पुरातत्व स्थल : चिंता के सबब हैं हादसे

Last Updated 30 Sep 2023 01:47:02 PM IST

किसी भी देश की पहचान वहां के पर्यटन और पुरातात्विक महत्त्व की धरोहरों से होती है। दुनिया में कई देश ऐसे हैं, जिनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया भी यही होते हैं।


पुरातत्व स्थल : चिंता के सबब हैं हादसे

भारत भी अपने पुरातात्विक महत्त्व के स्थानों के चलते दुनिया के पर्यटन नक्शे में बेहद अलग और खास मुकाम रखता है। निश्चित रूप से यह हमारी पुरातात्विक समृद्धि की पहचान भी है, और साख भी, लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही, उपेक्षा और इन स्थलों के साथ उनकी प्रसिद्धि के आधार पर भेदभाव के चलते देश के तमाम पर्यटन, पुरातात्विक और धार्मिंक स्थलों की छवि और रखरखाव पर बुरा असर पड़ता है।

हाल में देश के अहम पर्यटनस्थल आगरा के फतेहपुर सीकरी में तीन दिनों के भीतर दो हादसों ने समूचे देश के न केवल कान खड़े कर दिए, बल्कि एक अलग ही चिंता के साथ तमाम प्रश्न चिह्न भी खड़े कर दिए। दरअसल, बीते 21 सितम्बर को फ्रांस से भारत पर्यटन को आई 60 वर्षीया एस्मा सेल्फी लेते हुए ख्वाबगाह स्मारक के पास तुर्की सुल्ताना पैलेस में पिलर पर लगी लकड़ी की रेलिंग टूटने से नीचे गिर गई, बाद में उनकी मौत हो गई। उनके साथ दूसरे पर्यटक भी इसी जगह पर थे जो बचने में सफल रहे, लेकिन एस्मा 9 फीट की ऊंचाई से सीधे नीचे आ गिरीं। इससे उनके सिर में गहरी चोट लगी और उन्हें चिकित्सकीय सुविधा मिलने में भी करीब घंटा भर लग गया। वो रेलिंग पर अपने मित्रों के साथ फोटो ले रही थीं। एकाएक वजन बढ़ने से कोविड-19 के बाद लगाई गई रेलिंग, जो पहले ही कमजोर और ढीली पड़ चुकी थी, टूट गई। उनकी मौत दुखद, शर्मनाक तथा व्यवस्थाओं के नाम पर बड़ा तमाचा है। दूसरा हादसा तीसरे दिन यानी शनिवार 23 सितम्बर को घटा जब दोपहर में स्पेन की महिला पर्यटक के साथ गंभीर हादसा हो गया। चलते-चलते असमतल जमीन पर उनका पैर मुड़ गया, जिससे मोच आ गई और वह घायल होकर गिर गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों ने इलाज किया। यह हादसा तब हुआ जब वो बादशाही गेट से स्मारक में प्रवेश कर रही थीं। बाद में यह प्रचारित किया गया कि गर्मी की वजह से उन्हें चक्कर आ गया था।

निश्चित रूप से ऐसे हादसे देश की छवि पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं। इससे एएसआई के क्रियाकलाप पर सवाल भी उठते हैं। जब किसी स्मारक को प्राचीन, पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 यानी एएमएएसआर अधिनियम के तहत संरक्षित घोषित किया जाता है, तो उसके रखरखाव का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन चला जाता है जो पुरावशेष और कला निधि अधिनियम, 1972 को भी नियंत्रित करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना 1861 में इसके पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी, जिन्हें भारतीय पुरातत्त्व का जनक भी माना जाता है, लेकिन ऐसे महत्त्वपूर्ण और देश की धरोहरों की देखरेख के लिए पर्याप्त बजट और संसाधनों की कमीं हमेशा बनी रहती है, और हादसों के बाद कई तरह के सवाल उठते हैं। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक यानी कैग की एक हालिया रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया है कि पुरातात्विक अन्वेषण और खुदाई की कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है, जो पुरावशेषों को भी लाभ प्रदान करे। एएसआई धन की कमी का तो सामना कर ही रहा है साथ ही आवश्यक संसाधनों की कमी अलग से है। विडंबना है कि इस डिजिटल दौर में भारत में 58 लाख से अधिक अनुमानित पुरावशेषों का कोई डेटाबेस या इन्वेंट्री है ही नहीं।

कितना दुर्भाग्यजनक है कि पुरातात्विक महत्त्व के स्थानों की देखरेख पर जब ज्यादा ध्यान की जरूरत थी तभी 2021-22 में 200 करोड़ रुपये की कमी की गई जबकि कुल बजट लगभग 1200 करोड़ रुपये मात्र का था। यह अन्वेषण और उत्खनन की खातिर कुल बजट का 1 प्रतिशत से भी कम है जबकि इसे लोक लेखा समिति को दी सूचना के अनुसार 5 प्रतिशत होना चाहिए था। 2023-24 में जहां संस्कृति मंत्रालय का वार्षिक परिव्यय 12.97 प्रतिशत बढ़कर 3,399.65 करोड़ रु पये हो गया वहीं केंद्रीय संरक्षित स्मारकों और अन्य स्थलों की सुरक्षा, संरक्षण के लिए एएसआई को 1102.83 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए। समझा जा सकता है कि पुरातात्विक महत्त्व के स्मारकों और स्थलों को लेकर कैसी चिंता है। निश्चित रूप से ऐसे स्थानों और वहां पहुंचे पर्यटकों की सुरक्षा का दायित्व एसआई का ही है, लेकिन बजट को देखते हुए कितनी उम्मीद की जा सकती है? ऐसे सभी स्थलों की आय-व्यय की स्वतंत्र एजेंसी बने, अपना डेटाबेस भी हो जो पूरी जिम्मेदारी और निष्पक्षता से काम करे ताकि फतेहपुर सीकरी या देश के तमाम दूसरे स्थलों पर हादसों से पर्यटकों की होने वाली मौतों पर लगाम लग सके।

ऋतुपर्ण दवे


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