हॉकी : सिस्टम का शिकार सितारा

Last Updated 29 Jun 2023 01:29:50 PM IST

जून की तपती दोपहरी में भारतीय महिला जूनियर टीम का एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट में कोरिया जैसे दिग्गज को 2-1 से हराने की खबर सुनना सावन की रिमझिम फुहार से कम नहीं था।


हॉकी : सिस्टम का शिकार सितारा

माना गया कि युवाओं का यह ऐतिहासिक प्रदशर्न भारतीय हॉकी पर जमी धूल को हटाने वाला साबित होगा। हालांकि, इन युवा खिलाड़ियों की जीत को अपनी मेहनत से संवारने का हवाला देने वाले कोच, प्रबंधन समिति और फेडरेशन भी अपने-अपने योगदान का बखान करने में जुट गए। हम सब भी कुछ हद तक मान बैठे कि खिलाड़ियों की मेहनत के अलावा इस जीत की भूमिका के कथानक फेडरेशन और कोच हैं। लेकिन, महीने के अंत में मोक्ष प्राप्ति स्थान वाराणसी से मिली राजीव मिश्रा की मौत की खबर ने सारे भ्रम तोड़ दिए।

सिस्टम की अनदेखी का नमूना जो हमारे सामने था। राजीव की मौत न सिर्फ  एक खिलाड़ी का जाना है, बल्कि खिलाड़ियों की मदद के नाम पर लंबी-चौड़ी योजनाओं की फेहरिस्त दिखाने वाले सिस्टम में बैठे लोगों की आत्मा का मर जाना भी है।  हॉकी देखने में जरा सी भी रुचि रखने वालों को 90 के दशक का वो जूनियर वि कप मुकाबला जरूर याद होगा, जिसमें भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में शानदार प्रदशर्न करते हुए जर्मनी को हराया था। भारत की इस जीत के हीरो राजीव मिश्रा थे।

कहा जाता है कि उस मुकाबले में राजीव के तेज फॉर्वड को देखने के लिए डच कोच रोलांद ऑल्टमंस ने तीन कैमरा सेटअप लगवाए थे। उनका मानना था कि वह अब तक के सबसे तेज भारतीय फॉर्वड हैं, और एक कैमरा उनकी कलाकारी को नहीं पकड़ पाएगा। डी के भीरत का उनका खेलने का अंदाज किसी को भी चकित कर सकता था। राजीव की इस कला को देखकर तमाम दिग्गज एक स्वर में कहते कि चंद वर्षो में यह बच्चा हॉकी की दुनिया पर राज करेगा। एस्ट्रो टर्फ  के नये दौर में वह भारत के मान को लौटाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पटियाला में एक अभ्यास मैच के दौरान उनके घुटने में चोट लगी और यही से उनके कॅरियर का सूर्य अस्त होने लगा।

कहा जाता है कि जितना उनका कॅरियर चोट से जूझते हुए ढलान पर नहीं पहुंचा, उतना फेडरेशन यानी सिस्टम की खोखली व्यवस्था ने पहुंचा दिया। चोट किसी भी खिलाड़ी के जीवन का हिस्सा है, लेकिन फेडरेशन और नौकरी प्रदाता विभाग की अनदेखी उसके जीवन को कैसे तबाह करती है, राजीव का जीवन उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। राजीव ने पहली बार चोट पर सलाह के लिए हॉकी फेडरेशन से संपर्क किया तो स्टार खिलाड़ी को जो जवाब मिला, वह दीमक खाए सिस्टम की बानगी है। उनसे कहा गया कि सर्जरी कराकर बिल जमा करा दें। कुल पचास हजार रुपये के बिल लंबे वक्त तक पेंडिंग ही रहा।

सबने मिश्रा को उनकी हालत पर छोड़ दिया। 2001 में जब हॉकी फेडरेशन के प्रमुख केपीएस गिल से मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, जो खुद अपनी देखभाल नहीं कराने को तैयार है, आप उसकी देखभाल कैसे कर सकते हैं। इस स्तर पर खिलाड़ियों को पता होना चाहिए कि अपना ख्याल कैसे रखना है। गिल का यह जवाब सिस्टम को पाक-साफ और उस खिलाड़ी को दोषी साबित कर गया जिसका सपना ही दुनिया का सबसे तेज फॉर्वड खिलाड़ी बनना था। अब तक साफ हो चुका था कि फेडरेशन और अन्य तमाम लोग जो इस खिलाड़ी के हुनर को निखारने में अपने-अपने योगदान का डंका पीट रहे थे, वे सब अलग हो गए। महज 21 साल की उम्र तक उन्हें अहसास करा दिया गया कि उनका कॅरियर खत्म हो चुका है। सिर्फ  दो साल में राजीव चमकते सितारे, एस्ट्रो टर्फ के तेंदुलकर से दिन में घूमने वाले जुगनू बन गए।

राजीव ने एक इंटरव्यू में कहा कि सिस्टम ने उन्हें  ऐसी चोट दी कि हॉकी के नाम से चिढ़ होने लगी। रेलवे में जब उन्हें नौकरी मिली तो महीनों तक उन्होंने नेम टैग नहीं लगाया, ताकि कोई उन्हें पहचान न सके और हॉकी से जुड़ा कोई प्रसंग न छेड़ दे।

घुटने की पहली सर्जरी असफल होने के बाद किसी तरह उन्होंने दूसरी सर्जरी भी कराई। रेलवे के लिए उन्होंने कुछ टूर्नामेंट खेले और उनमें बेहतर भी किया, लेकिन अब तक उनका खतरनाक सेंटर फॉर्वड बनने का सपना खाक हो चुका था। आज उनकी मौत और घर में मिले शव को लेकर चर्चा तमाम हैं, लेकिन उन्हें करीब से जानने वालों को पता है कि हॉकी का वो सितारा तो कब का मर चुका था। उनकी देह मात्र बची थी। अब जब उस देह ने भी सबसे विदा ले ली है, तो जिंदा रह गया है वह सिस्टम, जिसके पहिए तले न जाने कितने खिलाड़ियों का कॅरियर दबा और तबाह हुआ है। न्याय को लेकर पहलवानों का हालिया प्रदशर्न हो या 2020 में आर्थिक मदद की गुहार लिए दुती चंद का अपनी कार बेचने का ऐलान, ये सब इसी सिस्टम के उपजे हुए तंत्र के परिणाम हैं। कई बार यह सिस्टम समय पर जाग जाता है, और कुछ खिलाड़ियों का कॅरियर खाक होने से बच जाता है। लेकिन कई बार इसकी अलसाई आखों के नीचे न्याय सुबक-सुबक कर अपने प्राण त्याग देता है।

संदीप भूषण


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