदियां शिक्षा व्यवस्था के कारण हो रही हैं। अपने कर्त्तव्य को समझें, उसका ठीक से निर्वहन करें तथा हमारे अंदर इतना आत्मविश्वास हो कि जीवन में कल क्या होगा, यह चिंता आए ही नहीं। सत्यनिष्ठ, ईमानदार परिश्रमी और विश्वास से भरे भारतीय संस्कारों से ओतप्रोत नौजवान ही देश और दुनिया में मनुष्य के कल्याण में वातावरण के निर्माण में भूमिका निभा सकेंगे। तो ऐसी घटनाओं से सबक लेकर हम सबको शिक्षा, कॅरियर आदि से जुड़े पूरे नरेटिव और इकोसिस्टम को बदलने के लिए जहां जो कर सकते हैं, कोशिश करनी चाहिए।
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