वैश्विकी : पुरानी चुनौतियां नये अवसर
भारत के लिए नया साल सीमाओं पर जारी सैन्य चुनौतियों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के अवसर के साथ आया है।
वैश्विकी : पुरानी चुनौतियां नये अवसर |
पूर्वी लद्दाख ही नहीं बल्कि पूरे भारत-चीन सीमा क्षेत्र में अनिश्चितता कायम है। अगले कुछ महीनों में हिमालय क्षेत्र में बर्फ पिघलने के बाद चीन क्या रवैया अपनाता है, इसपर भारत के सैनिक और कूटनीतिक प्रतिष्ठान की गहरी नजर होगी। अप्रैल महीने में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को एक साल पूरा हो जाएगा। इतने लंबे समय तक सीमा के दोनों ओर बड़ी संख्या में सैनिकों की मौजूदगी चिंता का विषय है। चीन के रवैसे से स्पष्ट है कि वह पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति बनाए रखने का इच्छुक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत के नये और पुराने मित्रों ने सैनिक गतिरोध समाप्त करने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए।
अमेरिका ने जहां सैन्य तनाव को अपने भू रणनीतिक उद्देश्य हासिल करने का जरिया बनाया वहीं परंपरागत मित्र देश रूस ने उदासीनता और तटस्थता का रुख अपनाया। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने लद्दाख के घटनाक्रम को दक्षिण चीन सागर, ताइवान और हांगकांग में चीनी सरकार और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी के आक्रामक कार्रवाइयों से जोड़ा। वहीं रूस के विदेश मंत्री सर्गई लावारोव ने चीन की कार्रवाई की सीधे आलोचना करने के बजाय इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आकार ले रहे चतरुगुट (क्वाड) को लेकर भारत को आगाह किया। रूस के इस रवैये से भारत का निराश होना स्वाभाविक है। इसका एक संकेत वर्ष 2020 में राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की वार्ता न हो पाना है। भारत और रूस दोनों ने कोविड-19 को वार्ता आयोजित न होने का कारण बताया है, लेकिन यह दलील विसनीय प्रतीत नहीं होती। इसी दौरान भारत और अमेरिका के बीच गहन कूटनीतिक संपर्क और संवाद हुआ है। लद्दाख का घटनाक्रम भारत की विदेश नीति में बदलाव ला सकता है, जिसका एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर असर होगा।
भारत अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर-अस्थायी सदस्य के रूप में अपने दो वर्ष के कार्यकाल की शुरुआत करेगा। सुरक्षा परिषद में आगामी 4 जनवरी को ध्वजारोहण के साथ भारत के कार्यकाल की शुरुआत होगी। यह आठवीं बार है, जब भारत सुरक्षा परिषद की मेज पर बैठेगा। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि अगस्त महीने में भारत सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता ग्रहण करेगा। यह सही है कि गैर स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में भारत की शिरकत और इस विश्व संस्था की अध्यक्षता का कोई निर्णायक असर नहीं होने वाला है। सुरक्षा परिषद में अंतत: वीटो धारी 5 सदस्यों का ही दबदबा रहता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव हषर्वर्धन सिंगला और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. त्रिमूर्ति ने भारत के कार्यकाल की शुरुआत पर प्रसन्नता जाहिर की है तथा इस दौरान भारत की प्राथमिकता गिनाई है। भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रभावी बनाना होगा। भारत लंबे समय से मांग करता रहा है कि आतंकवाद के विरुद्ध एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय समझौता होना चाहिए। भारत का यह भी मानना है कि केवल आतंकवादी घटनाओं को रोकना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले तथा आतंकियों को पनाह देने वाले देशों को भी दंड दिया जाना चाहिए।
भारत बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और उससे जुड़ी संस्थाओं को मजबूत बनाने तथा उनकी केंद्रीय भूमिका सुनिश्चित करने की भी वकालत करता है। विश्व संस्थाओं और बहुपक्षीय व्यवस्था का महत्त्व और आवश्यकता कोरोना वायरस महामारी से भी उजागर हुई है। भारत ने इस महामारी का मुकाबला करने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों को जिस तरह सहायता दी है उसे वह अन्य देशों के लिए अनुकरणीय उदाहरण के रूप में पेश कर सकता है। वैक्सीन उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश होने के नाते भारत की ओर सभी देशों की नजर होगी। वैक्सीन किसी भी देश में विकसित हो, किंतु वैक्सीन उत्पादन करने में भारत का फार्मा उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत 2021 में जिस चिकित्सा कूटनीति का उदाहरण पेश करेगा, उसे विश्व शांति और स्थिरता के लिए अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया जा सकता है।
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