पश्चिम बंगाल : बदलेगी संस्कृति, आएगा बदलाव

Last Updated 18 Dec 2020 12:30:36 AM IST

कहते हैं कि संस्कृति हमेशा अच्छाई की राह पर चलने को प्रेरित करती है पर यह भी सच है कि इंसान की समस्त क्रिया-प्रतिक्रिया उस माहौल के हिसाब से निर्धारित होती है, जिसमें वो जीता है। दरअसल, माहौल ही है जो लोगों को साधु या शैतान बना देता है।


पश्चिम बंगाल : बदलेगी संस्कृति, आएगा बदलाव

पश्चिम बंगाल में जो राजनीतिक हत्याएं हो रही हैं तथा हिंसा के दम पर अन्य राजनीतिक दलों को डराने का जो कुकृत्य ममता सरकार द्वारा किया जा रहा है, उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। हमारे लिए वह बहुत ही घृणित तथा मानवता को शर्मसार करने वाला कार्य है, लेकिन ममता बनर्जी के लिए यही संस्कृति है। भारतीय जनता पार्टी इसी संस्कृति में बदलाव चाहती है। सत्ता में बदलाव तो गौण है। तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सत्ता आने से पूर्व वहां पर लंबे समय तक कम्युनिस्टों का शासन था। संपूर्ण विश्व में जहां वे प्रभावी रहे हों या सत्ता में रहे हों, वामपंथी/कम्युनिस्टों का हिंसा में अटूट विास था। सोवियत संघ के शासक जोसेफ स्टालिन को कभी कम्युनिस्टों का आदर्श माना जाता था। वो सोवियत संघ के बहुत बड़े नायक थे लेकिन जोसेफ स्टालिन के राज में जुल्मो-सितम की भी इंतेहा हुई। उनकी नीतियों और फरमानों की वजह से कथित तौर पर करोड़ों लोग मारे गए। स्टालिन के लिए हर आदमी संभावित जासूस और गद्दार था, इसलिए उसने भी, हिटलर की तरह ही, सबके पीछे जासूस लगा रखे थे। उनके पुराने दोस्त भी संदेह से परे नहीं थे। उनके ऐसे ही एक दोस्त थे व्याचेस्लाव मोलोतोव।

स्टालिन के शासनकाल में 1930 से 1941 तक वह सरकार प्रमुख (प्रधानमंत्री) और बाद में विदेश मंत्री रहे। 1941 में स्टालिन स्वयं ही सरकार प्रमुख भी बन गए थे। उन्हें मोलोतोव की पत्नी की निष्ठा पर कहीं से शक हो गया और उन्होंने उसे तुरंत साइबेरिया के एक श्रम शिविर में सड़ने के लिए भिजवा दिया था। यही नहीं, उन्हें कई प्रमुख लोगों की कथित रूप से संदेहास्पद पत्नियों की एक लिस्ट दी गई और उस लिस्ट पर उन्होंने सबकी आंखों के सामने लिखा, ‘उड़ा दो गोली से’। जोसेफ स्टालिन के राज में लोग भुखमरी से बड़ी संख्या में मरे परंतु उसकी कहीं चर्चा नहीं हुई। यही स्थिति चीन में भी रही। वहां भी इसी विचारधारा के लोगों ने सत्ता में आने के लिए करोड़ों लोगों की हत्या कराई तथा लोकतंत्र का गला घोंट दिया। भारतीय संस्कृति वैदिक संस्कृति है, जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। इसलिए वाम विचारधारा के लोग यहां अपने पांव नहीं पसार पाए प्रयास पूरे करने के बावजूद। केरल, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल से प्रारंभ करके कम्युनिस्ट हिंसा के दम पर राजनीतिक हत्या करवाकर पूरे देश में अपना विस्तार करना चाहते थे, लेकिन देश ने इनको स्वीकार नहीं किया। त्रिपुरा में भाजपानीत सरकार बनी तो वहां पर राजनीतिक संस्कृति का बदलाव हुआ और रजिनीतिक हत्याएं रुक गई। पश्चिम बंगाल में सत्ता का बदलाव तो हुआ, लेकिन संस्कृति नहीं बदली। कम्युनिस्टों के गुंडे ममता की सत्ता में आ गए तथा ममता सरकार पूरी निर्ममता से राजनीतिक हत्याएं करवाने लगी। यह समय उसी तरह का है।
ममता बनर्जी चूंकि सत्ता के नशे में चूर हैं, इसलिए उन्हें इस स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं है। अगर है भी तो इसे वे नजरअंदाज कर रही हैं, और उनका इस स्थिति को नजरअंदाज करना भारी पड़ने वाला है क्योंकि पश्चिम बंगाल की जनता अब संस्कृति परिवर्तन के मूड में आ चुकी है। जनभावनाओं को देखते हुए अब समय आ गया है पश्चिम बंगाल में राजनीतिक संस्कृति को बदलने का। और यह काम त्वरित होना चाहिए। जिस प्रकार से वहां नियम-कानून की धज्जियां उड़ाकर सत्ता जाते हुए देखकर ममता बनर्जी हत्याएं और हमले करवा रही हैं, यह पश्चिम बंगाल की संस्कृति नहीं है, वहां की संस्कृति स्वामी विवेकानंद, रवींद्र नाथ टैगोर की विचारधारा को मानने वाली संस्कृति है, जो भाजपा की तरफ बहुत ही आस, आदर और विास के साथ देख रही है।
कोलकाता (पहले कलकत्ता) महानगर, जो एक समय उद्योग का केंद्र हुआ करता था, आज वीरान शहर बना दिया गया है, वहां के सत्ताधीशों ने उद्योगपतियों से चंदा लेकर उनके ही विरुद्ध अभियान चलाया तथा कोलकाता को उद्योग एवं रोजगारमुक्त बना दिया, जबकि ज्योति बसु के बेटे चंदन बसु और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी अरबों की संपत्ति के स्वामी बन गए, वहां की आम जनता गरीबी से जूझ रही है। अभी हाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के ऊपर जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने हमले किए उससे यह सिद्ध होता है कि अपनी सत्ता जाती देख कर ममता कितनी निर्ममता पर उतारू हो गई हैं। पश्चिम बंगाल में कभी भाजपा के युवा मोर्चा के कार्यक्रम में हमले करवाकर हत्या और घायल किया जाता है, तो कभी किसी भाजपा कार्यकर्ता को मारकर पेड़ में लटका दिया जाता है। इन सब घटनाओं का अंत शीघ्र ही होगा और आगामी मई, 2021 के विधानसभा चुनाव में वहां की जनता रोहिंग्याओ और गुंडों को संरक्षण देने वाली, रक्तपात में विास करने वाली, दमनकारी सरकार का अंत करके पश्चिम बंगाल में प्राण डालने के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार लाएगी। पश्चिम बंगाल में ममता दीदी किस तरह लोकतंत्र की हत्या कर रही है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भाजपा अध्यक्ष के ऊपर हमले के जिम्मेदार तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने कार्यालय में अटैच करने का विधि सम्मत आदेश पारित किया जिनको ममता सरकार रिलीज नहीं कर रही है, वहीं दूसरी तरफ ममता सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों की जांच कर रहे आयकर अधिकारियों को वहीं की पुलिस से फर्जी मुकदमे दर्ज करवाकर गिरफ्तारी की धमकियां दे रही है।
बहरहाल, कुछ समय और इंतजार कीजिए। पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति में आमूलचूल बदलाव का वक्त ज्यादा दूर नहीं है। यह सत्ता परिवर्तन तो होगा ही साथ में संस्कृति परिवर्तन की बयार भी बहेगी।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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