सरोकार : वर्जिनिटी टेस्ट पर पाबंदी

Last Updated 10 Jan 2021 01:10:27 AM IST

पाकिस्तान से लगातार महिला अधिकारों की खबरें आ रही हैं। हाल ही में रेप के खिलाफ नये कानून के बाद एक और अच्छी खबर आई है।


सरोकार : वर्जिनिटी टेस्ट पर पाबंदी

पाकिस्तान में लाहौर उच्च न्यायालय ने पंजाब प्रांत में रेप पीड़िताओं के वर्जिनिटी टेस्ट यानी कौमार्य परीक्षण पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा है कि वर्जिनिटी टेस्ट का कोई लीगल आधार नहीं है और यह पीड़िताओं की गरिमा को छिन्न-भिन्न कर देता है। यह फैसला देने वाली जज महिला हैं और उनका नाम आयशा मलिक है। उन्होंने अपने फैसले में कहा है कि वर्जिनिटी टेस्ट की कोई वैज्ञानिक या मेडिकल जरूरत नहीं होती। फिर भी यौन हिंसा के मामलों में मेडिकल प्रॉटोकॉल के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। इससे पीड़िता को ही अपराधी मान लिया जाता है।
इससे पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने दिसम्बर में ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर प्रतिबंध लगाया था। अब लाहौर उच्च न्यायालय के फैसले से पंजाब में हर तरह के वर्जिनिटी टेस्ट पर पाबंदी लग गई है और यह पाकिस्तान में इस तरह का पहला आदेश है। इसी तरह के एक और मामले पर सिंध उच्च न्यायालय में भी सुनवाई चल रही है और महिला एक्टिविस्टों को उम्मीद है कि लाहौर उच्च न्यायालय का फैसला एक मिसाल बनेगा। भारत में ‘टू फिंगर जांच’ को 2013 में और बांग्लादेश में 2018 में बैन कर दिया गया था। वैसे 2018 की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के हाइमन की जांच का चलन अब भी 20 देशों में है। इसे रेप के मामलों में महिला की सहमति से, या बिना सहमति के किया जाता है।
पिछले साल अक्टूबर में ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा था कि पाकिस्तान की आपराधिक न्याय प्रक्रियाओं में वर्जिनिटी टेस्ट सालों से चलन में है। यह इस विचार पर आधारित है कि जो महिलाएं ‘सेक्सुअल इंटरकोर्स की आदी’ होती हैं, उनके रेप होने की आशंका कम होती है। पुलिस और कई बार वकील तक वर्जिनिटी टेस्ट के नतीजों का इस्तेमाल करके रेप पीड़िताओं के साथ अपराधियों का सा सलूक करते हैं।

वैसे रेप पीड़िताओं को ही दोषी मान लेने के कितने ही मामले भारत में भी देखे गए हैं। पिछले साल जुलाई में भारत में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक आरोपित को अग्रिम जमानत देकर शिकायतकर्ता महिला से ही सवाल किए थे। इसी तरह 2017 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बलात्कार के तीन अपराधियों को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि लड़की का खुद का व्यवहार गड़बड़झाला है। वह सिगरेट पीती है और उसके हॉस्टल रूम से कंडोम मिले हैं।
भारत की न्याय व्यवस्था में 1972 का मथुरा रेप केस एक नजीर ही है। इस मामले में मथुरा का बलात्कार पुलिस थाने में हुआ था। बाद में स्थानीय सत्र न्यायालय ने आरोपित पुलिस वालों को यह कह छोड़ दिया था कि पीड़िता सेक्स की आदी है। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय के फैसले को दोहराया। फिर कानूनिवदों ने सर्वोच्च न्यायालय को पत्र लिखा।
नतीजतन आईपीसी की धारा 376 में चार नए उपबंध ए, बी, सी और डी जोड़े गए। और भी बदलाव किए गए। ‘एविडेंस ऐक्ट’ में धारा114 ए जोड़ी गई, जिसके तहत ‘अगर पीड़िता यह कहती है कि उसने यौन संबंध के लिए हां नहीं कहा था तो अदालत को इस बात का यकीन करना चाहिए कि उसके साथ जबरदस्ती की गई थी।’

माशा


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