फ्रांस की ’प्रिया रमानी‘ यानी सैंड्रा मुलर
पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी को पत्रकार और नेता एम. जे. अकबर की मानहानि के आपराधिक मामले से बरी कर दिया था।
फ्रांस की ’प्रिया रमानी‘ यानी सैंड्रा मुलर |
प्रिया ने अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था और अकबर ने प्रिया पर मानहानि का मुकदमा कर दिया था। ऐसी ही खबर फ्रांस से आई है। फ्रांसीसी पत्रकार सैंड्रा मुलर को भी मानहानि के एक मुकदमे में बरी कर दिया गया है। दिलचस्प यह कि भारत और फ्रांस, दोनों जगहों पर हैशटैग मीटू अभियान के दौरान ये मामले उठे थे। फ्रांस में वायरल हैशटैग था-बैलेंसटोनपोर्क यानी अपने वाले सुअर को एक्सपोज कीजिए जिसे 2017 में सैंड्रा मुलर ने ही चलाया था।
दरअसल, हैशटैग मीटू अभियान के फ्रेंच संस्करण हैशटैग बैलेंसटोनपोर्ककी शुरु आत करके सैंड्रा अपने देश की औरतों को यौन शोषण के संबंध में जागरूक करना चाहती थीं। चाहती थीं कि ऐसे मामलों की तरफ सबका ध्यान आकर्षित हो। जैसे हर देश में हो रहा था। इसलिए उन्होंने सबसे पहले आपबीती का खुलासा करने का फैसला किया। उन्होंने ट्विटर पर उस वाकये का जिक्र किया, जब टीवी चैनल एक्विडिया के पूर्व प्रमुख एरिक ब्राओन ने उनके साथ बदसलूकी की थी। ब्राओन ने 2012 में कान में एक पार्टी के दौरान सैंड्रा पर अश्लील टिप्पणियां की थीं। लेकिन इस पोस्ट के बाद सैंड्रा के साथ तो न्याय नहीं हुआ, बदले में ब्राओन ने उन पर मानहानि का मुकदमा कर दिया। ब्राओन ने अदालत में कहा कि उसने आपत्तिजनक टिप्पणियां तो की थीं लेकिन बाद में टेक्स्ट मैसेज करके माफी मांग ली थी।
हालांकि सैंड्रा ने जवाब में कहा था कि ब्राओन के मैसेज में माफी जैसी कोई बात नहीं थी। मानहानि के मामले में ब्राओन ने कहा था कि सैंड्रा के सोशल मीडिया पोस्ट ने उसकी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब की है। उसे सेक्स अपराधी बना दिया है। उसके के वकीलों का तर्क था कि उसकी टिप्पणियों को कानूनी अथरे में उत्पीड़न नहीं कह सकते। चूंकि फ्रांस के कानून के अनुसार, उत्पीड़न में बार-बार या ‘गंभीर’ दबाव देना शामिल है। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने 2019 में फैसला सुनाया कि सैंड्रा ने यौन उत्पीड़न के दावे का कोई सबूत नहीं दिया। इसलिए उसे मानहानि की एवज में ब्राओन को 15 हजार यूरो चुकाने होंगे।
अब इस मामले ने नया रंग लिया है। पेरिस कोर्ट ऑफ अपील ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा है कि सैंड्रा ने सद्भावना से काम किया था। उनका इरादा मानहानि करने का नहीं, बल्कि अपने साथ हुए दुर्व्यवहार से लोगों को परिचित कराना था। इस फैसले को यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की ऐतिहासिक जीत बताया जा रहा है। सैंड्रा ने कहा कि शुरु आती फैसले से संदेश दिया गया था-औरतों को यौन उत्पीड़न पर चुप हो जाना चाहिए। पूरे मामले से उनका कॅरियर भी प्रभावित हुआ है, लेकिन फिर भी उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं।
भारत में प्रिया रमानी का मामला भी ऐसा ही है। अदालत ने प्रिया को मानहानि के मामले से बरी करते हुए कहा था-‘समय आ गया है कि समाज समझे कि कभी-कभी पीड़ित मानसिक आघात के कारण वर्षो तक नहीं बोल पाती। लेकिन वह दसियों साल बाद भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है।’ अदालत का यह फैसला इसलिए भी खास था कि इससे यौन शोषण से जुड़े सामाजिक लांछन का भय चूर-चूर होता है। खुशी की बात यह है कि फ्रांस में भी ऐसा ही हुआ है। आपने एक महीने पहले प्रिया रमानी की जीत पर जश्न मनाया है, तो सैंड्रा की जीत पर भी तालियां बजा लें।
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