बलूच विद्रोह : संवाद नहीं तो बढ़ेगा संघर्ष

Last Updated 20 Oct 2022 01:09:02 PM IST

दशकों से पाकिस्तानी सरकार बलूच विद्रोह को कम तीव्रता वाला संघर्ष करार देती रही है, जो ज्यादातर बलूचिस्तान तक सीमित है, जो क्षेत्र के हिसाब से देश का सबसे बड़ा प्रांत है।


बलूच विद्रोह : संवाद नहीं तो बढ़ेगा संघर्ष

लेकिन ऐसा लगता है कि यह बदल गया है क्योंकि इस साल हुए हमलों की श्रृंखला स्पष्ट दिखाती है कि बलूच उग्रवाद महत्त्वपूर्ण नये चरण में प्रवेश कर गया है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा विद्रोहियों पर कड़ी कार्रवाई का दावा करने के बावजूद हाल के दिनों में उग्रवाद की मारक क्षमता तथा तीव्रता कई गुना बढ़ गई है। नतीजतन, अधिक क्रूर हमले, जैसे आत्मघाती बम विस्फोट, हाई-प्रोफाइल लक्षित हमले, और उच्च सैन्य अधिकारियों का अपहरण अब पाकिस्तान के सबसे पुराने अलगाववादी विद्रोह को आकार दे रहे हैं। खासकर इस साल की शुरुआत से बलूच उग्रवादियों की रणनीति में उल्लेखनीय बदलाव स्पष्ट है।

इस साल की शुरु आत जनवरी में ईरान की सीमा से लगे बलूचिस्तान के केच क्षेत्र में एक सुरक्षा चौकी पर बड़े पैमाने पर हमले के साथ हुई थी। एक हफ्ते से भी कम समय के बाद, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) आत्मघाती विंग (मजीद ब्रिगेड) के उग्रवादियों ने एक और साहसिक हमला किया। हमले में उग्रवादियों ने बलूचिस्तान के नुश्की और पंजगुर जिलों में दो सुरक्षा शिविरों पर धावा बोल दिया। अधिकांश समय, सेना और उग्रवादियों द्वारा उपलब्ध कराए गए हताहतों के आंकड़े स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना मुश्किल होता है। लेकिन संगठित हमलों की ताजा श्रृंखला ने न केवल बलूचिस्तान, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। बलूच उग्रवादी साहसिक और साहसी हमलों को अंजाम देने के अलावा पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की तुलना में अधिक आधुनिक हथियारों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

इस साल अप्रैल में बीएलए की पहली महिला आत्मघाती हमलावर शैरी बलूच, जो शोध विद्वान एवं स्कूल शिक्षक थी, ने दक्षिणी बंदरगाह शहर कराची में चीन के कन्फ्यूशियस संस्थान पर हमला किया जिसमें तीन चीनी नागरिकों सहित चार लोगों की मौत हो गई। यह रणनीति में नाटकीय बदलाव था क्योंकि इसका उद्देश्य बलूच संघर्ष को पाकिस्तान के प्रमुख शहरी केंद्रों तक विस्तारित करना था। इस रणनीति का पालन करते हुए बलूच नेशनलिस्ट आर्मी (बीएनए) ने लाहौर के एक व्यस्त व्यापारिक जिले में भी एक बम विस्फोट किया जिसमें तीन लोग मारे गए और 20 से अधिक घायल हो गए। जुलाई के मध्य में एक और नई रणनीति देखी गई जब पाकिस्तानी सेना की लेफ्टिनेंट कर्नल का बलूचिस्तान के जियारत क्षेत्र से बीएलए द्वारा अपहरण कर लिया गया।  इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने अपने वरिष्ठ अधिकारी को छुड़ाने के लिए अभियान शुरू किया लेकिन सेना अपने अपहृत अधिकारी के मारे जाने से पहले उसे रिहा नहीं कर सकी।

आश्चर्यजनक रूप से अगस्त के पहले सप्ताह में एक अभूतपूर्व दावा बलूच राजी आजोई संगर (बीआरएएस) के प्रवक्ता ने किया, जो चार अलगाववादी बलूच समूहों का  समूह है। बलूचिस्तान के लासबेला जिले में एक पाकिस्तानी सैन्य हेलिकॉप्टर को मार गिराने का दावा किया गया। पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने इस दावे को तुरंत खारिज कर दिया और इसे झूठा प्रचार करार दिया। लेकिन सितम्बर में फिर से बलूचिस्तान के हरनाई जिले के पास पाकिस्तान आर्मी एविएशन कॉर्प्स का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने दावा किया कि उसके विद्रोहियों ने बचाव अभियान के दौरान हेलिकॉप्टर को मार गिराया। सेना ने हेलिकॉप्टर के गिराए जाने की पुष्टि की लेकिन दुर्घटना का कोई कारण नहीं  बताया। बलूच उग्रवादियों के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती लेकिन बहुत अधिक संभावना है कि उनके पास अब किसी प्रकार की विमान-रोधी क्षमताएं हों।

पिछले साल अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद अफगान सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल किए गए अत्यधिक परिष्कृत हथियारों की बड़ी मात्रा ने क्षेत्र के काले बाजार में अपना रास्ता बना लिया है। इनमें से अमेरिका-निर्मिंत हथियार कई बलूच सशस्त्र समूहों के हाथों में आ गए हैं जैसे- असॉल्ट राइफलें और अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर आदि। छोटे आग्नेयास्त्रों और आरपीजी-7 पैटर्न रॉकेट लॉन्चर के अलावा बलूच विद्रोही पीके (एम) और एमजी 3 वेरिएंट जैसी विभिन्न मशीनगनों का उपयोग कर रहे हैं। कभी-कभी विद्रोहियों को भारी मशीनगनों का उपयोग करते हुए भी देखा गया है। बलूच सशस्त्र समूह धीरे-धीरे खंडित विद्रोह को मजबूत और एकजुट करने की ओर बढ़ रहा है।

पिछले कुछ वर्षो में विद्रोही समूहों ने या तो विलय कर लिया है या पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ एकजुट लड़ाई लड़ने के लिए सामरिक गठबंधन बनाए हैं। ऐसा करने से वे जटिल कायरे को अंजाम देने के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग और समन्वय प्राप्त करने में सक्षम हो रहे हैं। सशस्त्र समूहों का नेतृत्व कबीला सरदारों से सुशिक्षित और उच्च प्रेरित बलूच मध्यम वर्ग में स्थानांतरित हो गया है और बलूच विद्रोहियों के ये नये रैंक उग्रवाद को गुरिल्ला युद्ध में बदल रहे हैं। यह कटु सत्य है कि समय के साथ बलूच विद्रोहियों ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के समान ही लड़ने की रणनीति अपनाई है।

पाकिस्तान के नीति निर्माताओं को समझना होगा कि बलूच सशस्त्र संघर्ष से केवल सैन्य साधनों से ही नहीं निपटा जा सकता है। बलूचिस्तान को राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है जिसे केवल बातचीत से ही हासिल किया जा सकता है। वर्तमान में टीटीपी के साथ बात करने की तत्परता है, तो बलूच सशस्त्र समूहों के साथ भी इस पहल का पालन क्यों नहीं किया जा सकता? जब तक इस्लामाबाद अलगाववादी आंदोलन की कुछ मांगों को पूरा नहीं करता तब तक विद्रोह निश्चित रूप से बढ़ता रहेगा।

मनीष राय


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