वैश्विकी : विभाजन का संकट
अमेरिका में शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के बाद भी यह जाहिर है कि इस देश को सहज और सामान्य होने में लंबा समय लगेगा।
वैश्विकी : विभाजन का संकट |
कोरोना वायरस महामारी की नई लहर देश के लिए पहले से अधिक घातक सिद्ध हो रही है। वहीं राजनीतिक और सामाजिक विभाजन भी पराकाष्ठा पर पहुंच गया है। अमेरिका में 1861 से 1865 के दौरान उत्तर और दक्षिणी राज्यों के बीच हुए गृहयुद्ध के बाद बहुत कम मौके आए हैं जब अमेरिका में हर स्तर पर विभाजन के ऐसे हालात बने हैं। निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव नतीजों को निरस्त करने के लिए चलाई गई अपनी जबरदस्त लेकिन असफल मुहिम के बाद हार कबूल कर ली है। अपने नवीनतम संबोधन में उन्होंने विभाजन खत्म करने और घाव भरने की नसीहत दी है। अमेरिकी जनता के बीच एकजुटता और मेलमिलाप कायम करने की इस नसीहत में उनका दोहरा चरित्र साफ दिखाई देता है। दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी का रवैया भी संयमित और राजनीतिक बुद्धिमता का प्रदर्शन नहीं करता। वह डोनाल्ड ट्रम्प और उनके समर्थकों को अपमानित और दंडित करने पर आमादा नजर आ रहा है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता राजनीतिक अल्पदृष्टि रखते हुए ट्रम्प के समर्थकों को अपराधी और असामाजिक तत्व साबित करने पर तुले हुए हैं। वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि चुनाव में ट्रम्प को 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं का समर्थन मिला है। उनकी तुलना में जो बाइडेन को कुछ ही अधिक मत मिले हैं। राजनीतिक बुद्धिमता और दूरदृष्टि का तकाजा है कि बदले की भावना और दुष्प्रचार की बजाय सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की जाए। कम-से-कम डेमोक्रेटिक पार्टी को चाहिए कि वह डोनाल्ड ट्रम्प को एक राजनीतिक अपवाद माने तथा रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों को राष्ट्रीय जीवन का वैसा हिस्सा माने जैसा कि वह अपने समर्थकों को मानती है।
जो बाइडेन के पद ग्रहण समारोह के दिन (20 जनवरी) को ट्रम्प ने शामिल न होने का ऐलान किया है। इस ऐलान पर जो बाइडेन की प्रतिक्रया गरिमापूर्ण नहीं रही। बाइडेन ने कहा कि वह कम-से-कम इस बात पर ट्रम्प से सहमत हैं। अमेरिका में इस समय डोनाल्ड ट्रम्प और उनके समर्थकों पर सोशल मीडिया के प्रबंधकों का हमला जारी है। ट्विटर, फेसबुक और यू टय़ूब पर अकाऊंट बंद किए जा रहे हैं तथा सामग्री का ब्लैक आऊट हो रहा है। आश्चर्य की बात है कि इस पर अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार चुप ही नहीं हैं बल्कि इसकी हिमायत कर रहे हैं।
शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका ने ‘मैकार्थीवाद’ का दौर देखा था। मैकार्थी सीनेटर था और समाज के प्रगतिशील तबके के विरुद्ध उन्होंने मुहिम चलाई थी। इस मुहिम के तहत बुद्धिजीवियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को कम्युनिस्ट करार देकर अपमानित और तिरस्कृत किया जाता था। उनकी आवाज बंद करने की हर संभव कोशिश की जाती थी। विडम्बना यह है कि आज दक्षिणपंथी और अनुदारवादी तबके को इस राजनीतिक छुआछूत और वैमनस्य का शिकार होना पड़ रहा है।
अमेरिका में जारी घटनाक्रम का एक जातीय और क्षेत्रीय पहलू भी है। डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों का बड़ा हिस्सा श्वेत और छोटे शहरों तथा गांवों में रहने वाले लोग हैं। दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों में बड़ी हिस्सेदारी अश्वेतों और अन्य प्रजाति के लोगों की है। अमेरिका में लंबे समय से यह बहस जारी है कि आखिर देश की वास्तविक पहचान क्या है? रिपब्लिकन पार्टी और देश का एक प्रभावशाली वर्ग श्वेत और प्रोटेस्टेंट समुदाय को देश की प्राथमिक पहचान करार देता है। देश की इस पहचान और इसके सभ्यागत मूल्यों की रक्षा की वह वकालत करता है। दूसरी ओर, डेमोक्रेटिक पार्टी बहुसांस्कृतिक विविधता और मिली-जुली संस्कृति में विश्वास रखती है। अमेरिका के हाल के घटनाक्रम को कौन जीता और कौन हारा, के तराजू पर भी तौला जा सकता है।
आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि अमेरिका किस दिशा में जा रहा है। बहुत कुछ डोनाल्ड ट्रम्प के अगले कदम पर निर्भर होगा। यदि वह अपने एजेंडे पर कायम रहते हुए देश में राजनीतिक सक्रियता जारी रखते हैं तो राजनीतिक रस्साकसी लंबे समय तक जारी रह सकती है। वर्ष 2024 के अगले राष्ट्रपति चुनाव की मुहिम भी अभी से शुरू हो सकती है।
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