हम महानायक के साथ हैं
झल्लन बोला, ‘आप सुने कि नहीं ददाजू, इस बार हमारी सबसे ऊंची अदालत खेला कर दिये, हमारे एक महानायक की जिंदगी में फालतू का झमेला भर दिये।’
हम महानायक के साथ हैं |
हम बोले, ‘पिछली बार तूने जननायक की बात उठायी थी इस बार महानायक की बात उठा रहा है, साफ-साफ बता कि सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कर दिया और तेरा इशारा किधर जा रहा है?’ झल्लन बोला, अरे वही ददाजू, हमारे जनप्रतिनिधि महानायक मुख्तार अंसारी साहब, जिन्हें पंजाब की सरकार दामाद बनाकर रख रही थी, उन्हें हर सेवा-सत्कार मुहैया कर रही थी, सरकार और मुख्तार भाई की आपस में ठीक-ठाक चल रही थी, पर उधर देखिए, हमारी यूपी सरकार फालतू में जल रही थी, उसे हमारे मुख्तार भाई की हंसी-खुशी बुरी तरह खल रही थी। उसने सबसे ऊंची अदालत का दरवाज खटखटाया, देखिए क्या परिणाम आया, पुलिस का एक बड़ा काफिला मुख्तार भाई को रोपड़ से बांदा उठा लाया और गनीमत यह रही ददाजू कि पुलिस दल मुख्तार भाई को खुद से बचाकर सुरक्षित ले आया।’
हमने कहा, ‘न्यायालय, यूपी की सरकार और पुलिस ने तेरे मुख्तार भाई को लेकर जो किया सो किया पर उससे तेरे पेट में दर्द क्यों हो रहा है और तू काहे एक कुख्यात अपराधी के लिए सौ टसुए रो रहा है?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, आप ही बताइए, एक राज्य सरकार जिसे दामाद बनाकर रखे, क्षेत्र की जनता उसे पलकों पर बिठाकर रखे, बड़े-बड़े अधिकारी जिसकी चरणचप्पी करें और बड़े राजनीतिक दल जिसके साथ जादू की झप्पी भरें वह इंसान हमारे इस महान लोकतंत्र का प्रतीक एवं परिचायक ही हो सकता है, अपराधी नहीं महानायक ही हो सकता है।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू उल्टी इबारत पढ़ रहा है और एक अपराधी को जबरन महानायकत्व में जड़ रहा है।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आपकी ऐसी बेतुकी बातों से आपके दिमाग के दिवालियेपन का पता चल जाता है और आपके ऊपर से हमारा भरोसा हिल जाता है। सुनिए, झल्लन तो झल्लन है न तीन में न तेरह में, घनश्याम गधैया घेरे में। पर आप जो कहते हो न मीडिया के उछलबच्चे, तो आपके उन उछलबच्चों ने हमारे महानायक की महानता का कितना अद्भुत आख्यान रच दिया, रोपड़ से बांदा तक ऐसी मार्मिक, ऐसी उछाहभरी और ऐसी दिमाग हिलाऊ सपरेटिंग कवरेज की कि आकाश को धरती के साथ एक कर दिया। कैमरों की ऐसी आपाधापी, ऐसी रेलमपेल और हर एक चैनल की अपनी-अपनी निजी एक्सक्लुजिव किसी अपराधी के लिए नहीं बल्कि किसी महानायक के लिए ही हो सकती है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, मीडिया तो केवल टीआरपीखोर होता है, कमाई पर ही उनका सारा जोर होता है, नाम-दाम मिले तो मजे से किसी भी कुख्यात का बगलगीर होता है। सीधे-सच्चे लोगों की कहानी मीडिया के लिए बोझ होती है।’ झल्लन बोला, आप कुछ भी कहो ददाजू पर सच यही है कि उस दिन मीडिया ने जो कौशल, कमाल और करतब दिखाया वह याद रखा जाएगा। सोचिए ददाजू, अगर मीडिया हमारे महानायक को अपराधी मानकर चुपचाप अपने खोल में सिमट जाता तो इस देश का इतिहास एक महान घटना का साक्षी बनने से वंचित रह जाता।’
हमने कहा, ‘तू बौरा गया है झल्लन जो मीडिया की तरह हर छोटे-बड़े अपराधी के पक्ष में उठ लेता है और तू पूरी ताकत से उसके बचाव में जुट लेता है।’ झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, हम आपकी तरह नहीं हैं जो सच्चाई से आंखें मूंद लें और आंखों पर आदर्श की पट्टी बांधकर खाई में कूद लें। हम चीजों को अपने चालू लोकतंत्र के तराजू पर तोलते हैं और नेता, पुलिस, अफसर जिसके तलवे सहलाते हैं हम उसी के पक्ष में बोलते हैं।’ हमने कहा, ‘तो तू कहना चाहता है कि हमारी विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सब तेरे महानायक की गुलाम हैं?’ झल्लन बोला, ‘अब सही पहुंचे हो ददाजू, सच्चाई यही है और यह सच्चाई हमारे लोकतंत्र की आन-बान-शान रही है। सोचिए ददाजू, हमारे मुख्तार भाई पर हत्या, हत्या के प्रयास, जमीन कब्जियाने, उगाही के लिए धमकियाने जैसे कर्मो के लिए न जाने कितने-कितने मुकदमे दर्ज हुए, पर सोचिए, उन मुकदमों के हश्र क्या हुए। हमारे मुख्तार भाई ने जनता से खुद को चुनवाकर विधानसभा में भिजवा लिया, गवाहों को तुड़वा-मरवाकर अपने विरुद्ध हर मामला औने-पौने में निपटा लिया और कभी जेल भी गये तो जेल को ही अपनी ऐशगाह बना लिया, हां, और अगर एक प्रदेश की सरकार नाराज हो गयी तो दूसरे प्रदेश की सरकार को अपनी ससुराल बना लिया।’ हमने कहा, ‘चल तेरी बात मान भी लें झल्लन, पर लोकतंत्र में न्याय-कानून का कुछ तो रसूख होता है और यही रसूख तो गरीब-गुरबों के पक्ष में खड़ा होता है।’ झल्लन ठठाकर हंस पड़ा, बोला, ‘मजाक जिन करो ददाजू, कानून उनके गोड़ दबाता है, न्याय इनके तलवे चाटता है, राजनीति इनके बिस्तर की शोभा बढ़ती है और इनके ऊपर पूरी बेशर्मी से पद-प्रतिष्ठा की माला चढ़ाती है। इसीलिए हम कह रहे हैं ददाजू कि किसी से अपने दिमाग के ढक्कन खुलवाओ और संभल जाओ।’
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