सरोकार : इंग्लैंड में मां को दिया जा रहा उसका खोया सम्मान
आज मदर्स डे है, और मां के साथ कुछ न्याय का दिन भी। इसी से यह खबर साझा करनी जरूरी है। भले ही इंग्लैंड और वेल्स से आ रही हो।
सरोकार : इंग्लैंड में मां को दिया जा रहा उसका खोया सम्मान |
वहां के मैरिज सर्टिफिकेट्स में अब शादीशुदा जोड़े के दोनों पेरेंट्स यानी माता-पिता का नाम दर्ज होगा। अब तक इस सर्टिफिकेट में कपल के सिर्फ पिता का नाम लिखा होता था। दरअसल, यह बदलाव तब किया गया है, जब मैरिज रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को डिजिटल किया जा रहा है। वहां के होम ऑफिस का कहना है कि यह बदलाव 1837 के बाद से अब तक का सबसे बड़ा बदलाव है। इसके जरिए महिलाओं को सम्मान देने की कोशिश की गई है, या यूं कहें कि एक ऐतिहासिक गलती को दुरु स्त करने की कोशिश की गई है। इंग्लैंड और वेल्स में अभी शादीशुदा जोड़ा एक रजिस्टर बुक में दस्तखत करता है, और इस तरह शादियां रजिस्टर हो जाती हैं। यह बुक हर रजिस्टर ऑफिस, चर्च और चैपेल्स और धार्मिंक परिसरों में रखी जाती है। अब होम ऑफिस ने सिंगल इलेक्ट्रॉनिक मैरिज रजिस्टर तैयार किया है ताकि समय और धन की बचत हो। इससे हार्ड कॉपी की कोई जरूरत नहीं रहेगी।
दिलचस्प बात यह है कि अभी तक इन सर्टिफिकेट्स में सिर्फ कपल के पिता का नाम होता था। पिता अगर सौतेला भी हो तो भी उसी का नाम दर्ज होता था, लेकिन मां का नाम इस सर्टिफिकेट से नादारद होता था। ऐसा नहीं है कि इससे पहले यह पहल करने की कोशिश नहीं की गई। 2015 में लेबर सांसद क्रिसटीना रीस ने ऐसा एक प्रस्ताव संसद में रखा था, लेकिन सरकार ने उसे खारिज कर दिया था। इसके बाद 2017 में कैबिनेट मंत्री कैरोलिन स्पेलमैन ने इस सिलसिले में संसद में एक विधेयक लाने की कोशिश की थी। इस विधेयक का वाचन भी हुआ था। पर बात कुछ बनी नहीं थी। फिर 2019 में टोरी सांसद टिम लॉन्गटन ने एक गैर-सरकारी विधेयक पेश किया जिसे सम्मति भी मिली। इसमें इलेक्ट्रॉनिक रजिस्टर का भी प्रस्ताव रखा गया था।
हाल के वर्षो में महिलावादियों ने समाज में बराबरी के लिए बहुत संघर्ष किया है। इसके लिए बड़ी बड़ी हेडलाइंस भी बनी हैं। एक समान वेतन और अवसर-समाज में हर कदम पर बराबरी की बात। इन सब में बदलाव हो जाए तो भी कुछ छोटी-छोटी चीजें बहुत मायने रखती हैं; जिन्हें रोजाना की गैर-बराबरी कहा जाता है। 2012 में ब्रिटिश फेमिनिस्ट लॉरा बेट्स ने एक वेबसाइट शुरू की थी जिसका नाम है, एवरीडे सेक्सिज्म प्रॉजेक्ट। मकसद था कि दुनिया के सभी देशों में सेक्सिज्म के उदाहरणों को डॉक्यूमेंट किया जाए। जैसे कैसे घरेलू कामों में औरतों को गैर-बराबरी का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर महिलाएं अपने अनुभव साझा कर सकती हैं और दूसरों के अनुभवों को पढ़ भी सकती हैं।
यूं सर्टिफिकेट्स में मां का नाम होना, भारत में भी कुछ अनोखी बात ही है। पिछले साल भारत में एक ऐसा ही मामला देखने को मिला था। देश के एक नामी गिरामी लॉ स्कूल से बीए एलएलबी करने वाले समरिता शंकर ने यूनिर्वसटिी से अपील की थी कि उसके प्रोविजनल सर्टिफिकेट में सिर्फ उसके पिता का नहीं, मां का नाम भी होना चाहिए। पहले से यूनिर्वसटिी ने इस बात से इनकार किया क्योंकि ऐसा होता ही नहीं है। हालांकि 1998 के यूजीसी दिशा-निर्देशों में यह साफ लिखा है कि सर्टिफिकेट में माता-पिता, दोनों का नाम होना चाहिए। पर प्रैक्टिस में ऐसा नहीं है। फिर समरिता ने डीन को ईमेल किया जिसके बाद उसके सर्टिफिकेट में संशोधन किया गया।
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