विश्लेषण : मिलावटखोरी से सावधान

Last Updated 28 Dec 2020 12:23:23 AM IST

कभी जहां भारत में दूध-दही की नदियां बहा करती थीं, अब वहां हर चीज में मिलावट का आलम है।


विश्लेषण : मिलावटखोरी से सावधान

यहां तक कि दूध भी इससे अछूता नहीं रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग सेहत के नाम पर बेहद नुकसानदेह पदार्थों से नकली दूध तैयार कर लोगों को पिला रहे हैं। यूरिया, साबुन और तेल जैसी खतरनाक चीजों को मिलाकर बनने वाले इस ‘दूध’ में दूध नाम की कोई चीज ही नहीं होती। ये लालची लोग स्वार्थवश मानव सभ्यता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। क्या इन्हें नहीं पता कि इस दूध को पीकर हमारे नौनिहाल, जो देश का भविष्य हैं, कितनी बीमारियों के चंगुल में फंस जाएंगे?
डा. वर्गीज कुरियन ने भी भारत में ‘अपरेशन फ्लड’ शुरू करते समय यह नहीं सोचा होगा कि आम लोगों को दूध मुहैया कराने के लिए वह जिन डेयरी को खुलवाने की बात कह रहे थे, उनमें बरती जाने वाली लापरवाही गाय और भैंसों के लिए तो जानलेवा साबित होंगी ही, साथ ही वहां से मिलने वाला दूध भी आम आदमी के लिए मुफीद नहीं रहेगा। ज्यादा दूध निकालने के चक्कर में गायों को हर साल गर्भवती करवा दिया जाता है, क्योंकि बच्चा होने के बाद दस माह तक वह ज्यादा दूध देती हैं। हर रोज उन्हें ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं ताकि वे ज्यादा दूध दे सकें। परंतु यह इंजेक्शन उनके लिए कितने हानिकारक हैं, यह दूध दुहने वाले और डेरी मालिक शायद नहीं जानते।

अगर उन्हें पता है तो वह और भी गंभीर अपराध कर रहे हैं, क्योंकि जान-बूझकर किसी को मौत के मुंह में धकेलना, कानून में अपराध की श्रेणी में आता है। यह सभी तरीके इन बेजुबान जानवरों के लिए तो खतरनाक हैं ही, साथ ही इनका दूध पीने वालों के लिए भी कम नुकसानदेह नहीं हैं। इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा सात साल के शोध के बाद निकाले नतीजों में पाया कि जिस गाय के दूध को सदियों से हम पूर्ण आहार मानकर पीते चले आ रहे हैं, वह भी कीटनाशकों से भर गया है। उसमें भी डाईक्लोरो डाई फिनाइल ट्राइक्लोरोईथेन (डीडीटी), हैक्साक्लोरो साइक्लोहैक्सेन (एचसीएच), डेल्ड्रिन, एल्ड्रिन जैसे खतरनाक कीटनाशक भारी मात्रा में मौजूद हैं। भारतीय खाद्य अपमिशण्रकानून एक किलो में केवल 0.01 मिलीग्राम एचसीएच की अनुमति देता है, जबकि आईसीएमआर की रिपोर्ट में यह 5.7 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम निकला। इसके अलावा वैज्ञानिकों को दूध में आर्सेनिक, कैडमियम और सीसा जैसे खतरनाक अपािष्ट भी मिले। यह इतने खतरनाक हैं कि इनसे किडनी, दिल और दिमाग तक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। बात सिर्फ गाय और भैंस के दूध तक ही सीमित नहीं है। बच्चे के लिए अमृत कहा जाने वाला मां का दूध भी शुद्ध नहीं रहा। अमेरिका में हुए एक शोध में अमेरिकी औरत के दूध में कीटनाशकों के साथ-साथ सौ से भी ज्यादा औद्योगिक रसायन पाए गए। पर अनेक नुकसानदेह रसायनों के बावजूद मां का दूध बच्चे के पोषण के लिए बहुत जरूरी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि प्रतिवर्ष करीब दो लाख लोग कीटनाशकों को खाकर काल के गाल में समा जाते हैं। संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 30 लाख लोग इन जहरों की चपेट में आते हैं और खास बात है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे होते हैं। अब बात करें शीतल पेयों की। कुछ वर्ष पहले बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कारगुजारियों को उजागर कर सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) ने देश के करोड़ों लोगों की आंखों पर पड़ा पर्दा उठाने का काम किया था। प्रयोगों के जरिए सीएसई ने यह बताने की कोशिश की कि आकषर्क विज्ञापनों के जरिए यह कंपनियों जिन शीतल पेयों को आम भारतीयों के गले के नीचे उतार रही हैं, वह सेहत के लिए बिल्कुल भी मुफीद नहीं हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन शीतल पेयों के जरिए हम ऐसे कीटनाशकों को निगल रहे हैं, जिनके लंबे समय तक सेवन करने से कैंसर, स्नायु और प्रजनन तंत्र को क्षति, जन्मजात शिशुओं में विकृति और इम्यून सिस्टम तक में खराबी आ सकती है। परंतु बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस बात का खंडन करती हैं। अमेरिका और अन्य दूसरों देशों में इनके उत्पादों की गुणवत्ता का बारीकी से ध्यान रखा जाता है, जबकि भारत में यह पैसे बचाने के लिए कीटनाशकों का घोल जनता को पिला रही हैं। मजे की बात तो यह है कि शर्बत और लस्सी के देश भारत के अधिकांश लोग पश्चिमी बयार में बहकर खुद को ‘मॉडर्न’ साबित करने के लिए इन ‘दूषित’ शीतल पेयों का जमकर उपयोग कर रहे हैं। पर पेय पदार्थों में अपशिष्ट पदार्थों की मिलावट सिर्फ विदेशी कंपनियों के इन शीतल पेयों तक ही सीमित नहीं है।
कुछ साल पहले बोतलबंद मिनरल वाटर के दूषित होने को लेकर भी काफी बवाल मचा था। देसी-विदेशी विख्यात कंपनियों के बोतलबंद पानी के दिल्ली में 17 और मुंबई में 13 उत्पादों की जांच हुई और उनमें लिन्डेन, डीडीटी, क्लोरोपाइरोफोस, मेलाथियॉन जैसे कीटनाशक पाए जाने की पुष्टि हुई थी। तत्कालीन सरकार ने भारतीय मानक ब्यूरो की सिफारिश के आधार पर बोतलबंद पानी की शुद्धता बरकरार रखने के लिए खाद्य अपमिशण्रकानून में कुछ फेरबदल कर इन्हें लागू करवा दिया। हालांकि भारत के अधिकांश लोग नगरपालिका या नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला जल अथवा नदियों के पानी को ही पीते हैं। बाहरी जल की तो छोड़िए, पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण के कारण भूगर्भीय जल भी अब स्वच्छ नहीं रहा है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोगों से अनाज, सब्जी और फल तक दूषित हो गए हैं। इसके चलते भूमि बंजर हो रही है। उपज की गुणवत्ता में कमी आई है।
कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से पैदा हुई इन स्थितियों को देखते हुए अनेक देशों ने तो इनका प्रयोग लगभग बंद ही कर दिया है और वे प्राकृतिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करने लगे हैं। पर, भारत अभी पश्चिम की कदमताल कर रहा है। एक ओर जहां वे हमारी पुरातन संस्कृति और सभ्यता के गुणों से परिचित होकर उनका अध्ययन कर गूढ़ रहस्य को समझकर अपने जीवन में उतारने की कोशिश में लगे हैं, वहीं हम भारतवासी अपनी समृद्ध संपदा को छोड़कर पश्चिमी चकाचौंध के पीछे दीवाने हुए जा रहे हैं। तकनीक को अपनाना, चाहे वह अपने देश की हो या विदेश की, गलत नहीं है। पर उसके अच्छे और बुरे प्रभावों को जाने बिना उसका अंधानुकरण करना सही नहीं कहा जा सकता।

विनीत नारायण


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment