मीडिया : कोविड, मोदी और मीडिया

Last Updated 16 May 2021 12:17:07 AM IST

पहले फिरंगी मीडिया ने ठोका। फिर देसी मीडिया ने ठोका कि भारत को ‘कोविड नरक’ बनाने के जिम्मेदार मोदी हैं!


मीडिया : कोविड, मोदी और मीडिया

विदेशी मीडिया तो मोदी पर कभी मेहरबान नहीं रहा, लेकिन छह साल से मोदी की मलाई काटने वाले मीडिया को अचानक क्या हो गया कि मोदी को कोसने-कुसवाने लगा! यह मीडिया का ‘अवसरवाद’ है यानी ‘जैसी बहै बयार पीठ तक तैसी दीजै’!  जो चैनल व एंकर मोदी के लठैत बने रहे आज पूछ रहे हैं कि कोविड ने क्या मोदी की लोकप्रियता को क्षति पहुंचाई है? और जवाब में कहते कहलवाते हैं कि हां, पहुंचाई है अर्थात् ‘मोदी तो गए’! कहने की जरूरत नहीं कि अगर यह मोदी के संकट का क्षण है तो मीडिया के संकट का भी क्षण है। जब तक मोदी ताकतवर दिखते रहे तब तक मीडिया ने मोदी की गाई। जब हिलने लगे तो गरियाने लगे।
मोदी के आलोचना के बिंदु ये हैं: जब पहले ही बता दिया था कि दूसरी लहर आनी है तो तैयारी क्यों नहीं की? ‘विश्व गुरु’ बनने के जुनून में अन्य देशों को टीका देकर ‘घर फूंक तमाशा’ क्यों देखा? ऑक्सीजन की तैयारी क्यों न की..? अब तक लाशों के अंबार मशानों में लगे थे, अब सैकड़ों लाशें गंगा में तैरती नजर आती हैं, जिनको कुत्ते-चील-कव्वे नोंचते दिखते हैं। एक से एक हृदय विदारक दृश्य हैं।

संक्रमितों के लिए न पर्याप्त बेड हैं, न दवा, न ऑक्सीजन, न वैक्सीन है। लोग अस्पतालों के आगे दम तोड़ते हैं। शवों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते! ब्लैकिए लोगों को लूट रहे हैं। लोग अनाथत्व महसूस करते हैं कि उनका हितू कोई नहीं। नेता व सरकारें गायब हैं। कोविड का कहर जितना है, उसका सिर्फ एक अंश ही मीडिया दिखा पाता है। सब कुछ दिखा भी नहीं सकता। इस महामारी की व्याप्ति की पूरी नक्शानवीसी मुश्किल है। निराशा और हताशा के मारे लोगों में सत्ताओं के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा है। जाहिर है यह गुस्सा उसी के खिलाफ हो सकता है, जो कहता रहा हो कि ‘वो’ है तो ‘मुमकिन’ है! शायद इसीलिए कल तक मोदी के परम भक्त रहे कई लोग अब मोदी से बेहद नाराज नजर आते हैं और इस ‘त्राहि-त्राहि’ के लिए मोदी को जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन जितना अपराधी केंद्र है, मोदी हैं, उतनी ही राज्य सरकारें भी हैं और प्रवक्ता एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। इसके बावजूद, लोगों की नजर में केंद्र व मोदी ही अधिक जिम्मेदार हैं! मोदी की छवि की चमक और दुर्जेयता विदा हो चुकी है। कोविड ने उनके चक्रवर्ती महानायकत्व में छिद्र कर दिए हैं। आज कोई सर्वे हो तो मोदी की लोकप्रियता अपने न्यूनतम बिंदु पर नजर आए। लेकिन उपरोक्त से ये न समझें कि कल तक सत्ता की चाटुकारिता करने वाला मीडिया ‘क्रांतिकारी’ हो गया है। उसकी असलियत देखनी हो तो बड़े मीडिया घरानों की चैनल-चतुराई देखें कि एक मीडिया घराने का अंग्रेजी चैनल मोदी के प्रति क्रिटिकल है, तो उसी का हिंदी चैनल मोदी के चमचत्व में संलग्न है। एक मीडिया घराने का बांग्ला चैनल और अंगेजी अखबार राज्य सरकार के पक्ष में बोलता है, और केंद्र और मोदी को ठोकता है, तो उसी घराने का हिंदी चैनल केद्र के प्रति हमदर्दी दिखाता है। ऐसे ही एक अंग्रेजी चैनल मोदी को जम के ठोकता है जबकि उसी का हिंदी चैनल केंद्र व मोदी की ओर झुका रहता है! अपना मीडिया स्वभाव से ‘दोगला’ है! 
यद्यपि  मोदी और केंद्र सरकार की मूर्खताएं भी कम नहीं। मोदी भले कहते रहे हों कि ‘ढिलाई नहीं’ लेकिन कोविड से लड़ने में खुद ‘ढिलाई’ कर बैठे। तिस पर अकड़ इतनी कि न सर्वदलीय बैठक करते हैं, न अपनी गलती मानते हैं। कोविड की दूसरी लहर में भी चुनाव लड़ना जरूरी समझते हैं, कुंभ होने देते हैं। यूपी में पंचायत चुनाव होने देते हैं और किसानों के धरने को सहते रहते हैं। इन ‘सुपर स्प्रेडरों’ को नहीं रोकते, जिनकी वजह से दूसरी लहर बढ़ी है। जब लोग पटपट कर मरते होते हैं, वे धर्मस्थलों में धेक लगाते दिखते हैं। लोग रोते-बिलखते हैं, लेकिन वे अपना ‘विकास राग’ को अलापते रहते हैं।
आम आदमी हताश और डरा हुआ है। उसे अकेला छोड़ दिया गया है। उसके जीवन पर बनी है और उनकी कोई नहीं सुनता। लोगों में क्षोभ है, गुस्सा है लेकिन गुस्सा भी उसी पर अधिक होता है जिससे वे प्यार करते रहे हैं। लेकिन विपक्ष के लिए यह ‘आपदा में अवसर’ की तरह है जैसे ‘बिल्ली के भागों छींका टूटा’ हो! जिसे राजनीति से नहीं निपटा पाए, उसे ‘कोविड’ निपटा रहा है-इसे देख कुछ  विपक्षियों की तो बांछे खिली दिखती हैं कि मोदी अब गए! स्पष्ट है कि छह साल तक मोदी के नाम पर मलाई काटने वाला मीडिया आलोचक का अवतार ले रहा है तो सिर्फ इसलिए कि अगले ‘शाहेवक्त’ का भी भौंपू बन सके!

सुधीश पचौरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment