सरोकार : महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य फिर संकट में
ब्रिटेन की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यानी यूएनएफपीए की फंडिंग में कटौती कर दी है और इस कदम को महिलाओं और बच्चों के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है।
सरोकार : महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य फिर संकट में |
यूएनएफपीए ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि यूके, जो उसका सबसे बड़ा दाता देश है, ने गर्भनिरोधकों और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए दी जाने वाली राशि में बड़ी कटौती की है-करीब-करीब 85 फीसद। वह इन मदों के लिए सालाना क्रमश: 154 मिलियन पाउंड और 20 मिलियन पाउंड की राशि देता था और अब उसने फैसला किया है कि वह इन मदों के लिए क्रमश: 23 मिलियन पाउंड और 8 मिलियन पाउंड ही देगा। यूएनएफपीए का कहना है कि अगर यह कटौती न की जाए तो ढाई लाख शिशु और माता मृत्यु, 146 लाख अवांछित गर्भावस्थाओं और 43 मिलियन असुरक्षित गर्भपात को रोका जा सकता है।
यूएनएफपीए करीब 150 देशों के लिए काम करता है। ब्रिटेन वह पहला देश है, जिसने फिलहाल इस कटौती की घोषणा की है। इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने भी संगठन की फंडिंग रोकी थी। वैसे फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डवलपमेंट ऑफिस फिलहाल यूएनएफपीए के 60 से 70 फीसद बजट की भरपाई करता है। इस कटौती से दुनिया भर की महिलाओं और बच्चियों तथा उनके परिवारों पर असर होगा। खासकर जांबिया जैसे देशों में। यूएनएफपीए जांबिया में 70 फीसद गर्भनिरोधकों की सप्लाई करता है। वहां की एक तिहाई लड़कियां 18 साल की होने से पहले ही कम से कम एक बच्चे को जन्म दे देती हैं।
दूसरी तरफ ब्रिटेन का कहना है कि कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए उसे अपने बजट को कम करने की जरूरत है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार महामारी से जुड़े आपात कदमों की वजह से देश को भारी कर्ज लेना पड़ा है और उसका सालाना ऋण बजट दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। वैसे कोविड के कारण विश्व के अनेक देशों में परिवार नियोजन सेवाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है। बहुत-सी जगहों पर स्वास्थ्य सेवाएं ठप्प हैं या फिर सीमित स्तर पर ही उपलब्ध हैं। भारत जैसे देशों, जहां कोविड-19 का कहर जारी है, में स्वास्थ्यकर्मिंयों के पास या तो समय का अभाव है या फिर जरूरी निजी बचाव उपकरण नहीं हैं जिससे वे परामर्श प्रदान कर सकें। बहुत-सी जगहों पर महिलाएं स्वास्थ्य केंद्रों तक जाने से कतरा रही हैं क्योंकि उन्हें कोविड-19 से संक्रमित होने का भय है।
इस सिलसिले में गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट ने एक अध्ययन किया है। उसके अनुसार, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गर्भनिरोध के साधनों के उपयोग में 10 फीसद की गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप 4.9 करोड़ महिलाओं के लिए आधुनिक गर्भ निरोधकों की मांग अधूरी रही और एक वर्ष में अतिरिक्त 1.5 करोड़ अनचाहे गर्भधारण संभावित हैं। यूनिसेफ का अनुमान है कि कोविड-19 को महामारी घोषित किए जाने के बाद के नौ महीने में सबसे अधिक अनुमानित जन्म (2.0 करोड़ में) भारत में होंगे। इसके अलावा पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में युवाओं ने लॉकडाउन के दौरान प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और सेनेटरी पैड्स की जरूरत पूरी न होने की बात कही। हालांकि जिला स्तर पर गर्भनिरोधक उपलब्ध थे, लेकिन सार्वजनिक परिवहन के सीमित उपयोग के कारण वे लोग इन्हें हासिल करने में सफल न हो सके।
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