मीडिया : मोदी की मीडिया-नीति
एक खबर चैनल पर आए एक ‘ओपिनियन पोल’ ने फिर सिद्ध कर दिया कि पीएम मोदी अब भी दुर्जेय हैं।
मीडिया : मोदी की मीडिया-नीति |
बताया कि उनके ‘प्रशासनिक मॉडल’ को 55 फीसद लोग पसंद करते हैं। सबको शामिल करने की उनकी नीति को पसंद करने वाले 67 फीसद हैं जबकि दुनिया में भारत की छवि को रणनीतिक तौर पर ऊपर उठाने को पसंद करने वालों की संख्या 70 फीसद है। विपक्ष कह सकता है कि सर्वे मोदी की गिरती प्रतिष्ठा उठाने की कवायद है। लेकिन अगर इसका एक अंश भी सच हो तो देखना चाहिए कि किसान विरोध तथा कोविड जैसी चुनौती के बावजूद मोदी अब भी इतने लोकप्रिय क्यों हैं? इसका कारण, मोदी की रीति-नीति और काम-काज, भाजपा के संगठन आदि कारणों के अलावा मोदी की ‘मीडिया नीति’ भी है।
मोदी की ‘मीडिया नीति’ है :मीडिया में ‘पॉजिटिव छवि’ के साथ अधिकाधिक समय बने रहना। ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मोदी खबर न बनें या न बनाएं। वे ‘प्रशंसक’ और ‘निंदक खबरों’ में भी बने रहते हैं। उनका मीडिया में हर दिन लाइव बने रहना उनकी ‘अथक छवि’ को नीचे तक पापूलर बनाता है। किसी योजना का उद्घाटन करना हो, किसी समूह को संबोधित करना हो, खिलाड़ियों से मिलना हो, डाक्टरों से मिलना हो या सैनिकों से मिलना हो-किसी न किसी तरीके से वे हमें सतत संबोधित करते रहते हैं।
मोदी मीडिया की लगभग दैनिक अनिवार्यता हैं। लगभग हर दिन मीडिया में कुछ न कुछ देर दिखते हैं। कई बार एक ही दिन में टीवी पर दो-दो तीन-तीन बार बोलने आ जाते हैं कि आप बोर होने लगते हैं। हर दम ‘प्रबोधते’ रहते हैं या कोई न कोई उपदेश पिलाते रहते हैं और कुछ नहीं तो ‘ट्वीट’ करते रहते हैं और इस तरह खबरों व चरचाओं में बने रहते हैं। बची कसर उनके ‘निंदक’ पूरी कर देते हैं। मीडिया उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता क्योंकि वे पीएम हैं और उनकी हर बात बताने योग्य है। उधर, अपना विपक्ष भी उनकी हर हर बात की निंदा करके उनको खबर के केंद्र में बनाए रखता है। अगर कोई पीएम द्वारा लिए गए मीडिया टाइम का आकलन करे तो मालूम होगा कि अपने मीडिया में मोदी जितने समय रहते हैं, उतने समय तो अब तक के ‘कुल पीएम’ नहीं रहे होंगे। यहां तक कि कोई सुपर स्टार भी इतने समय रहा नहीं दिखता। उनकी यह अति उपस्थिति कई बार चिढ़ाती लगती है। विज्ञापन की भाषा में इसे ‘टीजर’ कहा जाता है। मोदी भी टीजर की तरह बार-बार दिखते हैं और इतनी बार बोलते दिखते हैं कि हमें बोर करने और चिढ़ाने लगते हैं। लेकिन, हम उसे ही याद रखते हैं जो हमें चिढ़ाता है, टीज करता है क्योंकि वही ‘सामान्य’ से अलग दिख कर हमारा घ्यान खींचता है। विज्ञापन का नया चलन मानता है कि चैनलों और खबरों की ‘अति’ के बीच लोगों को प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर करना सबसे बड़ी कला है। ‘टीजर’ यही करता है।
वह विज्ञापन क्या जिसे देख लोगों में प्रतिक्रिया न करें। प्रतिक्रिया करेंगे यानी गुस्सा करेंगे या चिढ़ेंगे, निंदा करेंगे और जितनी बार ऐसा करेंगे, उतनी ही बार उस चीज को याद भी करेंगे जो उनको चिढ़ा रही होती है। जो चीज चिढ़ाती है या गुस्सा दिलाती है, उसे हम कुछ देर के लिए अपनी नजरों से भले हटा दें लेकिन वह हमारे दिलोदिमाग में छाई रहती है क्योंकि चिढ़ाना भी उस चीज के प्रति हमारे मन में ‘अतिरिक्त आकषर्ण’ पैदा करता है। यही ‘प्यार’ और ‘गुस्से’ की ‘सांस्कृतिक डाइलेक्टिक्स’ जिसे ‘फेमिनिस्ट’ नहीं समझ सकते। मसलन, फिल्म का हीरो जब हीरोइन को रिझाने के लिए पीछे पड़ता है तो पहले तो हीरोइन उस पर गुस्सा करती है, फिर हीरो के लगातार पीछा करने पर ही मुग्ध होकर ‘ड्यूट’ (सहगीत) गाने लगती है। नायिका को इस जबर्दस्ती के प्यार पर गुस्सा आता है और यह गुस्सा ही प्यार में बदल जाता है।
सच! मोदी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते।
सिर्फ एक उदाहरण देखें : जिस दिन ढाई करोड़ टीके लगाने का रिकॉर्ड बना उस दिन वे अपने जन्म दिन के कारण तो मीडिया में बने ही रहे, साथ ही यूएन की सिक्यूरिटी काउंसिल की कॉन्फ्रेंस के जरिए भी बने रहे और फिर अगले रोज टीका लगाने वाले डाक्टरों, नसरे व समाजसेवियों का हौसला बढ़ाने के लिए आ बैठे। आप चाहें न चाहें वे आपकी नजर में रहेंगे ही रहेंगे। और आजकल जब भी मीडिया में आते हैं, ऐसी मुद्रा में बोलते हैं जैसे ‘सबका भला’ चाहने वाला कोई ‘संत’ बोल रहा हो। और जब से उन्होंने दाढ़ी बढ़ाई है तब से तो उनकी मुद्रा एकदम ‘साधु-संतों’ वाली बन गई है, जिस पर कोई हमला भोंथरा हो रहता है।
यही है मोदी की मीडिया नीति!
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