प्रचंड गर्मी से बचने के करने होंगे ठोस उपाय

Last Updated 24 Jun 2023 01:25:14 PM IST

उत्तर भारत सहित पूरे देश में भीषण गर्मी का कहर जारी है। देश के कई शहरों में तापमान रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुका है।


प्रचंड गर्मी : करने होंगे ठोस उपाय

बढ़ता तापमान अपने ही रिकार्डतोड़ अपनी अवधारणा को बदलने में लगा है। इस वर्ष मार्च में गर्मी के मौसम की शुरुआत के बाद से भारत के बड़े हिस्से में गर्मी की स्थिति गंभीर होती जा रही है। उत्तर भारत सहित गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ क्षेत्रों में गर्मी, लू एवं हीटवेव कहर बरपा रही है। पिछले कुछ दिनों में  रूप से तीन राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा में लगभग 150 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।  अल्पकालिक वसंत ऋतु भी अब गर्मी में ही परिवर्तित हो गई है। मार्च का महीना 122 वर्षो में सबसे गर्म रहा है। प्रति वर्ष पहाड़ी क्षेत्र में शीत लहर के दिनों की संख्या में कमी और अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या बढ़कर 120 हो गई है।

भीषण गर्मी के लिए भले ही हम ग्लोबल वार्मिग को जिम्मेदार मानते रहे परंतु सच्चाई यह है कि कंक्रीटीकरण, वनों की कटाई, भूस्खलन, औद्योगिक गतिविधियां, जीवाश्म ईधन आदि के बेतहाशा प्रयोग के प्रति हम कभी भी गंभीर नहीं रहे। आर्थिक लालच से प्रेरित मानवीय गतिविधियों ने धरती के सामान्य तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि कर दी है जिसका प्रभाव न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। भीषण गर्मी से जंगलों में लगने वाली आग एवं पिघलते ग्लेशियर इस समस्या को और अधिक गंभीर बना रहे हैं।  

भीषण गर्मी मानव स्वास्थ्य, बिजली, पानी, खाद्य उत्पादन आदि समस्याओं को बढ़ा रही है। निर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य करने वाले श्रमिकों एवं कृषि में संलग्न आबादी को घंटों गर्मी के संपर्क में रहना पड़ता है, जिससे इनकी उत्पादकता घटकर आधी रह जाती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार उच्च तापमान के कारण 2021 में वैश्विक स्तर पर 470 बिलियन श्रम घंटों की हानि हुई थी। मानव की इच्छाओं और चाहतों का अंतहीन सिलसिला आज मानव के अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहा हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन भीषण गर्मी को वैश्विक स्वास्थ्य खतरे के रूप में परिभाषित करता है। द लैंसेट में प्रकाशित 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भीषण गर्मी लोगों के स्वास्थ्य को समान रूप से प्रभावित नहीं करती। सबसे अधिक प्रभाव गरीब, महिलाओं, बच्चों, बुजुगरे, पहले से अस्वस्थ लोगों पड़ता है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। भीषण गर्मी से अनेक प्रकार के बुखार, दिल की बीमारियां, अस्थमा एलर्जी, ब्रोंकाइटिस, एक्जिमा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। धूल और वायु प्रदूषण की बढ़ोतरी और जल संबंधी संक्रामक बीमारियों का प्रसार बढ़ने लगता है। मच्छरों की आबादी में वृद्धि से मलेरिया, डेंगू और अन्य कीट जनित संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है।

गरीब और झुग्गियों में रहने वालों के लिए हालात सबसे मुश्किल वाले होते हैं क्योंकि न तो उनके पास बिजली की सही व्यवस्था होती है, और न ही पानी की। कम साफ सफाई होने के कारण बीमारियों के संक्रमण से मृत्यु दर का जोखिम भी बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण प्रति वर्ष कम से कम 150,000 मौत होती हैं, यह संख्या 2030 तक दोगुनी होने की उम्मीद है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मत है कि अधिक तनाव में जी रहे मानव के मानसिक स्वास्थ्य पर भी तापमान के बढ़ने का प्रभाव पड़ता है। धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। इसके लिए आवश्यक अल्पकालिक उपायों और वनीकरण जैसे दीर्घकालिक उपायों पर एक साथ काम कर ग्रीनहाउस गैसों जैसे-कार्बन डाइअक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरोकार्बन गैसों के उत्सर्जन को कम करना होगा। नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रेतों को महत्त्व देना होगा। जलवायु-स्मार्ट कृषि तकनीकों को प्रचारित करना होगा।

लोगों में ग्लोबल ऊष्णता के विषय में जागरूकता पैदा करनी होगी और सुरक्षित जीवनशैली अपनानी होगी। जलवायु परिवर्तन से संबधित पेरिस समझौते का लक्ष्य वैश्विक तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना था परंतु इस दिशा में विश्व के देश बहुत गंभीर नही हैं।

स्वास्थ्य जोखिमों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा जिसमें सभी मंत्रालयों की सहभागिता के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े लोगों, एनजीओ, नीति-निर्माताओं आदि को शामिल किया जाना चाहिए। संक्रामक रोगों के संबंध में जानकारियों को आम आदमी तक पहुंच बनाने के लिए नवीन तकनीकी एवं डिजिटल प्लेटफार्म के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मानवीय और तकनीकी के सम्मिलित प्रयासों द्वारा नई निगरानी विधियों और विश्लेषणात्मक तरीकों से स्वास्थ्य के जोखिम को कम किया जा सकता है जिससे भीषण गर्मी से प्रभावित आम आदमी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को प्राथमिक स्तर पर सुलझाना जा सके।

इस दिशा में किए गए प्रभावी प्रयासों के परिणामस्वरूप इलाज योग्य बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि नहीं होगी। तापमान बढ़ोतरी से स्वास्थ्य के अन्य क्षेत्रों जैसे- आंतरिक चिकित्सा, बाल चिकित्सा, त्वचा चिकित्सा, मनोचिकित्सा आदि पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। भीषण गर्मी से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए सरकार को ही नहीं,  बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समस्या के प्रति अपनी संवेदनशीलता का परिचय देना होगा। दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतिक प्रयासों के साथ-साथ देश की उत्पादकता में होने वाले नुकसान से बचाने के प्रयास करने होंगे। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर फोकस करना होगा। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरियों की लागत को कम करने की दिशा में प्रभावी प्रयास किए जाने चाहिए। हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि यदि आज प्रकृति हमसे नाराज है तो इसका एकमात्र उपाय यही है कि हम वापस प्रकृति की ओर लौटें।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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