विधानसभा चुनाव : कौन कहां बढ़त में
चुनाव आयोग ने सोमवार पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा की। हालांकि पांच राज्यों में मुख्यत: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाले चुनाव की चर्चा ज्यादा हो रही है।
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बड़ी जद्दोजहद के बाद मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह टिकट पाने में कामयाब हुए पर उनके समर्थकों के टिकट काट दिए गए। वहीं राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ये लेख लिखते वक्त तक टिकट नहीं मिल सका है। राजस्थान में वसुंधरा राजे का खेमा क्या फैसला लेगा यह देखना दिलचस्प होगा। शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार मोदीजी के नेतृत्व को चुनौती दी है और छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान की खबरें भी कमोबेश इससे अलग नहीं है।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अपने शासन से लोकप्रियता हासिल की है। वहां यदि कुछ नाराजगी है तो जनता के बीच न रहने वाले विधायकों से है पर अगर इन लोगों को चिह्नित कर उनका टिकट बदल दिया गया तो छत्तीसगढ़ सीधे-सीधे कांग्रेस की झोली में जाता हुआ दिख रहा है। पिछले चुनाव में 90 सीट में कांग्रेस के खाते में 68 जबकि भाजपा को 15 और अन्य के खाते में 7 सीटें गई थी। इस बार भी वहां के लोग कांग्रेस को प्लस-माइनस 6 सीट मिलने की बात कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में तो पिछली बार भी कांग्रेस ही जीती थी पर ज्योतिराज सिंधिया के नेतृत्व में हुए दलबदल से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच जो खींचतान दिखलाई पड़ी और शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्युत्तर में जो रुख अख्तियार किया उसका व्यापक असर भी मध्य प्रदेश की राजनीति पर दिखाई पड़ता है। वैसे भी भाजपा सरकार के प्रति जनता की नाराजगी सब जगह दिखती है। इस वक्त मध्य प्रदेश की 230 सीटों में भाजपा के पास 127 तो कांग्रेस के पास 96 सीट है, जबकि बाकी अन्य के खाते में है। मध्य प्रदेश के लोगों से बात कर ऐसा लगता है कि इस बार भाजपा 70 सीट के आसपास सिमट जाएगी और कांग्रेस पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी।
राजस्थान का इतिहास रहा है कि हर बार वहां सत्ता बदल जाती है, परंतु वहां दो चीजें एक साथ हुई है। पहली- जहां अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के विद्रोह से भी सरकार को बचा लिया था वहीं पिछले कुछ समय में जनहित के कई बड़े फैसले कर उन्होंने लोकप्रियता भी हासिल की और खुद को मजबूत नेता भी सिद्ध किया। दूसरी बात -वसुंधरा राजे खुद को अपमानित महसूस कर रही हैं और इस बात को उन्होंने छुपाया भी नहीं है। इन दोनों घटनाक्रम को एक साथ रखकर आकलन करने से ऐसा लगता है कि इस बार राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा पर ब्रेक लगने जा रहा है और कांग्रेस का दावा है कि वो हर हाल में सरकार बना लेगी। उधर, दक्षिण राज्य तेलंगाना में बड़ा उठापटक दिखलाई पड़ रहा है। राहुल गांधी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कई दिन तेलंगाना में बिताया था और उसका व्यापक असर इधर दिखलाई पड़ा। दूसरे दलों के कई दिग्गजों ने कांग्रेस का दामन थामा है। कांग्रेस ने तेलंगाना को लेकर आक्रमक रवैया अपनाया और अपनी कार्यसमिति की बैठक वहीं आयोजित किया। तब से कांग्रेस ने तेलंगाना में पूरी ताकत झोंक रखी है। सत्ताधारी पार्टी के खाते में तेलंगाना आंदोलन और गठन है तो सत्ता में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद भी है। वहीं एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर भी है। परिमाण तो 3 दिसम्बर को पता लगेगा, लेकिन कांग्रेस मान चुकी है कि वो वहां सरकार बना रही है।
मिजोरम इकलौता नॉर्थ ईस्ट का राज्य है जहां मणिपुर की घटना के बाद चुनाव है। मणिपुर की घटनाओं ने क्या नॉर्थ ईस्ट की राजनीति को भी प्रभावित किया है? क्या भाजपा की सत्ता को लेकर पूरे नॉर्थ ईस्ट में कोई उल्टा प्रभाव पड़ा है इसका एक पैमाना भी साबित हो सकता है मिजोरम। मिजोरम लंबे समय तक कांग्रेस शासित राज्य रहा है। मिजोरम की विधान सभा की 40 सीट में एमएनएफ को 27 सीट है जबकि भाजपा की 1 और जेडपीएम की 6 सीट है तो कांग्रेस की 5 और 1 सीट टीएमसी की भी है। कांग्रेस वहा सत्ता में आने के लिए हाथ पैर मार रही है। ये चुनाव इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों में 5 विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, जिसमें नॉर्थ ईस्ट है तो दक्षिण भी और उत्तर भारत के तीन वो प्रदेश भी जहां काफी समय से भाजपा बहुत प्रभावशाली है। केवल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही 65 लोक सभा सीट है, जबकि तेलंगाना में 17 लोक सभा सीट है। इसलिए इस चुनाव को लोक सभा चुनाव के ठीक पहले मिनी आम चुनाव भी माना जा सकता है। एक बात ध्यान रखने वाली है कि केंद्र और राज्य की भाजपा की सरकार के खिलाफ विपक्ष माहौल बनाने में कामयाब होता दिख रहा है और इंडिया गठबंधन के रूप में एक मजबूत विकल्प और चुनौती पेश करने में कामयाब होता दिख रहा है।
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