वैश्विकी : फिलिस्तीन का नया ‘यूक्रेन’

Last Updated 08 Oct 2023 01:30:00 PM IST

पश्चिम एशिया में एक नया यूक्रेन बन रहा है। इसके अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी असर होंगे। यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के कमजोर होने और उसके संभावित धराशायी होने का एक और संकेत है।


वैश्विकी : फिलिस्तीन का नया ‘यूक्रेन’

अमेरिका और पश्चिमी देश जिस समय रूस के खिलाफ यूक्रेन को हथियारबंद कर रहे थे उस समय फिलिस्तीन का उग्रवादी संगठन हमास इजरायल के खिलाफ नए जिहाद की तैयारी कर रहा था। हमास का यह सैन्य अभियान इतना अप्रत्याशित और सुनियोजित था कि इजरायल सेना हकबका कर रह गई। इजरायल ने फिलिस्तीन के जिन क्षेत्रों पर कब्जा कर आवासीय बस्तियां बसाई थी उनमें रह रहे हजारों यहूदियों के लिए जान-माल का संकट पैदा हो गया। सबसे हैरानी की बात है कि हमास ने फिलिस्तीनी क्षेत्र में तैनात इजरायल के प्रमुख सेना अधिकारी मेजर जनरल निमरोड एलोनी को बंदी बना लिया। इसके साथ ही दर्जनों इजरायली सैनिक  हमास के कब्जे में हैं।

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस घटनाक्रम को अपने देश पर  हमला बता रहे हैं। जाहिर है कि इजरायल जवाबी कार्रवाई करेगा तथा गाजा सहित फिलिस्तीनी क्षेत्र में भारी तबाही होगी। फिलिस्तीन के लिए तबाही कोई नई बात नहीं है। इसका सामना तो वे दशकों से कर रहे हैं। नई बात यह है कि लंबे अरसे बाद इजरायल को  फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जे का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देश पूरे घटनाक्रम के लिए हमास को दोषी ठहरा कर उसकी निंदा कर रहे हैं लेकिन खूनखराबे के लिए ये देश कम जिम्मेदार नहीं हैं। इजरायल की सुरक्षा और  फिलिस्तीन के न्यायसंगत अधिकारों की रक्षा के लिए यदि गंभीर उपाय किए गए होते तो ये खतरनाक हालात पैदा नहीं होते।

हमास की सैनिक कार्रवाई वैसे समय हुई जब इजरायल में राजनीतिक असंतोष और अस्थिरता का माहौल है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के संवैधानिक सुधार को लेकर वहां काफी समय से प्रदर्शन हो रहे हैं। इस माहौल में सुरक्षा बल भी आवश्यक सतर्कता नहीं बरत पाते। यह भारत के लिए भी एक संदेश है। भारत में राजनीतिक असंतोष और अस्थिरता, संकट और सीमाओं की सुरक्षा को लेकर खतरा पैदा कर सकते हैं। देश के सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपने मतभेदों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं बनने दें। फिलिस्तीन के घटनाक्रम पर ईरान ने हमास का समर्थन किया है। इस्लामी देश दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं। इजरायल के जवाबी हमले में जब तबाही की सूचना प्रसारित होगी तब इस्लामी देश फिलिस्तीन के पक्ष में मुखर हो जाएंगे।

अमेरिका ने हाल में भारत और पश्चिम एशिया के देशों को लेकर कई कूटनीतिक और आर्थिक पहल की हैं। हाल में भारत और यूरोप के बीच एक नए परिवहन गलियारे की परियोजना रखी गई है, जिसमें भारत संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जार्डन और इजरायल शामिल हैं। नए हालात में इस पर प्रश्नचिह्न लग गया है। पूर्वी यूरोप में यूक्रेन के बाद पश्चिम एशिया में एक नया यूक्रेन बनने से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर नया संकट पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं है’ अनसुना प्रतीत होता है। यूक्रेन संकट को हल करने के लिए यदि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने कूटनीति और वार्ता का सहारा लिया होता तो संभवत: फिलिस्तीन का यह घटनाक्रम सामने नहीं आता।

कहने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देश इजरायल और फिलिस्तीन के सह अस्तित्व की बात करते हैं। यह पहल कैंप डेविड समझौते के रूप में आई थी। बाद के वर्षो में इसे भूला दिया गया और फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर यहूदी बस्तियों पर निर्माण का काम जारी रहा। विश्व बिरादरी की यह जिम्मेदारी है कि वह फिलिस्तीन और यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने के लिए नए सिरे से प्रयास करे। इस काम में भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देश सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। भारत और इजरायल रणनीतिक साझेदार हैं। इनके बीच रक्षा और खुफिया सहयोग उच्चतम स्तर पर है। इसके बावजूद भारत फिलिस्तीन के लोगों का हमदर्द है तथा उनके न्यायसंगत अधिकारों के लिए विश्व मंच पर आवाज बुलंद करता रहा है।

डॉ. दिलीप चौबे


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