सरोकार : औरतों की खुदमुख्तारी पर तालिबानी चोट

Last Updated 26 Sep 2021 12:09:44 AM IST

पिछले दो दशकों की लंबी खामोशी के बाद तालिबान का राज एक बार फिर लौट आया है।


सरोकार : औरतों की खुदमुख्तारी पर तालिबानी चोट

उसका बदला चेहरा औरतों की खुदमुख्तारी  को बदरंग करने वाला है। सिर्फ  और सिर्फ  इस्लामी कानून, तालिबान का यह नया वर्जन अफगानिस्तान के लोगों के लिए खासतौर से औरतों के लिए दोजख बन गया है। इस सामाजिक सांस्कृतिक नुकसान की जद में औरतें सबसे ज्यादा दरबदर हैं। क्रूरता की पैमाइश करने वाला तालिबान सार्वजनिक मंच पर भले उदारता और आशनाई की बात करता हो पर औरतों के लिए वो पहले से कहीं ज्यादा अक्रांता बन गया है।
महीना बीतने को है और तालिबानी सरकार के गठन की प्रक्रिया धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है। पर वादे के उलट इसमें औरतों का कहीं नामोनिशान तक नहीं। तालिबान में मंगलवार को नये मंत्रियों को शामिल कर अंतरिम मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया, लेकिन एक बार फिर उसमें किसी भी महिला को शामिल नहीं किया गया। महीने की शुरु आत में मंत्रियों के चयन के दौरान भी किसी महिला को शामिल नहीं किया गया था। पिछले 20 सालों में तरक्की की जो सीढ़ियां अफगानी औरतों ने चढ़ी थी; उसके पायदान यकायक चरमराने लगे हैं। थोड़ा पीछे चलें तो पाते हैं कि बीते सालों में इस मुल्क ने औरतों को एक बड़ा आसमान देने की  वो हरसंभव कोशिश की, जहां सुहेला और रेहाना जैसी दीगर महिलाएं मजबूती से अपना पैर जमा सके और अपने सुनहरे भविष्य की दुनिया आबाद कर सके। सुहेला सिद्दिकी के अलावा सिमा समर हुसैन, बनू गजनाफर और सुराया दलील जैसी और भी कई  औरतें हैं, जिन्होंने तरक्की की मशालें थाम रखी थीं। इन महिलाओं ने अफगान राजनीति के ताकतवर पदों पर कामयाबी की अपनी अलहदा चमक बिखेरी है। हबीबा सरबी तो मुल्क की पहली महिला गवर्नर बनकर इतिहास में दर्ज हो गई, लेकिन डर है कि  कामयाबियों की ये इबारत कहीं सुनहरी याद बनकर न रह  जाए। जिन औरतों ने आजादी भरे माहौल में आसमान की उंचाईयों तक परवाज भरा वे अब किसी कोने में पड़ी अपनी सलामती की दुआएं मांग रही है। आखिर कब तक औरतों की आजादी,उनके जज्बातों और उनके जिस्म की खरीद-फरोख्त का ये सिलसिला चलता रहेगा। तालिबान पहले भी अपने सख्त शरिया कानून के चलते बदनाम रहा है। उसने औरतों और बच्चियों पर तरह तरह के जुल्म ढाये। बाजार में सरेआम उनकी बोलिया लगाई; उन्हें कोड़ों से पीटा। उसने अब नये कानून के तहत औरतों के स्कूल-कॉलेज जाने पर रोक लगा दी है।

आखिर कोई भी सभ्य सभ्यता ये सब देख सुन कैसे चुप रह सकती है? हर बार क्रूरता और आततायीपन की गाज औरतों पर ही गिरी है। छद्म पौरुषता को ठेस न लगे इसके पूरे प्रबंध हर सभ्यता और हर युग में किए जाते रहे हैं। आज बारी अफगानी औरतों की है। उनका वजूद खतरे में है फिर भी खुद को विकसित और मौजूं कहलाने वाले मुल्क चुप्पी साधे बैठे हैं। आखिर ऐसे आक्रांता सरकार को स्वीकार्यता कैसे दी जा सकती है, जो औरतों के बुनियादी हक के खिलाफ हो। कोई भी कामयाब और अमन पसंद मुल्क महिलाओं की साझेदारी के बगैर  अपनी तरक्की की राह आसान नहीं कर सकता। जब तक औरतों के लिए जिल्लत और जलालत से मुक्त एक सभ्य, संस्कारित और उदार समाज का निर्माण नहीं किया जाएगा तब तक कोई भी मुल्क खुद को सभ्यता और विकास के दौड़ में आगे नहीं कर पाएगा।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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