मुद्दा : लोकतंत्र की रोटी है मतदान
मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कई संस्थाएं और संगठन सक्रिय हैं। उनका मकसद होता है कि ज्यादा-से-ज्यादा मतदाता वोट देने के लिए मतदान केंद्रों तक पहुंचें।
मुद्दा : लोकतंत्र की रोटी है मतदान |
इन अभियानों में लोकतंत्र और मतदान के रिश्तों को लेकर नई भाषा और मुहावरे भी विकसित हो रहे हैं। दिल्ली के दक्षिण पूर्व जिले में मतदाताओं के बीच चलने वाले पार्क टोली के अभियान में व्यक्तियों की सेहत से जुड़ी भाषा और मान्यताओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। पार्क टोली का मानना है कि नागरिक अपनी सेहत को लेकर जागरूक हुए हैं। इस क्षेत्र में भी मतदाता बड़ी तादाद में पाकरे और उन स्थानों पर सुबह-शाम जाते हैं, जहां हरियाली और स्वच्छ वातावरण होता है। टोली बता रही है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य लोकतंत्र के स्वास्थ्य से जुड़ा है।
जैसे कोई व्यक्ति भूखे नहीं रह सकता है। उसे जितना मिलता है, और भूख के समय जो खाने के लिए हासिल हो सकता है, उसे वह खाता है। वैज्ञानिक तथ्य है कि भूखे रहने से शरीर कमजोर और बीमार हो सकता है। इसी तरह हर मतदाता अच्छे से अच्छा प्रतिनिधि चुनने की कोशिश में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करता है, लेकिन वोट का इस्तेमाल नहीं करना तो लोकतंत्र को भूखा रखने जैसा है। टोली बताती हैं कि मताधिकार लोकतंत्र के लिए रोटी जैसा है, और मतदान करना हर मतदाता की जिम्मेदारी है।
चुनाव में लोग हिस्सा लेते हैं तो पूरे देश के लिए उन नीतियों और कार्यक्रमों के प्रति समर्थन जाहिर करते हैं, जो राजनीतिक पार्टयिां अपने चुनावी घोषणापत्र में दर्ज करती हैं। चुनाव गणतंत्र में स्वायत्तता के विचार को सुनिश्चित करता है। राज्यों के चुनाव अपनी विविधता की संस्कृति को मजबूत करते हैं। स्थानीय निकाय के चुनाव बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों की राय जाहिर करने के माध्यम होते हैं। इस तरह हर चुनाव की भी अपनी जरूरत है, जो मतदान के जरिए ही पूरी की सकती है।
1947 में भारत को जो आजादी हासिल हुई, उसका अर्थ ही है कि देश के लोग अपनी सरकार बना सकें। उन्हें अधिकार मिला कि वे अपना मत दें, लेकिन इस अधिकार के साथ मतदाताओं को इस तरह से जिम्मेदार भी बनाया गया है कि उनका वोट केवल उनका वोट नहीं है। उनके वोट में आबादी के बड़े हिस्से का वोट भी शामिल है। जो लोग वोट देने जाते हैं, वे केवल अपना वोट नहीं देते हैं, बल्कि उनके वोट में वे वोट भी शामिल होते हैं, जो वोट नहीं दे सकते। बच्चे, लाचार, कमजोर लोग भी होते हैं। एक वोट में परिवार और कॉलोनी के कई लोगों का वोट होता है।
लेकिन जब कोई वोट के अधिकार का इस्तेमाल नहीं करता है तो एक साथ कई लोगों को सरकार बनाने में वोट के अधिकार से वंचित कर देता है। 2019 के लोक सभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि 89.6 करोड़ मतदाता थे। इनमें से 60 करोड़ 37 लाख मतदाताओं ने ही वोट दिया। कम लोग वोट देते हैं, तो इससे लोकतंत्र और संविधान के प्रति नागरिकों की जिम्मेदारी के भाव कमजोर होते हैं। पार्क टोली दिल्ली के दक्षिण पूर्व जिले में अपने अभियान में मतदाताओं के बीच फैली एक और प्रवृत्ति की तरफ ध्यान खींचती हैं। मतदाता समझता है कि वह एक उम्मीदवार को वोट देने जाता है। इस तरह की सोच लोकतंत्र के विचारों को कमजोर करती है। मतदाता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने के लिए मताधिकार का इस्तेमाल करता है। जिस उम्मीदवार को सर्वाधिक वोट मिलते है, वह सदन में प्रतिनिधित्व करने का अधिकारी होता है।
जिस उम्मीदवार को कम वोट भले वह सामाजिक प्रतिनिधि होता है। यह लोकतंत्र के लिए बेहतर से बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिस्पर्धा की कड़ी को मजबूत करता है जो लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए जरूरी है। सोचना उचित नहीं है कि मताधिकार का इस्तेमाल सबसे ज्यादा वोट पाने वाले किसी उम्मीदवार के लिए ही हो सकता है। वोट का महत्त्व इसमें भी है कि सभी व्यस्क नागरिकों को यह अधिकार मिला है। वे चाहें अमीर हों या गरीब। स्त्री हों या पुरु ष या अन्य जेंडर के हों।
ग्रामीण हों या शहरी। शिक्षण संस्थानों से डिग्री प्राप्त हों या नहीं। अंग्रेजों ने संपत्ति वालों को ही वोट का अधिकार दिया था। पार्क टोली का अभियान मतदाताओं के बीच नई तरह की जागरूकता विकसित कर रहा है। इस अभियान में पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे छात्र खासी तादाद में हिस्सा ले रहे हैं। वैसे मतदान बढ़ाने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग की महती भूमिका रही है। खासकर, देश के प्रमुख शख्सियतों को ब्रांड एंबेस्डर बनाकर आयोग ने नि:संदेह जनता को जागरूक करने में कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इस तरह के अभियान कुछ हफ्तों के अंतराल पर जरूर होने चाहिए। क्योंकि यह सर्वविदित है कि देश में कहीं-न-कहीं चुनाव होते ही रहते हैं।
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