मालदीव : भारत के साथ संतुलित संबंध जरूरी

Last Updated 04 Oct 2023 01:34:32 PM IST

मालदीव के चुनाव परिणाम में जनता ने इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जगह राष्ट्रपति पद के लिए मोहम्मद मुइज्जू को अपना नया नेता चुना है, जो 46 प्रतिशत के मुकाबले 54 प्रतिशत मत पाकर जीत गए, जबकि सोहिल वर्ष 2018 में भारी बहुमत से जीत हासिल कर सत्ता में काबिज हुए थे।


मालदीव : भारत के साथ संतुलित संबंध जरूरी

सोलिह की चुनावी हार के लिए सत्ता विरोधी लहर, कोविड-19 के बाद पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता, अपनी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ मालदीव (एमडीपी) के भीतर ही पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के साथ कलह के अलावा मालदीव की प्रोग्रेसिव पार्टी (पीपीएम) द्वारा भारत को लेकर उठाए गए संप्रभुता से जुड़े मुद्दे को जिम्मेदार माना जा रहा है।

पीपीएम ने भारतीय सैन्य कर्मिंयों को मालदीव से बाहर करने के लिए इंडिया आउट को प्रमुख मुद्दा बनाया, जिसके मुख्य सूत्रधार अब्दुल्ला यामीन 11 वर्ष की जेल की सजा काट रहे हैं। वर्ष 2013 से 2018 के अपने कार्यकाल के दौरान उनकी छविश्व खुले तौर पर भारत विरोध की थी। मुक्त व्यापार समझौते और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए मालदीव चीन के कर्ज-जाल में फंस गया, परंतु वर्ष 2018 में सत्ता में आते ही इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने ‘इंडिया फस्र्ट’ की नीति अपनाते हुए मालदीव की अंतरराष्ट्रीय नीतियों में बदलाव किए।

भारत ने वहां बुनियादी ढांचे से जुड़ी कई परियोजनाएं शुरू कीं, कोविड महामारी के दौरान मालदीव की सहायता की और मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को 2021 और 2022 के बीच 76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुने जाने के अभियान में मदद भी की। राष्ट्रपति चुनाव को भारत बनाम चीन की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा गया तथा इस चुनावी नतीजे में चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू की जीत ने मालदीव को वैश्विक सुर्खियों में ला दिया है, जिसको भारत के लिए एक खतरे की घंटी के रूप में चित्रित करने की कोशिश की गई है।

मालदीव के साथ भारत के गहरे सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध सदियों पुराने हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने तीन जून 2023 के एक दस्तावेज की घोषणा में कहा है कि मालदीव में भारत की एक प्रमुख स्थिति है, जिसमें लगभग अधिकांश क्षेत्रों में संबंध हैं। हिंद महासागर में मालदीव की अवस्थिति रणनीतिक रूप से बेहद अहम है।

समुद्री व्यापारिक मागरे से इसकी निकटता और चीन के विस्तारवादी मंसूबों के कारण मालदीव भू-राजनीति के केंद्र में रहा है। सुरक्षा कारणों से मालदीव भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है, इसलिए अपने सुरक्षा हितों का ख्याल रखते हुए गत दस वर्षो में भारत ने मालदीव को दो हेलीकॉप्टर और एक छोटा विमान दिया है। वर्ष 2021 में मालदीव डिफेंस फोर्स ने बताया कि भारत के 75 सैन्य अधिकारी मालदीव में रहते हैं और भारतीय एयरक्राफ्ट का संचालन और रखरखाव करते हैं।

भारत ने मालदीव में बुनियादी ढांचे के विकास के अलावा वर्षो से मालदीव के नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य व विभिन्न क्षेत्रों में अनिगनत अवसर भी प्रदान किया है। भारत अपने सैन्य अकादमियों में मालदीव के सुरक्षा अधिकारियों को प्रशिक्षित भी करता है। अब्दुल्लाह यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव चीन के करीब चला गया था और शी जिनिपंग की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का हिस्सा भी बन गया। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के नाम पर मालदीव चीन से लगभग एक बिलियन डॉलर का कर्ज ले चुका है।

यहां तक की माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ने वाला पुल भी चीन के निवेश से बना है। वर्ष 2016 में मालदीव ने चीन को अपना एक द्वीप मात्र 40 लाख डॉलर में 50 वर्षो के लिए लीज पर दे दिया। विश्व भर से चीनी ऋण जाल के कई उदाहरण सामने आए हैं। मालदीव के पड़ोस में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने जिस तरह से कब्जे में ले लिया, वह उसकी रणनीति का हिस्सा है। चीन ने निरंतर हिंद महासागर में अतिक्रमण करने का प्रयास किया है, जिससे भारत की उपस्थिति को सीमित किया जा सके।

खाड़ी के देशों से चीन का तेल यहीं से होकर गुजरता है, इसलिए चीन इसे सुरक्षित करने के लिए मालदीव में अपनी नौसेना की पहुंच बनाना चाहता है, जिससे ग्वादर के बाद हिंद महासागर में उसके पास दूसरा अड्डा हो जाएगा। भारत हमेशा से मालदीव में चीन के विस्तारवादी प्रभाव को सीमित करने के प्रयास करता रहा है तथा मालदीव में अपनी मौजूदगी बनाकर हिंद महासागर के बड़े हिस्से पर निगरानी भी करता है। मालदीव में चीन समर्थक मुइज्जू की जीत से निश्चित ही चीन को फायदा हो सकता है, लेकिन वहां भारत का प्रभाव तुरंत कम नहीं होगा।

मौजूदा स्थिति में मालदीव के द्वारा भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करने की ही स्थिति दिख रही है, परंतु भारत और मालदीव के करीबी रिश्तों को बनाए रखने की जिम्मेदारी मुइज्जू के हाथ में है। हालांकि उन्होंने स्वयं से पार्टी की तरह भारत की आलोचना नहीं की है।

उनके पास चीन के ऋण जाल से मुक्त होने के साथ ही मालदीव की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती खड़ी है। चीन द्वारा श्रीलंका के आर्थिक संकट में फंसने जैसी पड़ोस की घटनाओं से सबक लेकर मालदीव के लिए अपने निकटतम व सबसे शक्तिशाली पड़ोसी भारत के साथ पारंपरिक एवं रणनीतिक हितों को संतुलित कर आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर होगा।

डॉ. नवीन कुमार मिश्र


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