बिधूड़ी प्रकरण : गलत का विरोध जरूरी

Last Updated 03 Oct 2023 01:37:48 PM IST

भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा लोक सभा में प्रयोग किए गए शब्दों पर हंगामा अस्वाभाविक नहीं है। अगर लोकतंत्र के शीर्ष निकाय संसद में इस तरह की शब्दावली प्रयोग की जाएगी तो देश का पूरा वातावरण कैसा बनेगा इसकी स्वाभाविक कल्पना की जा सकती है।


भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी

सांसद तो छोड़िए सामान्य जीवन में भी किसी व्यक्ति को बिना प्रमाण आप उग्रवादी, आतंकवादी नहीं कह सकते। लोक सभा अध्यक्ष तथा भाजपा की ओर से किस तरह की कार्रवाइयां होती हैं,  इसकी देश प्रतीक्षा करेगा। इस तरह की भाषा आगे प्रयोग नहीं हो इसे रोकने की हरसंभव व्यवस्था करनी होगी। किंतु दूसरी ओर इसे आधार बनाकर जिस तरह की बातें हो रही है वह ज्यादा डरावनी व खतरनाक हैं।

भाजपा विरोधी दलों को इसकी आलोचना करने, सरकारी पक्ष को कठघरे में खड़ा करने का पूरा अधिकार है। इसका प्रभाव तभी होगा जब विरोधी स्वयं वाणी संयम का व्यवहार करें। ऐसा प्रदर्शित नहीं हो रहा। परिणाम देख लीजिए। बड़ी संख्या में लोग सोशल मीडिया पर खुलकर रमेश बिधूड़ी के साथ खड़े हो रहे हैं। यह चिंताजनक स्थिति है। लेकिन क्यों? जो चाहेगा कि इस तरह की भाषा का प्रयोग संसद के अंदर नहीं हो उसका अप्रोच अलग होगा। कहीं आग लगाने की कोशिश हो तो वहां पानी डालना विवेकशीलता है न कि उस पर ज्वलनशील पदार्थ डाल देना। असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि किसी दिन संसद में मुस्लिम सांसद की मॉब लिंचिंग हो जाएगी। वो यहां तक बोल रहे हैं कि जिस तरह जर्मनी में हिटलर ने लोगों को बताया कि यहूदियों से तुम्हें खतरा है और उनका कत्लेआम हुआ उस तरह भारत में मुसलमानों के विरु द्ध वातावरण बनाया जा रहा है। उनके पूरे भाषण को सुनें तो किसी का भी दिल दहल जाएगा।

समाजवाजी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक हाजी जमीर उल्लाह खान का बयान देखिए, मुसलमानों से मैं कहूंगा कि ये 2024 आ रहा है, ये आपकी लाशों पर बनेगी, सरकार चाहे किसी की बने..चाहे इधर की बने चाहे उधर की बने..टारगेट आप ही होंगे..आप लोग बहुत संयम के साथ किसी पर कोई रिएक्शन करें..बहुत संयम के साथ घर बैठें और अपना वोट डाल दें चुपचाप से वरना अभी तो कुछ नहीं है अभी तो आपको बहुत कुछ देखना बाकी है। 24 आते-आते देखना आप लोगों का जीना हराम हो जाएगा। सपा के ही अताउर रहमान कह रहे हैं कि मुसलमानों के सब्र का इम्तिहान लिया जा रहा है। अब इन बयानों का थोड़ा विश्लेषण करिए। ओवैसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन की तुलना जर्मनी के एडोल्फ हिटलर से कर रहे हैं और मुसलमान को यहूदी बता रहे हैं। कोई वरिष्ठ सांसद, जिसे विशेषाधिकार प्राप्त है, खुलकर अपनी राजनीति करता है, वह भारत के शासन की तुलना हिटलर से और मुसलमानों की यहूदियों के साथ किए गए अत्याचार से करे तो उसके सामने संसद या बाहर कोई भी बयानबाजी छोटी हो जाती है। 1933 में जर्मनी की सत्ता पाने के बाद हिटलर ने ऐसा नस्लवादी शासन कायम किया, जिसमें यहूदी इंसानी नस्ल का हिस्सा ही नहीं माने गए। उसने पोलैंड में ऑशविच कन्सनट्रेशन कैंप शुरू किया जिनमें धर्म, नस्ल, विचारधारा या शारीरिक कमजोरी के नाम पर लाखों लोगों को गैस चैंबर में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। बूढ़े और बीमारों को गैस चैंबर में मार ही दिया जाता था।

एक पार्टी का नेता और सांसद मुसलमान की तुलना हिटलर के शासन के यहूदियों से कर रहा है तो उसे क्या कहा जाएगा? मोदी सरकार को नाजीवादी और फासीवादी शासन केवल ओवैसी नहीं कह रहे विपक्ष की ज्यादा पार्टयिां इन शब्दों का प्रयोग करती हैं। वे यहूदी या कंसंट्रेशन कैंप की बात नहीं करते पर हिटलर के शासन का अर्थ वही होता है। आज आतंकवाद शब्द प्रचलित है। आज की दृष्टि में वह आतंकवाद के शासन का ही पर्याय था। क्या मोदी सरकार एक आतंकवादी शासन है? इसे केवल भाजपा, नरेन्द्र मोदी सरकार या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सामान्य राजनीतिक आलोचना कहेंगे या फिर कुछ और? सांसद दानिश अली बोल रहे हैं कि मेरी तो लिंचिंग संसद में हो गई। रमेश बिधूड़ी ने जैसे शब्द प्रयोग किया, उन्हें सामान्य जीवन में भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। पर क्या इसे वाकई लिंचिंग कहेंगे? इन नेताओं की भाषा में इतनी समानता क्यों है? सारे स्वयं को पीड़ित साबित करने में लगे हैं। इससे शर्मनाक, निंदनीय और थोड़ा विस्तारित करें तो देश को बदनाम करने की बड़ी हरकत कुछ नहीं हो सकती। खुद राहुल गांधी ने संसद में सरकार के लिए देशद्रोही शब्द प्रयोग किया। उप्र में सपा या दूसरे विरोधी अभी तक एक मदरसा और मस्जिद का नाम, स्थान या तस्वीर नहीं ला पाए हैं, जिनके आधार पर आरोप सच साबित हो सके।

देश कानून से चलता है और कोई सरकार धार्मिंक स्थल या शिक्षालय को ध्वस्त करेगा तो न्यायालय में सबको जाने का अधिकार है। वरिष्ठ और नामी नेता इस तरह किसी सरकार की तस्वीर बनाएं कि वह एक समुदाय को खत्म करना चाहती है तो प्रतिक्रिया कैसी होगी? चूंकि बिधूड़ी ने दानिश अली को ही निशाना बनाया था, इसलिए उनके प्रति लोगों की सहानुभूति भी है। एक व्यक्ति, जिसे लोगों ने निर्वाचित कर सांसद बनाया वह स्वयं को उत्पीड़ित बताए तो उसकी मंशा समझने की आवश्यकता होती है। लोक सभा के रिकॉर्ड से कई सांसद बता रहे हैं कि दानिश लगातार भाजपा मंत्रियों और सांसदों के भाषणों के बीच अवांछित टिप्पणियां करते रहते हैं। उनमें ऐसे शब्द और कटाक्ष होते हैं, जिनसे उत्तेजना पैदा होती है। देश की स्थिति यह है कि लोग बिधूड़ी की निंदा कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन ओवैसी से लेकर सपा नेता, दानिश अली द्वारा देश का माहौल खराब करने और विश्व में भारत की छवि कलंकित करने के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोल रहे हैं।

जो स्थिति उत्पन्न हो गई है उसमें ऐसा लग रहा है कि बिधूड़ी के विरुद्ध ज्यादा सख्त कार्रवाई हुई तो भाजपा ही नहीं देश का एक बड़ा वर्ग उसका समर्थन नहीं करेगा। नूपुर शर्मा के मामले में भाजपा ने त्वरित कार्रवाई की और आज तक उसके कार्यकर्ता और समर्थक अंतर्मन से स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। लोग यही मांग कर रहे हैं कि बिधूड़ी के विरुद्ध कार्रवाई हो तो ओवैसी, उनके भाई, सपा नेताओं और यहां तक कि दानिश अली आदि के विरु द्ध भी कार्रवाई हो। ये प्रतिक्रियाएं एक समुदाय के अंदर डर पैदा कर उसे अतिवाद तक ले जा रही है जो सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की भी आधारभूमि बन सकती है।

अवधेश कुमार


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