सरोकार : कोविड-19 की दुश्वारियां और सेक्स वर्कर
सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की हिमायत करने वाले कम ही होते हैं। उन्हें लेकर हमारी वर्जनाएं और पूर्वाग्रह हमें उनके हक की बात करने से रोकते हैं, लेकिन वह समुदाय भी एक बड़ा समुदाय है जिसकी बात की जानी चाहिए।
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कोविड-19 महामारी के दौरान सभी समुदायों की दिक्कतों की बातें की गई, लेकिन सेक्स वर्कर्स छूट ही गई। खबरें आ रही हैं कि लॉकडाउन ने सेक्स वर्कर्स के लिए क्या-क्या परेशानियां पैदा कीं। कई चैरिटी और सपोर्ट संगठनों का कहना है कि यूके में सेक्स वर्कर्स को कोरोना वायरस से जुड़े प्रतिबंधों के चलते बहुत अधिक हिंसा, मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
यह कहने वाले संगठनों में से एक है ग्लासगो का अंब्रेला लेन। इसका कहना है कि जो महिलाएं किसी तरह देह व्यापार के चंगुल से निकल गई थीं, उन्हें दोबारा इसका सहारा लेना पड़ रहा है। बहुतों को तो धन की कमी के चलते यह काम करना पड़ रहा है। कइयों के नियमित ग्राहक छूट गए हैं, चूंकि लॉकडाउन के कारण सेक्स वर्कर्स का काम धंधा भी खत्म हो गया था। इसके बाद ग्राहक कम हुए तो सेक्स वर्कर्स चुनने की स्थिति में नहीं रहीं। उन्हें ऐसे ग्राहकों के साथ काम करना पड़ा जो खतरनाक हो सकते हैं। इसी से सेक्स वर्कर्स हताश और नाजुक स्थिति में हैं, और ग्राहक इसका फायदा उठा रहे हैं। इससे सेक्स वर्कर्स की मानसिक स्थिति खराब हुई है। कई आत्महत्या कर चुकी हैं, और कई इसकी कोशिश में हैं।
यह ब्रिटेन की बात है, जहां चैरिटी संगठनों ने लोगों को फूड वाउचर्स दिए। पर भारत जैसे देशों में यह कहां तक संभव है। सेक्स वर्कर्स को किसी तरह की मान्यता नहीं है, और न ही यह लीगल है। यहां की परेशानियों के बारे में हम सोच भी नहीं सकते। देशव्यापी लॉकडाउन के बाद हाशिए पर खड़े सेक्स वर्कर्स का एक बड़ा तबका भुखमरी के कगार पर पहुंच गया। दिल्ली की 60 फीसद से ज्यादा सेक्स वर्कर्स अपने गृह राज्यों की तरफ लौट गई। यूं पिछले साल सितम्बर में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों से सेक्स वर्कर्स को राहत देने को कहा था। एक याचिका की सुनवाई में अदालत ने विशेष रूप से राशन कार्ड पर जोर दिए बिना राशन देने और अन्य बुनियादी जरूरतों को प्रदान करने का निर्देश दिया था।
वैसे भी देश में सेक्स वर्कर्स की हालत बहुत बुरी है। कई साल पहले दसरा नामक ग्रुप ने सेक्स वर्कर्स पर एक सर्वेक्षण किया था। इसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में कमर्शियल सेक्स एक्टिविटी में 30 लाख से ज्यादा औरतें लगी हुई हैं। इनमें 1997 से 50 फीसद बढ़ोतरी हुई है। इनमें 60 फीसद लड़कियां 12 से 16 साल की हैं, जबकि 35 फीसद लड़कियां इस काम में 18 साल से कम उम्र में लगा दी गई थीं। देश के लगभग 1100 रेड लाइट एरियाज में करीब-करीब 3 लाख चकले हैं। तकलीफदेह बात यह है कि इस बड़े से समूह के बारे में आंकड़े हमें किसी निजी समूह के सर्वे से जुटाने पड़ते हैं। इसके अलावा उनके लिए कोई कानून भी नहीं। सेक्स वर्कर्स की बहुत सी समस्याएं हैं। उनके लिए कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। एड्स और दूसरी कई बीमारियो का डर है। स्कूल में दाखिला कराना हो, बैंक में खाता खोलना है, कोई पेशेवर तालीम हासिल करनी हो तो परेशानी अलग से। सामाजिक लांछन साथ में है। पुलिस से लेकर प्रशासन तक धमकाता है। ऊपर से बिचौलियों का शोषण भी है। तो, कोविड-19 ने सबके साथ इनकी समस्याएं भी बढ़ाई हैं, इसीलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि इनकी तरफ भी सरकार का ध्यान जाएगा।
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