आत्महत्या कैदियों की मानसिक दिक्कतें
कैदियों को आत्महत्या करने से रोकने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर काम होना चाहिए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यह निर्देश दिया है।
![]() आत्महत्या कैदियों की मानसिक दिक्कतें |
जेलों में कैदियों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर मानवाधिकार आयोग ने गहरी चिंता जताई है। और इस बाबत राज्यों को निर्देश जारी किए हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों देश की विभिन्न जेलों में आत्महत्या की घटनाएं काफी बढ़ी हैं।
ज्ञातव्य है कि मौजूदा वक्त में देश में 3,66,781 कैदियों की क्षमता वाली कुल 1,401 जेलें हैं। इन जेलों की नारकीय स्थिति जगजाहिर है। जिस तरह भारी असुविधा और अव्यवस्था के बीच सजायाफ्ता कैदी अपना जीवन जीने को मजबूर हैं, वह किसी भयावह सपने से कम नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि नारकीय जीवन जी रहे कैदियों के जीवन में अवसाद इस कदर हावी हो जाता है कि वे आत्महंता बनने को मजबूर हैं। एकांतिक और नीरस जीवन जी रहे कैदियों में अवसाद, चिड़चिड़ापन, क्रोध और हिंसा पनपना लाजिमी है। न तो उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, न ही उनके मानसिक स्वास्थ्य की ठीक से देखभाल ही हो पा रही है। ऐसे हालात से छुटकारा पाने में आत्महत्या करने में ही उन्हें त्राण नजर आता है। आत्महत्या ही छुटकारे का सुगम मार्ग लगता है। इसी सरल उपाय को अपनाते हुए आत्महत्या के लिए तत्पर होते हैं। सामाजिक मेल-जोल से दूर कैदियों को सबसे ज्यादा किसी चीज की दरकार है तो वह है भावनात्मक सहयोग, स्नेह और सान्निध्य की। किसी भी नागरिक की रक्षा, चाहे वो कैद में ही क्यों न हो, की रक्षा का दायित्व लोक कल्याणकारी राज्य के कंधे पर होता है। ऐसे में राज्य का दायित्व बढ़ जाता है।
कैदियों की नियमित मानसिक स्वास्थ्य जांच बेहद अहम मसला है जिस पर नियमित रूप से काम करने की जरूरत है। साथ ही, उन्हें जीवन कौशल आधारित शिक्षा और योग, खेल, शिल्प, नाटक, संगीत नृत्य जैसी गतिविधियों और उपयुक्त आध्यात्मिक और वैकल्पिक तौर पर धार्मिंक उपदेश आदि से जोड़ा जाए तो वे अपनी ऊर्जा को सकारात्मक चीजों में लगाकर समय व्यतीत कर सकते हैं। जरूरत हो तो इसमें प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठनों की भी मदद ली जाए। साथ ही, जेल कर्मचारियों के मौजूदा रिक्त पदों विशेष रूप से जेल कल्याण अधिकारियों, परवीक्षा अधिकारियों, मनोविज्ञानियों और चिकित्सा कर्मचारियों की रिक्तियों को भरा जाए ताकि मानसिक रूप से परेशान कैदियों की मदद की जा सके। आखिर, जेलों कैदी जोखिम वाले स्थानों पर पहुंचते कैसे हैं, जिससे उन्हें खुद को नुकसान पहुंचाने की वस्तुएं आसानी से मिल जाती हैं।
ऐसे स्थानों, जहां पर आत्महत्या की घटनाएं होती हैं, की पहचान करके सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ सुधारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। इमारत के रखरखाव के लिए प्रयुक्त उपकरण, घातक चीजें जैसे रस्सी, लकड़ी की सीढ़ियां, छड़, गिल्र्स जैसी चीजों को कमरे या शौचालय से हटाया जाए जिनसे कैदी खुद को चोट पहुंचाते या फांसी लगाते हैं। जेल सुधारों के प्रति शासन-प्रशासन का रवैया बेहद ढीला-ढाला और लचर रहा है। आजादी के बाद जेल सुधार के लिए कई समितियां बनीं जैसे वर्ष 1983 में मुल्ला समिति, 1986 में कपूर समिति और 1987 में अय्यर समिति लेकिन इन सभी समितियों के सुझावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यही कारण है कि आज जेलों में कैदी नारकीय स्थिति में जी रहे हैं, और आत्महंता बनते जा रहे हैं।
| Tweet![]() |