सामयिक : एक और युद्ध का संकट
दुनिया अभी रूस-यूक्रेन के बीच करीब 600 दिन से चल रहे युद्ध का हल तो ढूंढ ही नहीं पाई थी कि फिलस्तीन के आतंकी समूह हमास ने इस्रइल में घुसकर हमला बोल दिया।
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यह आतंकी हमला ठीक वैसा ही है, जैसा 9/11 को अमेरिका में जुड़वां इमारतों में घटित हुआ था। नागरिकों से क्रूरता बरती गई। हमास ने इस हमले को ‘अल-अक्सा बाढ़’ से संबोधित किया तो इजरायल ने इसे ‘लोहे की तलवारें’ (स्वॉड्र्स ऑफ आयरन) कहते हुए आतंकियों से प्रतिशोध लेना शुरू कर दिया है।
बहरहाल विश्व शांति के लिए एक नया खतरा खड़ा हो गया है। इस खतरे में दुनिया दो भागों में बंटी जंग के पहले दिन से ही दिखाई देने लगी है। गोया, युद्ध की इस घड़ी में भारत, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन इस्रइल के साथ खड़े है। ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के सलाहाकार ने फिलस्तीन और यरु शलम की आजादी तक फिलस्तीन के लड़ाकों के साथ खड़े रहने की घोषणा की है। हमास ऐसा सोचता है कि चूंकि अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देश इस्रइल के हिमायती रहे हैं इसलिए इस्रइल पर हमला कराकर इन देशों को परेशान किया जाए। अतएव लग रहा है कि एक बार फिर वैश्विक शक्तियां मुस्लिम-ईसाई-यहूदी समुदायों में बंटी दिखाई देंगी। संयुक्त राष्ट्र संघ रूस-यूक्रेन युद्ध में जिस तरह से लाचार दिखाई दिया है, उसी तरह से इस जंग में भी दिखाई देगा।
उसने हमास हमले की निंदा तो कर दी है, लेकिन युद्ध के हालातों में उसकी सुरक्षा परिषद् शांति के कोई ठोस उपाय कर पाएगी, ऐसा कहना मुश्किल है? वैसे भी सुरक्षा परिषद् 21वीं सदी के बीत चुके दो दशकों में कोई अह्म भूमिका नहीं निभा पाई है। इसीलिए नरेन्द्र मोदी बार-बार इस संस्था को अप्रासंगिक कहते हुए इसके ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन की मांग लगातार उठा रहे हैं। लंबे समय से चल रहे इस विवाद का कारण यरु शलम की अक्सा मस्जिद है। यहूदी और फिलस्तीनी मुस्लिम दोनों ही इस पर अधिकार का दावा करते रहे हैं। मक्का और मदीना के बाद यह इस्लाम धर्मावलंबियों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। संघर्ष के संकट को टालने के लिए सातवें दशक में दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी कि गैर-मुस्लिम मस्जिद में प्रवेश तो कर सकेंगे, लेकिन इबादत की इजाजत नहीं होगी। यहूदी जब-जब प्रार्थना की कोशिश करते हैं, तब-तब जंग के हालात निर्मिंत हो जाते हैं, लेकिन इस बार हमास ने जिस तरह से एक साथ आसमानी, जमीनी और समुद्र से बड़ा हमला किया है, उस चुनौती ने इस्रइल को सकते में डाल दिया है। पश्चिम एशियाई दृष्टि से भी देखें तो यह टकराव साधारण नहीं है। इसलिए दुनिया की निगाहें इस्रइल पर टिक गई हैं कि वह इस चुनौती से कैसे निपटता है। हालांकि इस्रइल ने इस क्रम में गाजा पट्टी पर मौजूद हमास के ठिकानों पर हवाई हमले करके उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। गौरतलब है इस्रइल का डोम हमास के मिसाइल हमलों से कोई बचाव नहीं कर पाया और उसकी खुफिया एजेंसियों को इस हमले की भनक तक नहीं लगी।
2011 में अस्तित्व में आए जिस आयरन डोम पर इस्रइल को सुरक्षित बने रहने का अभिमान था, उसके हार्डवेयर तब से अपडेट ही नहीं किए गए थे, लिहाजा वे सॉफ्टवेयर से जुड़कर कोई परिणाम नहीं दे पाए। आतंकी गुट के कमांडर ने इस्रइल में रह रहे अरबों से कहा है कि यदि आपके पास बंदूके हैं, तो उन्हें बहार निकालो और चलाओ। इनके इस्तेमाल का यही सही समय है। इसीलिए गाजा पट्टी में आतंकियों को अरब नागरिकों का समर्थन मिलता दिखाई देने लगा है। आगे इस्रइल के शहरों में अरब मूल के लोगों और यहूदियों के बीच हिंसक दंगे भी शुरू हो सकते हैं। इस्रइल में 21 फीसद आबादी अरब लोगों की है। अरबियों को आतंकवादी संगठन हमास न केवल उकसा रहा है, बल्कि उन्हें हिंसक हमले के लिए औजार भी उपलब्ध करा रहा है। दरअसल, फिलीस्तीन के इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘हमास’ एक सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है। यह भी अन्य आतंकवादी संगठनों की तरह उन इस्लामी देशों का विरोधी है, जिनके कायदे-कानून शरीयत के अनुसार नहीं हैं। इस्लामी देशों की आंखों में इस्रइल हमेशा खटकता रहा है। इस्रइल एक यहूदी देश है। इस्रइल और फिलीस्तीन दशकों से लड़ते चले आ रहे हैं। ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अहमदी नेजाद ने तो सार्वजनिक ऐलान किया था कि इस्रइल को विश्व मानिचत्र से समाप्त कर देना चाहिए।
इस्रइल 1948 में स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया था। तभी से वह मध्य-पूर्व देशों में सक्रिय आतंकी संगठनों की मार झेल रहा है। इनमें हिजबुल्लाह, इस्लामी जिहाद और हमास शमिल हैं। इस्रइल और इन आतंकी संगठनों के बीच गाजा पट्टी पर संघर्ष जारी रहता है। यह पट्टी 30 मील लंबी और सात मील चौड़ी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा खुला गलियारा है। 1987 में यह संगठन अस्तित्व में आया था। इसे मिस्र के ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ संगठन का ही हिस्सा माना जाता है। इसे आर्थिक मदद सऊदी अरब और ईरान से मिलती है। इस्रइल और फिलस्तीन के बीच गाजा पट्टी पर 2006 से यह जंग जारी है। इसे फिलस्तीन के गृहयुद्ध की भी संज्ञा दी जाती है। साफ है, आतंकवाद को लेकर दुनिया दो खेमों में बंटी हुई है।
जो देश शांति की भूमिका रचने के पैरोकार बन रहे हैं, वही देश इन दोनों देशों को युद्ध की सामग्री बेचते हैं। साफ है, पेट्रोल से आग बुझाने का खेल खेला जा रहा है। इस्रइल पश्चिम एशिया में अमेरिका का प्रतिनिधि देश है। इस्रइल के जरिए ही इस क्षेत्र में अमेरिकी हितों की पूर्ति होती है। अमेरिका के दम पर ही इस्रइल फिलस्तीन की सत्ता पर काबिज हमास का अस्तित्व समाप्त कर देने का दम भरता है। बहरहाल, इस्रइल की कोशिश है कि इस बार वह ऐसा परिणाम दे कि दुनिया में फैले आतंकवादी संगठनों की कमर टूट जाए।
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