वैश्विकी : फिलिस्तीन में अंतहीन अन्याय
पूरी दुनिय इस समय कोरोना महामारी से जूझ रही है। उसी समय पश्चिम एशिया में इजराइल और फिलिस्तीन विवाद का पुराना नासूर तिहत्तर साल बाद भी यह क्षेत्र युद्ध संघर्ष और आतंकवादी हमलों की चपेट में रहा है।
वैश्विकी : फिलिस्तीन में अंतहीन अन्याय |
हाल के वर्षो में इजराइल और इस इलाके के अरब देशों के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ, लेकिन आंतरिक रूप से फिलिस्तनियों और यहूदियों के बीच छोटा-बड़ा संघर्ष जारी रहा। इजराइल ने सैनिक और राजनीतिक दृष्टि से इस क्षेत्र पर अपना वर्चस्व कायम रखा, लेकिन वह फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध को कुचलने में नाकाम रहा। उन्सीस सौ अड़तलीस में यहूदियों के देश के रूप में इजराइल अस्तित्व में आया, जिसे दुनिया में यहूदियों के साथ अतीत में हुए अन्याय और अत्याचार की क्षतिपूर्ति माना गया, लेकिन एक जातीय समूह को न्याय दिलाने के प्रयास में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने एक-दूसरे जातीय समूह फिलिस्तीनियों के साथ भारी अन्याय किया। फिलिस्तीनियों को अपना घर-बार छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया गया। कालांतर में इजराइल ने उसके लिए निर्धारित भू-भाग में लगातार विश्वस्तार जारी रखा और फिलिस्तीनी परिवारों को बार-बार अपनी जन्मभूमि पर शरणार्थी होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
रमजान के पवित्र महीने में यरूशलम में हुए घटनाक्रम की भी यही पृष्ठभूमि है। यरूशलम को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इजराइली कब्जे वाला क्षेत्र मानती है, लेकिन अमेरिका के शह पर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तेल अवीव की बजाय यरूशलम को देश की नई राजधानी घोषित किया है। इसके साथ ही सरकार ने पूर्वी यरूशलम में नई यहूदी बस्तियों के निर्माण का काम तेज कर दिया है। फिलिस्तीन परिवार बेदखल होने के कगार पर है। इसी के विरुद्ध महीनों और वषर्ोे से बढ़ रहा फिलिस्तीन असंतोष के ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ है। फिलिस्तीन के पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी का नेतृत्व क्रमश: नरमपंथी और उग्रपंथी के हाथों है। पश्चिमी किनारे पर यदि फिलिस्तीन पत्थरों से इजराइली सेना को चुनौती दे रहे हैं तो गाजा पट्टी से हमास इजराइली शहरों पर मिसाइल हमले कर रहा है। हमास के हमलों में इजराइली पक्ष के मरने वालों की संख्या इकाई में है जबकि फिलिस्तीनियों की हताहतों की संख्या सैकड़ों में है। आश्चर्य की बात यह है कि इजराइल का यह आपराधिक बल प्रयोग उस समय हो रहा है जब प्रमुख अरब और मुस्लिम देश इजराइल के साथ कूटनीतिक संबंध बना रहे हैं। बड़े देशों का मुख्य सरोकार यह है कि इस घटनाक्रम से उनके राष्ट्रीय हितों पर चोट न आए।
भारत हमेशा से फिलिस्तीन के लोगों का समर्थक रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल के साथ भारत के राजनीतिक, सैनिक और कूटनीतिक संबंधों को नई ऊंचाइयां दी है, लेकिन भारत फिलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवीय और विकास परियोजनाओं में सक्रिय रूप से मदद कर रहा है। दुर्भाग्य की बात यह है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के कूटनीतिक दौर में मानवीय आधार पर सहायता को तवज्जो नहीं दी जाती। अफगानिस्तान में भारत के ऐसे ही प्रयासों का उसे उचित प्रतिफल नहीं मिलता। यह भी एक सचाई है कि फिलिस्तीन का दशकों तक समर्थन करने के बावजूद भारत कश्मीर के मुद्दे पर मुस्लिम और अरब देशों का समर्थन हासिल नहीं कर पाया, जबकि दूसरी ओर इजराइल ने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्धों और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में भारत की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद की।
मौजूदा संघर्ष में इस बार एक नया घटनाक्रम भी सामने आया। इजराइल के प्रमुख शहरों में जातीय और सांप्रदायिक दंगे हुए। इजराइल में फिलिस्तीन मूल की जनसंख्या बीस-पचीस फीसद है। आम तौर पर ये लोग खुद को इजराइली मानते हैं। फिलिस्तीन क्षेत्र में रहने वाले अपने भाई-बंधुओं के साथ भले ही वे भावनात्मक रूप से सहानुभूति रखते हों, लेकिन इसका खुला इजहार नहीं करते, लेकिन इस बार इजराइल के फिलिस्तीनी भी सड़कों पर उतर आए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार गाजा पट्टी में हिंसा का जैसा तांडव हो रहा था उससे कम इजराइल के अपने शहरों में नहीं था। प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस अंतोष को आतंकवाद की संख्या दी है लेकिन यथार्थ यह है कि बड़ी आबादी वाले अल्पसंख्यक समूह को जोर-जर्बदस्ती से दबाकर नहीं रखा जा सकता। इजराइल की लोकतांत्रिक प्रणाली में तो यह और भी मुश्किल है।
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