भारतीय जलक्षेत्र में अमेरिकी युद्धपोत

Last Updated 10 Apr 2021 11:59:23 PM IST

अमेरिकी नौसेना के शक्तिशाली सातवें बेड़े के विध्वंसक युद्धपोत जॉन पॉल जोन्स के भारत के विशेष समुद्री आर्थिक परिक्षेत्र से गुजरने को लेकर एक बड़ा राजनयिक विवाद खड़ा हो गया है।


भारतीय जलक्षेत्र में अमेरिकी युद्धपोत

दोनों देशों की ओर से इस मामले को तूल नहीं दिए जाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हाल के वर्षो में दोनों देशों के बीच तेजी से बढ़ रहे द्विपक्षीय संबंधों में यह घटना किरकिरी साबित हो सकती है। अमेरिकी युद्धपोत सात अप्रैल को भारत के लक्षद्वीप समुद्री क्षेत्र से होकर गुजरा था। भारतीय तटरक्षक जलपोतों ने इस पर निगरानी रखी थी। हालांकि अमेरिकी नौवहन को चुनौती नहीं दी थी। चीन के युद्धपोतों की ऐसी ही कार्रवाई के विरुद्ध भारतीय तटरक्षक बल अधिक सक्रियता दिखाता है और उन्हें जल क्षेत्र से बाहर जाने के लिए बाध्य करता रहा है। अमेरिकी युद्धपोत के मामले में ऐसा नहीं किया गया।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिकी नौसेना पहले भी इस क्षेत्र से गुजरती रही है। फारस की खाड़ी से लेकर अंडमान निकोबार के समीप मलक्का जलडमरू मध्य तक अमेरिकी युद्धपोत गश्त करते हैं। समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भारत और अमेरिका के सहयोग विशेषकर इंडो-पैसिफिक नीति के बढ़ते दायरे के कारण दोनों देशों की नौसेनाएं मित्रवत रवैया अपनाती हैं। अमेरिकी युद्धपोत का भारतीय विशेष आर्थिक परिक्षेत्र से गुजरना उतना आपत्तिजनक नहीं था जितना कि इस संबंध में जारी अमेरिकी नौसेना का सार्वजनिक बयान था। बयान में कहा गया कि अमेरिकी युद्धपोत ने भारत की सहमति लिये बिना यह कार्रवाई की। इस प्रकार उसने मुक्त और बाजार रहित नौवहन के अपने अधिकार का प्रयोग किया। अमेरिकी बयान की भाषा में दादागिरी का पुट था तथा इसे भारत को धमकाने की कार्रवाई भी बनाया जा सकता है। यह सब उस समय हुआ जब भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उभर रहे चतुगरुट (क्वाड) में अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है। ऐसे में अमेरिकी नौसेना का सार्वजनिक बयान चौंकाने वाला है। भारत ने अमेरिकी नौसेना की इस कार्रवाई की दबी जुबान में आलोचना की है। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि राजनयिक माध्यम से भारत में अमेरिकी प्रशासन को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। भारत अपनी समुद्री जल सीमा के बाहर 200 मील तक के क्षेत्र को विशेष आर्थिक परिक्षेत्र मानता है। इस संबंध में भारतीय कानून में प्रावधान है कि किसी भी युद्धपोत को इस इलाके से गुजरने के लिए उसकी पूर्व अनुमति हासिल करनी होगी। दूसरी ओर अमेरिका का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार युद्धपोतों के आवागमन के लिए उसे पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है। भारत ही नहीं बल्कि रूस, जापान, फिलिपींस और चीन आदि देशों के ऐसे ही समुद्री क्षेत्र से अमेरिकी युद्धपोत गुजरते रहते हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिकी युद्धपोत ने भले ही किसी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन न किया हो, लेकिन उसने भारतीय कानून का उल्लंघन अवश्य किया है। भारतीय तटरक्षक बल की यह जिम्मेदारी थी कि वह समुद्री क्षेत्र में भारतीय कानून को लगा कराए। एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती थी कि भारतीय तटरक्षक बल अमेरिकी युद्धपोत को चुनौती देते और उस समय दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच टकराव की स्थिति पैदा होती कि नहीं यह अनुमान का विषय है।
कुछ रक्षा विशेषज्ञों का यह कहना है कि अमेरिकी युद्धपोत की कार्रवाई भारत नहीं बल्कि चीन के लिए एक संदेश था। अमेरिका यह स्पष्ट करना चाहता था कि दक्षिण चीन सागर में उसके युद्धपोतों का आवागमन केवल उसी पर लक्षित नहीं है। अन्य देशों के मामलों में भी अमेरिकी नौसेना ऐसा ही करती है। अमेरिकी नौसेना की यह कार्रवाई उस समय हुई जब रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव ने भारत की यात्रा पूरी की थी। लावरोव और विदेश मंत्री जयशंकर ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और बढ़ाने का निश्चय किया था। दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से यह नहीं कहा कि वार्ता के दौरान रूस से मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली एस-400 की आपूर्ति पर क्या चर्चा हुई। प्रतीत होता है कि दोनों देशों ने आपसी रजामंदी से इस मुद्दे पर कोई बात  नहीं की। हालांकि अमेरिका के लिए यह संकेत अवश्य था कि एस-400 की आपूर्ति सौदा पूर्ववत कायम है। अमेरिकी प्रशासन भारत को चेतावनी दे चुका है कि इस सौदे के कारण भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।

डॉ. दिलीप चौबे


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