यूसीसी : कानून और जन धारणा
जून 14, 2023 को 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड-यूसीसी) तैयार करने के लिए आम जन से उसके सुझाव, विचार और प्रतिक्रियाएं आमंत्रित कीं। फलस्वरूप आम जनता के विचारों और सुझावों का अंबार लग गया।
यूसीसी : कानून और जन धारणा |
आम जनता से विधि आयोग को पचास लाख से ज्यादा प्रतिक्रियाएं और सुझाव मिले हैं। यूसीसी के तहत ऐसे नियम और कानून बनाए जाएंगे जो धर्म से इतर सभी लोगों पर लागू होंगे। इससे पहले से ही लागू अनेक पर्सनल कानून समाप्त हो जाएंगे जो अभी विभिन्न धर्मावलंबियों पर लागू हैं।
जब हम देश में यूसीसी की बात करते हैं, तो भारत में 1950 से लागू भारतीय संविधान के चार अनुच्छेदों का सहसा स्मरण हो आता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 राज्य को भारत संघ क्षेत्र में सभी जगह निवास कर रहे नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करने की शक्ति प्रदान करता है। अर्थात राज्य सभी नागरिकों को एक समान कानून की परिधि में ला सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों किसी भी धर्म और व्यवसाय को अपनाने और अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की अनुमति देता है बशत्रे कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य और लोक मर्यादा का हनन न हो।
पहला अनुच्छेद यानी अनुच्छेद 44 राज्य नीति का निर्देशक सिद्धांत है, जो न्यायिक जांच-परख से इतर है जबकि दूसरा अनुच्छेद यानी अनुच्छेद 25 ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, और यह बुनियादी अधिकार है, जिसमें अदालत दखल दे सकती है। अनुच्छेद 25 राज्य को शक्ति प्रदान करता है कि वह धार्मिक अनुपालना से जुड़ी किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य किसी प्रकार धर्मनिरपेक्ष गतिविधि के नियमन या प्रतिबंधन के लिए कोई कानून बना सकता है। अनुच्छेद 51ए के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक पर यह दायित्व आयद करता है कि वह बंधुत्व भाव और सौहार्द प्रोत्साहन में प्रतिभागी होगा। अनुच्छेद 13 में निहित है कि भारतीय संविधान के भाग तीन द्वारा प्रदत्त अधिकारों को कमतर या उसकी अवमानना करने वाला कोई भी कानून अमान्य होगा। ऐसा कानून जो रीति-रिवाज और उन्हें व्यवहार में लाने से हो। इसलिए यूसीसी को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के संदर्भ में न्यायिक कसौटी पर जांचा-परखा जाना होगा।
इन अनुच्छेदों के साथ ही 21वें विधि आयोग की रिपोर्ट के आलोक में यूसीसी की जरूरत और व्यवहार्यता पर चर्चा किया जाना जरूरी है। विधि आयोग की रिपोर्ट कहती है कि यूसीसी न तो वांछनीय है, और न ही व्यवहार्य है। तो कब हम यूसीसी के लिए तैयार होंगे या क्या कभी भी ऐसा नहीं होगा क्योंकि अपनी आजादी के 75 वर्षो में हमें कभी ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ी। यूसीसी के बारे में समस्या यह है कि रीति-रिवाज और पर्सनल कानून धर्मो में अलग-अलग होते हैं, और यह पहचान करना मुश्किल होगा कि किस समुदाय या धार्मिक रीति-रिवाज या परंपरा को यूसीसी में इस्तेमाल किया जाएगा। यूसीसी में देश के सभी छह प्रमुख धर्मो से जुड़े मुद्दों और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और दक्षिण हिेस्सों में रहने वाली जनजातियों के रिवाज, तौर-तरीकों, परंपराओं और जीवन शैलियों का संज्ञान लिया जाना है।
भारत बहुधर्मी, बहुध्रुवीय, बहुभाषी देश है, जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। लोग अपने विासों, धारणाओं, जीवन शैली, रीति-रिवाजों, परंपराओं और धार्मिकता को लेकर संवेदनशील होते हैं। जनजातीय नेता, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कैथॉलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस और शिरोम तथा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यूसीसी को लेकर आपत्तियां दर्ज करा चुके हैं। पूर्वोत्तर के दो राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर यूसीसी को लेकर अपनी आपत्तियां बता चुके हैं। अनुच्छेद 371ए और अनुच्छेद 371सी विधायिका को नागालैंड और मिजोरम के लिए कोई भी ऐसा कानून बनाने से निषिद्ध करता है, जो इन राज्यों के लोगों के तौर-तरीकों और परंपराओं की अनदेखी करता हो। कानून तभी बनाया जा सकता है, जब इन राज्यों की विधायिका इस बाबत स्वीकृति न दे दे। इसलिए इन राज्यों के लिए समान संहिता लागू करने से पूर्व सरकार को भारतीय संविधान के इन अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। यह समूचे भारत का मुद्दा है, जिससे विभिन्न धर्मो के लोग जुड़े हैं, तो विभिन्न रस्मो-रिवाज और परंपराओं का अनुपालन करते हैं।
संसद में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम जैसे कुछ कानून पारित किए जा चुके हैं, लेकिन विभिन्न धर्मो के लिए इन्हें स्वैच्छिक बनाया गया है। लेकिन लोग अपनी सुविधानुसार गाहे बगाहे ही इनका इस्तेमाल करते हैं। यह भी देखने में आया है कि विभिन्न मामलों में समानता है, और इन मामलों में लोग मनामाफिक उद्देश्यों की पूर्ति करने में तत्पर रहते हैं। जैसे विशेष विवाह अधिनियम के तहत दो वयस्क, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, गवाहों की उपस्थिति में अपना विवाह का पंजीकरण कराते हुए तीस दिन का नोटिस जारी करवा सकते हैं। अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह और देश विशेष में जा बसने या नौकरी करने के उद्देश्य इस तरह के विवाह किए जाते रहे हैं। यहां उनमें से किसी का पर्सनल कानून आड़े नहीं आता। इसी प्रकार तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता आदि पाने के लिए अपराध संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत अदालती लड़ाई लड़ी जाती है, और लड़ने वाले किसी भी धर्म-समुदाय के हो सकते हैं। यहां पर्सनल कानून आड़े नहीं आते। इसी प्रकार उत्तराधिकार खासकर कृषि संपत्ति के मामलों में लोग भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अदालत में लड़ाई लड़ते हैं, भले ही वे किसी भी पसर्नल कानून के तहत आते हों।
बहरहाल, यूसीसी को लेकर समस्या यह आ रही है कि विधि क्षेत्र के दिग्गजों के साथ ही तमाम धार्मिक नेता हैं, जो अभी किसी मॉडल यूसीसी न होने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि मॉडल यूसीसी सामने आने पर ही कुछ कहा जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि विधि आयोग मॉडल यूसीसी जनता के सामने पेश करे और उसके बाद उनके विचार और सुझाव आमंत्रित करे। यदि मॉडल यूसीसी का विभिन्न धर्मो के लोग स्वागत करते हैं तो प्रारंभिक तौर पर स्वैच्छिक आधार पर लागू किया ताकि इसकी स्वीकार्यता जानी जा सके। उसके बाद इसे अनिवार्य किया जा सकता है। कहा जाता है कि जन धारणा से कानून बनते है, लेकिन कई बार कानून भी जन धारणा बनाते हैं।
(लेखक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता शहरयार खान सह लेखक हैं)
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