सरोकार : यूके : यौन उत्पीड़न में कई अपराध और जुडेंगे
यूके में विपक्षी लेबर पार्टी ने महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा की परिभाषा में कुछ नये अपराधों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा है।
सरोकार : यूके : यौन उत्पीड़न में कई अपराध और जुडेंगे |
इसमें सड़क पर उत्पीड़न पर पाबंदी लगाने की बात कही गई है। मिसॉजनी यानी महिलाओं के साथ द्वेष रखने को हेट क्राइम बनाया गया है, और सेक्स-फॉर-रेंट को बैन किया गया है। इसके अलावा यह प्रस्ताव भी रखा गया है कि उन टेक एग्जीक्यूटिव्स पर क्रिमिनल मामला चलाया जाए जोअपने प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं के प्रति नफरत रखने वाले बयानों को हटाने के लिए तुरंत कार्रवाई नहीं करते। पार्टी इससे पहले भी ऑनलाइन हेट स्पीच का विरोध करती आई है। लेबर पार्टी ने सरकारी ग्रीन पेपर का अपना संस्करण प्रकाशित किया है। उसमें कहा गया है कि पुलिस सही तरीके से काम नहीं करती। साथ ही, संसद के कई विधेयकों में भी कमियां हैं।
यूके में शैडो कैबिनेट हुआ करती है, जिसमें विपक्षी नेताओं का समूह, संबंधित मंत्रियों के कामकाज पर नजर रखता है। वहां के शैडो घरेलू हिंसा और सुरक्षा मंत्री जेस फिलिप का कहना है कि सरकार भले ही कितनी भी दलील दे, महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा एक चिंताजनक अपराध है। इसीलिए इस ग्रीन पेपर में बलात्कार, स्टॉकिंग और पति या पार्टनर के हत्या करने पर कड़ी सजा का प्रस्ताव रखा गया है। इसके अलावा, बलात्कार और अगवा करने, या किसी अनजान की हत्या करने पर जीवन भर जुर्माना भुगतने की भी बात कही गई है। बलात्कार के लिए न्यूनतम जुर्माना अवधि सात वर्ष प्रस्तावित है। इसमें यह भी कहा गया है कि शरणार्थियों और प्रवासियों को घरेलू हिंसा के मामले में कानूनी मदद मिलनी चाहिए जिस पर कई मामलों में पाबंदी है यानी महिला, महिला है, चाहे वह शरणार्थी हो या प्रवासी। वैसे कुछ और प्रस्ताव भी हैं। यौन उत्पीड़न की पीड़ितों को बदनाम करने वालों को कस्टोडियल सेनटेंस देना शामिल है यानी अपराधी को एक निर्धारित अवधि तक जेल या किसी दूसरी जगह कस्टडी में रखा जाए। घरेलू उत्पीड़न के शिकार बच्चों की पहचान करने और उन्हें मदद देने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया जाए। बलात्कार और यौन हिंसा की पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए विशेष मंत्री भी नियुक्त किए जाने चाहिए।
यूके से इतर भारत में अभी यही बहस छिड़ी है कि यौन हिंसा की परिभाषा में क्या-क्या शामिल नहीं किया जाना चाहिए। इस साल की शुरु आत में मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने एक अभियुक्त को यौन उत्पीड़न के अपराध से इसलिए बरी कर दिया था क्योंकि ‘कपड़े उतारे बिना शरीर को छूने’ को बेंच ने यौन उत्पीड़न नहीं माना था। हालांकि बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने उस फैसले पर रोक लगा दी थी। सुनवाई में 39 वर्षीय आदमी को 12 साल की लड़की के यौन उत्पीड़न का दोषी पाया गया और सजा सुनाई गई। जब उस व्यक्ति ने इसके खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच में अपील की तो अदालत ने कुछ सवाल उठाए। उनमें सबसे अहम यह था कि बिना सहमति से ही सही, अगर एक नाबालिग का शरीर बिना कपड़े उतारे छुआ गया है, तो यह कैसा अपराध माना जाए? लेकिन इस सवाल की भूमिका ही गलत है। यौन हिंसा के खिलाफ कानूनों में उत्पीड़न तय करने के लिए कपड़े उतारे जाने या शरीर के शरीर से छूने की कोई शर्त का उल्लेख नहीं है यानी कहीं यौन अपराधों की परिभाषा को बढ़ाए जाने की बात की जा रही है, और अपने यहां इस परिभाषा को और संकीर्ण बनाने की कोशिशें हो रही हैं।
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