कृषि बिल : बेहतर होंगी संभावनाएं

Last Updated 29 Dec 2020 12:51:40 AM IST

भारत सरकार द्वारा अधिनियमित तीन नये कृषि अधिनियमों को ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित अधिनियमों के रूप में देश के भीतर और विदेशों में भी व्यापक रूप से सराहा गया है।


कृषि बिल : बेहतर होंगी संभावनाएं

हालांकि, किसानों सहित कुछ विशेषज्ञ, राज्य और हितधारक अधिनियमों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें वापस लेने की मांग कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कम-से-कम दस महत्त्वपूर्ण कारण हैं:
वर्ष 1990-91 के साथ-साथ 12 वर्षो में से पांच वर्षो में कृषिगत आय में नकारात्मक वृद्धि के साथ कृषिगत विकास पूर्व के स्तर पर ही रुका रहा। यह इसी का परिणाम था कि किसानों की कृषि आय और गैर-कृषिगत कार्यकर्ताओं की आय का अंतर वर्ष 1993-94 में 25,398 रुपये से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 1.42 लाख रुपये से अधिक हो गया। भारतीय कृषि की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बेहतर बनाने की अति आवश्यकता है। मांग और आपूर्ति के उभरते परिदृश्य के अनुसार भारत को आने वाले वर्षो में 20 से 25 प्रतिशत वृद्धिशील कृषि खाद्य उपज को विदेशी मंडियों में बेचने की आवश्यकता होगी। यह पुराने कार्यों और कानून में संभव नहीं है, जिसमें बिचौलियों, लघु मंडी लॉट और उच्च लेन-देन लागतों की एक लंबी कड़ी शामिल है। हमें अपने उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मार्केटिंग और लॉजिस्टिक लागत को कम-से कम आधा करने की आवश्यकता है, जो लगभग 15 प्रतिशत है।

उच्च मूल्यों वाली फसल को उपजाने में मूल्य जोखिम का सामना करना पड़ता है। उत्पादक के लिए एक साथ तैयार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फल एवं सब्जी मंडियों में ले जाकर बेचना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होता। यह फसल एक ही समय में कटाई के लिए नहीं आती। यदि ऐसे किसान उत्पादन स्थाल के समीप मंडी, जैसे दूध संग्रहण केंद्र, और मूल्य आश्वासन पाते हैं तो वे उच्च मूल्यों वाली फसल को बहुतायत मात्रा में उपजाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। खाद्य प्रसंस्करण की वृद्धि को तेज करने की आवश्यकता है, जिससे बढ़ती मांगों को पूरा किया जा सके; कृषि विविधीकरण किया जा सके; और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अधिक रोजगार का सृजन किया जा सके। इसके लिए प्रोसेसरों को वांछित गुणवत्ता की कच्ची सामग्री की वांछित समय में आवश्यकता होती है। अलग-अलग मंडियों से विभिन्न  प्रकार के उत्पामदों को छोटे-छोटे भागों में खरीदने से कच्ची सामग्रियों पर लागत बढ़ जाती है। इसके लिए प्रोसेसरों और उत्पादकों के बीच नई व्यवस्था और भागीदारी की आवश्यकता है। नये अधिनियमों की बात करें, तो कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य अधिनियम किसानों को अपनी उपज को सीधे खेत से अथवा कहीं से भी फिजिकल मंडी अथवा या इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म के माध्यम से एपीएमसी मंडी में अथवा उसके बाहर निजी माध्यमों, इंटीग्रेटरों, एफपीओ अथवा सहकारी संस्थाओं को बेचने का विकल्प प्रदान करता है। इसमें एमएसपी से छेड़छाड़ करने अथवा उसके महत्त्व को कम करने की कोई मंशा या प्रावधान नहीं है और यह एपीएमसी मंडियों के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करता है। एपीएमसी मंडियों और उनके व्यवसाय को वास्तव में खतरा उन अत्यधिक और अन्यायोचित प्रभारों से है, जो इन मंडियों में राज्यों द्वारा वसूले जाते हैं।
नया एफपीटीसी अधिनियम केवल इस बात पर जोर देता है कि एपीएमसी मंडियां प्रतिस्पर्धी बने। मंडी अधिकारियों से चर्चा करने के बाद पता चला कि आढ़तियों के कमीशन और मंडी शुल्क सहित अधिकतम 1.5 प्रतिशत का कुल प्रभार मंडियों के प्रचालन और उनके रखरखाव के लिए पर्याप्त है। जो प्रदेश सरकार मंडियों में शुल्क को मंडी सुविधा तक सीमित रखेंगे, वहां की एपीएमसी को नये कानून से कोई खतरा नहीं होगा। कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम में किसी भी किसान के लिए इस करार को करना अपेक्षित नहीं है; यह निर्णय पूरी तरह से किसान पर ही छोड़ दिया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत कृषि करार में किसान की भूमि अथवा परिसर के हस्तांतरण, बिक्री, लीज, मोर्टगेज पर प्रतिबंध है। इस अधिनियम से संबंधित सभी आशंकाएं कार्पोरेट खेती से संबंधित हैं, जोकि पूर्णत: अलग व्यवस्था हैं और भारत के किसी भी राज्य में इसकी अनुमति नहीं है।
पीएएफएस अधिनियम का झुकाव किसानों की तरफ है। यह कृषि क्षेत्र में नई पूंजी और नवीन ज्ञान को लाएगा और वैल्यू चेन में किसानों की भागीदारी के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। इन दोनों अधिनियमों में यदि आवश्यकता हो, तो बदलाव के लिए प्रावधान रखा गया है। तीसरे अधिनियम में कृषि खाद्य वस्तुओं के समूह के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करना शामिल है। इस संशोधन में अधिनियम का संदर्भ देते हुए नौकरशाहों द्वारा मनमाना निर्णय लिए जाने पर छोड़ने की बजाय ईसीए को कार्यान्वित करने के लिए ‘मूल्य ट्रिगर’ के रूप में पारदर्शी मानदंड को विनिर्दिष्ट किया है। ईसीए को कार्यान्वित करने की सरकार की पावर को बनाए रखा गया है, जैसे कि ईसीए में संशोधन के बाद प्याज की भंडार सीमा नियत करते समय देखा गया है। इसमें संशोधन, कृषि में आदान से लेकर फसल कटाई उपरांत कार्यकलापों के लिए बेहद जरूरी निजी निवेश को आकर्षित करेगा।  
संक्षेप में, तीन नये अधिनियमों के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा बदलते समय, कृषकों और कृषि की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ये तीन नीतिगत सुधार किए गए हैं। यदि इनको सही भावना से लागू किया जाता है, तो ये भारतीय कृषि को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बदलाव में नये युग का सूत्रपात होगा। इन सुधारों ने भारत के लिए कृषि में एक वैश्विक शक्ति बनने और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए पावर हाउस बनने की भावना जाग्रत की है। ये सुधार किसानों की समृद्धि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव और कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजन बनाने के जनक हैं। आज केंद्र सरकार और किसानों के नेताओं के बीच पांचवे दौर की वार्ता हो रही है। देश ये आशा रखता है कि किसान और सरकार दोनों सकारात्मक रास्ता निकालकर नये अधिनियमों के द्वारा कृषक और कृषि को उन्नति के रास्ते पर अग्रसर होने के अवसर मिलने की बाधाओं को दूर करेंगे। यह किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन लाने का एक अवसर है, जिसे हमें हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए।

प्रो. रमेश चंद


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