यादें : एक नया संगीत रचने वाला संगीतकार

Last Updated 09 May 2021 12:04:14 AM IST

प्रति दिन जब कोरोना से बड़ी संख्या में लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं, और इनमें लेखक, कलाकार, पत्रकार सभी शामिल हैं, पिछले दिनों इनके बीच एक खबर वनराज भाटिया के मृत्यु की भी थी।


वनराज भाटिया

उनकी मृत्यु कोरोना से नहीं हुई, वे जीवित होते तो इस महीने की 31 तारीख को 94 वर्ष के हो जाते। काफी समय से वे वृद्धावस्था की विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे थे। ये जरूर हुआ कि वे कोरोना के डर से अस्पताल नहीं गए। उनके निधन की खबर आई तो बहुत सारे लोगों को आश्चर्य हुआ कि वे अभी तक जीवित थे। यह भी संभव है कि काफी लोग उन्हें अब जानते भी न हों।
हमारा समाज आपको तभी तक याद रखता है जब तक आप किन्हीं वजहों से चर्चा में रहते हैं वरना वह आपको आपके हाल पर, हाशिए पर छोड़ देता है। वनराज भाटिया को लेकर भी थोड़े समय पहले कुछ चर्चाएं हुई थीं। यह चर्चा उनके आर्थिक संकट की थीं। बताया गया कि उन्हें घर के सामान बेच कर गुजारा करना पड़ रहा है। मुंबई में वे किराए के मकान में रहते थे और ऐसा समय आ गया था कि उनके पास किराया देने के पैसे नहीं थे। यह भी बताते हैं कि जब कुछ पत्रकार उनका हाल जानने उनके घर गए तो वे नाराज हो गए थे। उन्होंने गुस्से में कहा था कि आप लोग क्यों आए हो, अब कोई मुझसे मिलने नहीं आता, मेरा हाल जानने नहीं आता।

अपनी कविता उद्धृत करने में मुझे संकोच होता है, लेकिन बाजार की इस प्रवृत्ति पर उसकी पंक्तियों से टिप्पणी करना जरूर चाहूंगा-‘अब सिरहाने नहीं होती घड़ी/ जिसकी एक सुरीली धुन/रोज सुबह हमें जगाती थी/कलाइयों पर भी इनके निशान कम होते हैं/फोन नंबरों वाली डायरियां भी अब किसी बक्से में बंद हो गई हैं/और गिनती-पहाड़ों से कभी हमें बचाने वाले/कलकुलेटर भी बीते दिनों की चीज बन गए हैं/ मोबाइल फोन ने कर दिया है इन्हें हमारे बीच से बेदखल/वैसे इनसे भी पहले जब आए थे कंप्यूटर/हमारी आसपास की बहुत सारी चीजों ने/उनके भीतर ही बना लिए थे अपने घर/डाकघर के आसपास सुबह से होने वाली/टाइपराइटरों की खट-खट भी अब नहीं है/बताते है कि जब आए थे सिंथेसाइजर/फिल्म संगीत ने की थी क्रांति/संगीतकारों ने धीरे-धीरे/अलविदा कर दिए थे अपने/सितार, शहनाई या सरोद के साजिंदे/कहीं पढ़ा था कि/हाथ काट लिया था/कई फिल्मों के पार् संगीत में शामिल ऐसे ही एक/वायलिन के प्रसिद्ध संगतकार ने/और एक बासुंरी वाले की बेटी ने कर ली थी/बार में नौकरी/हर क्षण बना रहता है खतरा/चलन से बेदखल हो जाने का/अपने सारे गुणों के बावजूद/बाजार में कबाड़ हो जाने का’।

फिल्मी दुनिया ऐसी ही क्रूर है। एक समय चमक-दमक से घिरे रहने वाले लोग कई बार गुमनामी और गरीबी में चले जाते हैं। जिनके कभी सैकड़ों मित्र हुआ करते थे, उसका हाल ऐसा हो जाता है कि महीनों लोग खोज-खबर नहीं लेते। अपनी सारी प्रतिभा, सारी कला के बावजूद वे फिल्मी दुनिया के बाजार में कबाड़ हो जाते हैं, हाशिए पर कर दिए जाते हैं। हमने कई बार देखा-सुना है कि किसी समय फिल्मों का सुपर स्टार रहा कोई अभिनेता इतना तंगहाल हो जाता है कि उसके पास इलाज के पैसे नहीं होते या भीख मांगने जैसी नौबत आ जाती है, कोई अभिनेत्री अपने घर में अकेले रहते हुए मृत पाई जाती है, और इसका पता कई दिनों बाद चलता है, मशहूर अभिनेत्री की अंतिम यात्रा ठेले पर होती है।

कई कलाकारों की मानसिक स्थिति खराब होने की भी खबरें मिलती हैं। वनराज भाटिया के आखिरी वर्षो की गुमनामी, उनका अकेलापन और आर्थिक संकट देखकर हैरत होती है कि एक ऐसे संगीतकार ने जिसने इतना काम किया, इतने क्षेत्रों में काम किया, इतने लंबे समय तक काम किया, उसे लोगों ने इस तरह छोड़ दिया, फिल्मी दुनिया ने उसकी खोज-खबर न ली, उसके कोई खास दोस्त-शुभचिंतक नहीं रहे। ढेरों फिल्मों, धारावाहिकों, संगीत अलबम, विज्ञापन, नाटक सहित संगीत के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले और कितने ही गायक-गायिकाओं को अवसर देने वाले भाटिया इस तरह अकेले पड़ गए कि यदा-कदा कोई मिलने या खबर करने आता तो उस पर झल्ला उठते।

यह सच है कि लंबी संगीत यात्रा के बावजूद भाटिया के ऐसे गीत बहुत अधिक नहीं हुए, जिन्हें लोकप्रियता के मुहावरे में बहुत सफल माना जाए। उनके कई समकालीन संगीतकारों की तरह उनके गीत आज उस तरह नहीं गाए-बजाए जाते हैं, लेकिन उनका काम कई अथरे में अद्वितीय और अनूठा था। वे एक ऐसे संगीतकार थे, जिसमें अगर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ थी और जिसका असर बार-बार उनके संगीत में दिखता रहा तो वे पाश्चात्य संगीत का एक गहरा प्रभाव हिंदी फिल्मों में लेकर आए। लंबे समय तक विदेश में रहने और पाश्चात्य संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के कारण उनके पास इसकी अद्भुत समझ थी। भारतीय और विदेशी संगीत वाद्यों की भी उन्हें खूब जानकारी थी। उनका संगीत एक अलग किस्म का वह संगीत था, जिसकी जरूरत उस दौर में नये सिनेमा को थी।

आलोक पराड़कर


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