वैश्विकी : क्वाड का बदला स्वरूप
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा सघन कूटनीति का उपयोगी अवसर सिद्ध हुई। लंबे अंतराल के बाद मोदी को अनेक विश्व नेताओं से मिलने का प्रत्यक्ष मौका मिला।
वैश्विकी : क्वाड का बदला स्वरूप |
कोरोना महमारी के कारण दुनिया के देशों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। अफगानिस्तान के घटनाक्रम ने विश्व चेतना को झकझोर कर रख दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में लोगों को आशा थी कि दुनिया के बड़े देश खासकर लोकतांत्रिक देश अफगानिस्तान को मध्ययुगीन बर्बरता के शिकंजे से मुक्त कराने के लिए कोई कारगर कार्रवाई करेंगे, लेकिन वाशिंगटन डीसी और न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र के घटनाक्रम और गतिविधियों से विश्व मानवता विशेषकर अफगानिस्तान को घोर निराशा हाथ लगी।
भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के मंच क्वाड की शिखर वार्ता में अफगानिस्तान के बारे में केवल पुरानी बातें दोहराई गई। यह औपचारिकता पूरा करने जैसा था। तालिबान को मानवाधिकारों, महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के हितों और अधिकारों की सुरक्षा करने की नसीहत दी गई। जाहिर है तालिबान पर इन उपदेशों का कोई असर होने वाला नहीं है। उन्हें इस बात की भी कोई परवाह नहीं है कि उनकी कट्टर मजहबी सोच और नीतियों से कितनी बड़ी मानवीय त्रासदी पैदा हो रही है। क्वाड के संयुक्त वक्तव्य में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव दो, पांच, नौ और तीन का हवाला दिया गया है। तालिबानी हुकूमत के पिछले एक महीने के क्रियाकलापों से ऐसा नहीं लग रहा है कि वह इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेता है। अफगानिस्तान में खाद्यान्न, दवाइयां और अन्य जरूरी वस्तुओं की किल्लत के कारण पैदा हुए मानवीय संकट को दूर करने के लिए विश्व बिरादरी ने उदारता से सहायता देने की पहल की है, लेकिन इससे भी तालिबान अपनी नीतियों को लचीला बनाने के लिए तैयार होंगे, ऐसा नहीं लगता।
अफगानिस्तान के विभिन्न जातीय समूहों और महिलाओं के प्रतिनिधित्व वाली समावेशी सरकार का गठन तो दिवास्वप्न जैसा है। इन सबके बावजूद विश्व समुदाय में ऐसी कोई इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती है कि वह तालिबान को जवाबदेह ठहराए और उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करे। क्वाड के संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद के केंद्रस्थल के रूप में दक्षिण एशिया का उल्लेख किया गया है। पाकिस्तान को तालिबान की सरपरस्ती करने और उसे काबुल पर जबरन कब्जा करने में मदद देने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। अमेरिका ही बल्कि दुनियाभर में विदेश नीति के जानकार और बुद्धिजीवी अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर पाकिस्तान को खलनायक मान रहे हैं। इतना होने पर भी दुनिया के बड़े देश पाकिस्तान को अफगानिस्तान में स्थिति सामान्य बनाने के काम में सहयोगी मान रहे हैं।
यही कारण है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया को तालिबान के प्रति सकारात्मक रुख रखने की सीख दे रहे हैं। इमरान खान ने अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर का राग आलापने और भारत को मानवाधिकार का सम्मान करने की हिमाकत की। भारत की ओर से विदेश मंत्रालय की युवा अधिकारी स्नेहा दुबे ने सटीक टिप्पणी की कि पाकिस्तान अगजनी करने वाला मुल्क है जो अपने आप को अग्निशमन बल के रूप में पेश करना चाहता है।
जहां तक प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ताओं का संबंध है उन्हें अफगानिस्तान और विश्व मामलों के बारे में भारत का पक्ष रखने का अवसर मिला। क्वाड के स्वरूप को लेकर दुनिया में फैली अटकलबाजी पर भी कुछ सीमा तक विराम लग गया। अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया की सैन्य संगठन ऑकस के निर्माण के कारण यह जाहिर हो गया कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने का मुख्य माध्यम क्वाड नहीं बल्कि ऑकस होगा। भारत के लिए यह घटनाक्रम तसल्ली देने वाला है। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को लेकर उठाए जा रहे सवालों का अपने आप जवाब मिल गया है। नये हालात में क्वाड का महत्त्व समान विचार वाले देशों के बीच गैर सैन्य और गैर रणनीतिक क्रियाकलापों पर केंद्रित होगा। क्वाड नेताओं के संयुक्त बयान में वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने को लेकर बेहतर तैयारी पर सहमति जताई गई। क्वाड के सदस्य देशों ने वैश्विक स्तर पर 1.2 अरब वैक्सीन डोज देने का संकल्प लिया है। इस संबंध में मोदी की यह टिप्पणी साकार रूप लेगी कि क्वाड दुनिया की भलाई के लिए लोकतांत्रिक देशों का एक मंच है।
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